बिहार की राजनीति में जातीय हिंसा का एक काला अध्याय है मियांपुर नरसंहार। 2000 की उस भयावह रात ने न केवल एक गांव को तबाह कर दिया, बल्कि राज्य की सत्ता को हिला दिया। राबड़ी देवी की सरकार के 100 दिन पूरे होने को थे, जब 16 जून 2000 को औरंगाबाद जिले के मियांपुर गांव में यह खूनी खेल रचा गया।
यह उस साल का आठवां बड़ा नरसंहार था, जिसमें 34 निर्दोषों की जान चली गई। मुख्य रूप से 26 यादवों का कत्ल था, जो 1997 के लक्ष्मणपुर-बाथे नरसंहार में 34 सवर्णों की हत्या का बदला माना जाता है। हमलावरों ने महिलाओं की गोद से बच्चों को छीनकर काट डाला, और ब्रह्मेश्वर सिंह मुखिया की रणवीर सेना ने इसे अंजाम दिया। लालू प्रसाद यादव की सरकार ने मुखिया को पकड़ने के लिए 10 लाख रुपये का इनाम घोषित किया था।

रणवीर सेना का धावा
16 जून 2000 की रात करीब 9 बजे, गर्मी की तपिश में मियांपुर के लोग बाहर थे। नहर किनारे 4-5 युवक बातें कर रहे थे, तभी 200-250 की सशस्त्र भीड़ दिखी। ‘रणवीर बाबा की जय’ के नारे लगाते हुए वे फरसा, तलवार, बंदूकें और देसी हथियार लहराते गांव की ओर बढ़े। युवकों ने भागकर चेतावनी दी, लेकिन हमलावरों ने गांव घेर लिया। अंधाधुंध फायरिंग शुरू हो गई। एक हमलावर चिल्लाया, “चुन-चुनकर मारो, गोली बर्बाद मत करो।”

हमलावर घर-घर घुसे। एक युवक को अनाज के कोठे के पीछे छिपा पाया, सिर पर बंदूक की बट मारी और घसीटकर बाहर लाए। जाति पूछी तो ‘यादव’ कहने पर उसे निशाना बनाया। महिलाओं, पुरुषों और बच्चों को बांधकर लाइन में खड़ा किया। कमांडर ने तलवार से जाति के आधार पर चयन किया – यादवों और दलितों को निशाना। जो भागा, उसे बट मारा। अंत में, 10-12 ने गोलियां बरसाईं। चीखें गूंजीं, गोद से 9 महीने के शिशु छीनकर काट डाले गए। रात 11 बजे तक ‘रणवीर सेना की जय, सेनारी-अफसढ का बदला लिया’ नारे लगाते हमलावर फरार हो गए।

पीड़ितों की त्रासदी: 34 लाशें, अनगिनत जख्म
रात 2 बजे पुलिस पहुंची। 34 शव बरामद हुए – 26 यादव, 6 दलित और 2 अन्य। इनमें 13 महिलाएं और 9 बच्चे थे। गांव की विधवा रामदुलारी देवी ने बताया, “मेरी गोद का लाल छीन लिया। वह रो रहा था, लेकिन उन्होंने तलवार से…” कई परिवार उजड़ गए। मियांपुर, जहां यादव बहुल थे, लक्ष्मणपुर-बाथे (1997) के 34 सवर्ण हत्याकांड का बदला था। वहां रणवीर सेना के 34 भूपेंद्र सिंह के परिवार के सदस्य मारे गए थे।

राजनीतिक उथल-पुथल: लालू की सरकार पर दबाव
यह नरसंहार राबड़ी देवी सरकार के लिए संकट था। बीजेपी-जेडीयू ने इस्तीफे की मांग की। कांग्रेस ने घेरा लेकिन समर्थन नहीं हटाया, कहते हुए कि इससे सांप्रदायिक ताकतें मजबूत होंगी। लालू ने रणवीर सेना प्रमुख ब्रह्मेश्वर मुखिया पर 10 लाख का इनाम घोषित किया। मुखिया, बारा के जमींदार, को 2007 में गिरफ्तार किया गया, लेकिन 2012 में जमानत पर रिहा। 2013 में CBI कोर्ट ने लक्ष्मणपुर मामले में उन्हें बरी कर दिया।

जातीय हिंसा का चक्र
1990 के दशक में बिहार में नक्सलवाद और सवर्ण सेनाओं का दौर था। रणवीर सेना, 1994 में बनी, सवर्णों की रक्षा के नाम पर यादव-दलित बस्तियों पर हमले करती। मियांपुर से पहले बथानी टोला (1996, 21 मरे), सेनारी (1999, 34 मरे) जैसे नरसंहार हुए। यह चक्र 2005 में नीतीश सरकार आने तक चला।

बिहार की चेतावनी
मियांपुर आज भी दर्द की याद दिलाता है। पीड़ित परिवारों को मुआवजा मिला, लेकिन न्याय अधूरा। यह घटना बिहार की जातीय राजनीति का प्रतीक है, जहां बदला बदले की आग लगाता रहा। आज, 25 साल बाद, यह याद दिलाता है कि शांति के लिए जाति से ऊपर उठना जरूरी है।
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