बिहार में विधानसभा चुनाव 2025 से पहले मतदाता सूची के विशेष गहन संशोधन (Special Intensive Revision – SIR) के दौरान एक चौंकाने वाला खुलासा हुआ है। निर्वाचन आयोग (ECI) ने आठ जिलों में लगभग 3 लाख ऐसे व्यक्तियों को नोटिस जारी किया है, जिनके मतदाता पहचान पत्रों में अनियमितताएं पाई गई हैं। इनमें बांग्लादेश, नेपाल, म्यांमार और अफगानिस्तान के नागरिक शामिल हैं, जो भारतीय मतदाता पहचान पत्र हासिल करने में कामयाब रहे। यह खुलासा बिहार के सीमांचल और कोसी बेल्ट जैसे क्षेत्रों में अवैध घुसपैठ के मुद्दे को फिर से गरमा रहा है, जिसे लेकर सियासी विवाद भी तेज हो गया है।
SIR अभियान और खुलासे
निर्वाचन आयोग ने 24 जून 2025 से शुरू हुए SIR अभियान के तहत बिहार के 7.24 करोड़ मतदाताओं में से 99.11% के दस्तावेजों की जांच पूरी कर ली है। बूथ लेवल ऑफिसर्स (BLOs) द्वारा घर-घर जाकर की गई जांच में पता चला कि कई विदेशी नागरिकों ने आधार कार्ड, राशन कार्ड और डोमिसाइल सर्टिफिकेट जैसे दस्तावेज अवैध रूप से हासिल किए हैं। इनमें से अधिकांश लोग बांग्लादेश, नेपाल, म्यांमार और कुछ हद तक अफगानिस्तान से हैं। आयोग ने बताया कि 1 अगस्त से 30 अगस्त तक इनकी नागरिकता की गहन जांच होगी, और गैर-योग्य व्यक्तियों के नाम 30 सितंबर 2025 को प्रकाशित अंतिम मतदाता सूची से हटा दिए जाएंगे
आठ जिले और सियासी तनाव
यह खुलासा खास तौर पर सीमांचल क्षेत्र (किशनगंज, अररिया, कटिहार, पूर्णिया) और कोसी बेल्ट के कुछ जिलों में सामने आया, जो बांग्लादेश और नेपाल की सीमा से सटे हैं। इन क्षेत्रों में ऐतिहासिक रूप से घुसपैठ का मुद्दा संवेदनशील रहा है। भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) ने इस मुद्दे को जोर-शोर से उठाया है। केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह और बीजेपी नेता सुवेंदु अधिकारी ने इसे विपक्ष की “वोट बैंक” राजनीति से जोड़ा, खासकर पश्चिम बंगाल की तृणमूल कांग्रेस (TMC) और बिहार में राष्ट्रीय जनता दल (RJD) पर निशाना साधा
वहीं, विपक्षी नेता तेजस्वी यादव ने इन दावों को खारिज करते हुए कहा कि यह “चुनावी हथकंडा” है। उन्होंने निर्वाचन आयोग के सूत्रों को “अविश्वसनीय” बताते हुए पूछा कि अगर इतने विदेशी मतदाता सूची में हैं, तो क्या बीजेपी की पिछले चुनावों में जीत भी अवैध थी? तेजस्वी ने यह भी जोड़ा कि बिहार और नेपाल के बीच सांस्कृतिक और सामाजिक रिश्ते हैं, और कई नेपाली बिहार पुलिस और सेना में सेवा दे रहे हैं।[]
विवाद और ऐतिहासिक संदर्भ
बिहार में घुसपैठ का मुद्दा नया नहीं है। 1947 के भारत-पाकिस्तान बंटवारे और 1971 के बांग्लादेश मुक्ति संग्राम के दौरान बिहार और पश्चिम बंगाल से लाखों लोग पूर्वी पाकिस्तान (अब बांग्लादेश) गए थे। इनमें से कई उर्दू भाषी बिहारी मुस्लिम, जिन्हें “बिहारी” कहा जाता है, 1971 के युद्ध में पाकिस्तान समर्थक रुख के कारण बांग्लादेश में भेदभाव का शिकार हुए। कुछ की वापसी भारत में हुई, लेकिन कई आज भी बांग्लादेश में शरणार्थी शिविरों में हैं। इस ऐतिहासिक पलायन ने सीमावर्ती क्षेत्रों में जनसांख्यिकीय बदलाव को जन्म दिया, जिसे अब बीजेपी “घुसपैठ” के रूप में प्रचारित कर रही है।
बिहार SIR अभियान ने अवैध घुसपैठ के मुद्दे को फिर से सुर्खियों में ला दिया है। निर्वाचन आयोग की यह कार्रवाई मतदाता सूची की शुद्धता सुनिश्चित करने के लिए जरूरी है, लेकिन विपक्ष इसे अल्पसंख्यकों और गरीब समुदायों को निशाना बनाने का आरोप लगा रहा है। तेजस्वी यादव और अन्य नेताओं ने इसे “बैकडोर NRC” करार दिया है। दूसरी ओर, बीजेपी इसे राष्ट्रीय सुरक्षा और चुनावी अखंडता से जोड़ रही है। जैसे-जैसे जांच आगे बढ़ेगी, यह मुद्दा बिहार और पड़ोसी राज्यों में सियासी तनाव को और बढ़ा सकता है।
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