తెలుగు | Epaper

Kashi Vishwanath : शिव के त्रिशूल पर बसी है काशी

Surekha Bhosle
Surekha Bhosle
Kashi Vishwanath : शिव के त्रिशूल पर बसी है काशी

काशी विश्वनाथ (Kashi Vishwanath) ज्योतिर्लिंग भगवान शिव (Shiva) की नगरी काशी में स्थित है. पवित्र गंगा नदी के पश्चिमी तट पर बारह ज्योतिर्लिंग में से एक देवों के देव महादेव काशी Kashi Vishwanath में ज्योति स्वरूप में विराजते हैं. उनके निवास स्थान को मोक्ष की नगरी के नाम से जाना जाता है. उनको बाबा विश्वनाथ या बाबा विश्वेश्वर कहा जाता है. शिव और काल भैरव की यह नगरी अद्भुत है, जिसे सप्तपुरियों में शामिल किया गया है. सावन में काशी विश्वनाथ ज्योतिर्लिंग के दर्शन और पूजा के लिए भक्तों की भीड़ उमड़ती है

शिव के त्रिशूल पर बसी है काशी

इस नगरी के बारे में कहा जाता है कि यह इस धरती की हिस्सा नहीं है. काशी तो शिव के त्रिशूल पर बसी है. ऐसे में इस मोक्ष की नगरी और पाप नाशिनी भी कहा जाता है. इस नगरी के बारे में पुराणों में वर्णित है कि यह भगवान विष्णु की नगरी थी. यहां श्रीहरि के आनंदाश्रु गिरे थे, जहां भगवान के आनंद के आंसू गिर थे, वहां सरोवर बन गया. जहां प्रभु ‘बिंधुमाधव’ के रूप में पूजे गए. कहते हैं कि शिव को यह नगरी इतनी भा गई कि उन्होंने भगवान श्रीहरि से इसे अपने निवास के लिए मांग लिया।

काशी के कोतवाल हैं भैरव

काशी विश्वनाथ Kashi Vishwanath के इस मंदिर को कई बार आक्रांताओं के द्वारा छिन्न-भिन्न करने की कोशिश की गई लेकिन, हिंदू आस्था हर बार इतनी ताकतवर रही कि मंदिर का निर्माण फिर से भव्य तरीके से कर दिया गया. वहीं काशी विश्वनाथ के साथ इस नगरी में शिव के गण और पार्वती के अनुचर भैरव काशी के कोतवाल के रूप में विराजते हैं. ऐसे में काशी विश्वनाथ के दर्शन से पहले भैरव के दर्शन की परंपरा है. मंदिरों के इस शहर की हर गलियां सनातन की समृद्ध परंपरा की गवाही है. यह मोक्ष की नगरी है ऐसे में लोग काशी में अपने जीवन का अंतिम वक्त बीताने आते हैं।

ईशान कोण में है काशी विश्वनाथ ज्योतिर्लिंग

वैसे भी पौराणिक और ऐतिहासिक तथ्यों पर गौर करें तो वाराणसी दुनिया का सबसे प्राचीन शहर है. विश्व के सबसे प्राचीन ग्रंथ ऋग्वेद में भी काशी का जिक्र मिलता है. वहीं महाभारत और उपनिषद में भी इसके बारे में वर्णित है. यहां काशी विश्वनाथ मंदिर के गर्भगृह में बाबा का ज्योतिर्लिंग ईशान कोण में स्थित है, जो दिशा शास्त्र और वास्तु के अनुसार विद्या, कला, साधना और ब्रह्मज्ञान का प्रतीक है. ईशान कोण में शिव का वास यह दर्शाता है कि यहां भगवान का नाम केवल शंकर ही नहीं, ईशान के रूप में विद्या और तंत्र का अधिपति स्वरूप भी है।

काशी में है शिव-शक्ति का दुर्लभ संयोग

यहां काशी में बाबा विश्वनाथ Kashi Vishwanath और मां भगवती हर पल विराजते हैं. मां भगवती यहां अन्नपूर्णा के रूप में हर जीव का पोषण करती हैं और बाबा विश्वनाथ मृत्यु के उपरांत आत्मा को तारक मंत्र देकर मुक्ति प्रदान करते हैं. यह शिव-शक्ति का दुर्लभ संयोग काशी को दिव्यता, पूर्णता और सनातन ऊर्जा का स्रोत बनाता है।

समस्त पापों से मुक्ति देते हैं बाबा विश्वनाथ

यहां मंदिर का मुख्य द्वार दक्षिण मुखी है और बाबा का मुख उत्तर दिशा की ओर अर्थात अघोर दिशा में स्थित है. जब भक्त मंदिर में प्रवेश करता है, तो सबसे पहले उसे शिव के अघोर रूप के दर्शन होते हैं. जो समस्त पापों, तापों और बंधनों को नष्ट कर देने की शक्ति रखते हैं।

सानन्दमानन्दवने वसन्तमानन्दकन्दं हतपापवृन्दम्.
वाराणसीनाथमनाथनाथं श्रीविश्वनाथं शरणं प्रपद्ये॥

जो स्वयं आनन्दकन्द हैं और आनंदपूर्वक आनन्दवन (काशीक्षेत्र) में वास करते हैं, जो पाप समूह के नाश करने वाले हैं, उन अनाथों के नाथ काशीपति श्री विश्वनाथ की शरण में मैं जाता हूं।

काशी विश्वनाथ के पास हैं देवी अन्नपूर्णा
काशी विश्वनाथ मंदिर के पास, देवी अन्नपूर्णा का महत्वपूर्ण मंदिर है, जिसे “अन्न की देवी ” माना जाता है. वहीं सिंधिया घाट के पास, ‘संकट विमुक्ति दायिनी देवी’ देवी संकटा का एक महत्वपूर्ण मंदिर है. इसके परिसर में शेर की एक विशाल प्रतिमा है. इसके अलावा यहां 9 ग्रहों के नौ मंदिर हैं।

कई रोगों को नष्ट करता है मृत्युंजय महादेव मंदिर का पानी

वहीं विशेसरगंज में हेड पोस्ट ऑफिस के पास वाराणसी का महत्वपूर्ण एवं प्राचीन मंदिर है. भगवान काल भैरव जिन्हें ‘वाराणसी के कोतवाल’ के रूप में माना जाता है, बिना उनकी अनुमति के कोई भी काशी में नहीं रह सकता है. यहीं कालभैरव मंदिर के निकट दारानगर के मार्ग पर भगवान शिव का मृत्युंजय महादेव मंदिर स्थित है. इस मंदिर का पानी कई भूमिगत धाराओं का मिश्रण है और कई रोगों को नष्ट करने के लिए उत्तम है।

काशी विश्वनाथ का इतिहास

जब देवी पार्वती अपने पिता के घर रह रही थीं जहां उन्हें बिल्कुल अच्छा नहीं लग रहा था. देवी पार्वती ने एक दिन भगवान शिव से उन्हें अपने घर ले जाने के लिए कहा. भगवान शिव ने देवी पार्वती की बात मानकर उन्हें काशी लेकर आए और यहां विश्वनाथ-ज्योतिर्लिंग के रूप में खुद को स्थापित कर लिया.

काशी विश्वनाथ से जल क्यों नहीं लाया जाता है?

पौराणिक कथाओं के अनुसार, इस नगर की स्थापना स्वयं भगवान शिव ने की थी और यह दुनिया का एक प्राचीनतम शहर है। मान्यता यह भी है कि बनारस भगवान शंकर के त्रिशूल की नोक पर टिका है।इतनी पवित्रता होने के बावजूद लोगों को वहाँ से नदी का जल या गीली मिट्टी लाने की मनाही होती है

Read Also: Som Pradosh Vrat पर इस विधि से करें शिव-पार्वती की पूजा

📢 For Advertisement Booking: 98481 12870