Mohammad Yunus का बदला रुख, अल्पसंख्यकों पर बड़ा बयान बांग्लादेश में अल्पसंख्यकों की स्थिति को लेकर नया विमर्श
Mohammad Yunus, जो कि नोबेल शांति पुरस्कार से सम्मानित बांग्लादेशी अर्थशास्त्री और सामाजिक कार्यकर्ता हैं, उन्होंने हाल ही में एक ऐसा बयान दिया है जिसने बांग्लादेश की राजनीति और सामाजिक विमर्श में हलचल मचा दी है। उनका यह बयान बांग्लादेश में रहने वाले अल्पसंख्यकों की स्थिति को लेकर था, जिसमें उन्होंने सत्ता तंत्र की चुप्पी और भेदभाव पर सवाल उठाए।
क्या बोले Mohammad Yunus?
Mohammad Yunus ने कहा कि बांग्लादेश को अगर सच्चा लोकतंत्र और समावेशी समाज बनाना है तो उसे अपने अल्पसंख्यकों की स्थिति पर गंभीर मंथन करना होगा। उन्होंने यह भी कहा कि किसी भी राष्ट्र की स्थिरता और प्रगति तभी संभव है जब सभी समुदायों को समान अधिकार और सुरक्षा मिले।

उनके मुख्य बिंदु:
- धार्मिक और जातीय अल्पसंख्यकों को बराबरी का दर्जा मिले
- सरकारी संरक्षण में हो रहे भेदभाव को रोका जाए
- अंतरराष्ट्रीय समुदाय को इस विषय पर ध्यान देना चाहिए
राजनीतिक हलकों में हलचल
Mohammad Yunus के इस बयान के बाद बांग्लादेश की सत्तारूढ़ पार्टी पर दबाव बढ़ गया है। विपक्षी दलों ने इसे अपने समर्थन में लेते हुए सरकार को कटघरे में खड़ा किया है। वहीं, सत्ताधारी नेताओं ने उनके बयान को “राजनीतिक रूप से प्रेरित” करार दिया है।
पहले क्या था रुख, अब क्यों बदलाव?
दिलचस्प बात यह है कि Mohammad Yunus पहले बांग्लादेश सरकार की कई नीतियों के समर्थक माने जाते थे।
मगर अब उनके सुर बदलते दिख रहे हैं।
कुछ विशेषज्ञों का मानना है कि यह बदलाव अंतरराष्ट्रीय दबाव और मानवाधिकार संगठनों की रिपोर्टों के कारण हुआ है।

अंतरराष्ट्रीय प्रतिक्रिया
उनके इस बयान की गूंज संयुक्त राष्ट्र और अन्य मानवाधिकार संगठनों तक भी पहुंची है।
कई संस्थाओं ने मोहम्मद यूनुस के बयान को समर्थन देते हुए बांग्लादेश सरकार से स्पष्ट नीति और जवाबदेही की मांग की है।
Mohammad Yunus के इस बयान ने एक बार फिर बांग्लादेश में अल्पसंख्यकों की सुरक्षा और अधिकारों को लेकर बहस छेड़ दी है। यह देखना दिलचस्प होगा कि सरकार इस पर क्या प्रतिक्रिया देती है और क्या यह बयान किसी बड़े सामाजिक बदलाव की शुरुआत बनता है।