अयोध्या की ऐतिहासिक भूमि पर अक्षय तृतीया के शुभ सुयोग पर कुछ ऐसा हुआ जो सदियों से नहीं हुआ था। हनुमानगढ़ी के गद्दीनशीन महंत प्रेमदास ने हनुमान जी के सपने में दर्शन देने के हिदायत के बाद एक ऐतिहासिक फैसला लिया। उन्होंने देवालय से बाहर निकलकर रामलला के दर्शन किए, जो कि हनुमानगढ़ी की सदियों पुरानी परंपरा के प्रतिकूल था।
भव्य शाही जुलूस में प्रेमदास का स्वागत
सुबह 7:50 पर जब महंत प्रेमदास पहली बार देवालय क्षेत्र से बाहर निकले, तो पूरा अयोध्या सिटी उनके सत्कार के लिए मुस्तैद था। भव्य रथ पर सवार होकर वे सरयू स्नान के लिए रवाना हुए। इस ऐतिहासिक पल को देखने के लिए हजारों की संख्या में भक्त उपस्थित थे। हाथी, घोड़े, ऊंट, बैंड-बाजे और पुष्प वर्षा से पूरा वातावरण भक्तिमय हो गया।

अखाड़े ने दी अनुमति, परंपरा में हुआ बदलाव
हनुमानगढ़ी की परंपरा के मुताबिक, वहां के गद्दीनशीन महंत को जीवन भर देवालय क्षेत्र से बाहर निकलने की अनुमति नहीं होती। लेकिन महंत प्रेमदास की रामलला के दर्शन की इच्छा को देखते हुए निर्वाणी अखाड़े ने परंपरा को तोड़ते हुए उन्हें बाहर जाने की मंज़ूरी दी। उन्होंने अखाड़े के निशान के साथ शोभायात्रा का नेतृत्व किया, जिसमें नागा साधु, शिष्य और व्यापारी भी सम्मिलित हुए।
रामलला को अर्पित किया जाएगा 56 भोग
रामलला के दर्शन के समय महंत प्रेमदास 56 प्रकार के भोग अर्पित करेंगे। इससे पहले उन्होंने सरयू नदी में स्नान किया और फिर भक्ति भाव से मंदिर प्रांगण में पहुंचे। यह वारदात धार्मिक, सांस्कृतिक और ऐतिहासिक दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण मानी जा रही है।