राजनीतिक दलों को बड़ा कानूनी झटका
नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट कर दिया है कि आधार(Aadhaar) को नागरिकता का एकमात्र प्रमाण नहीं माना जा सकता। अदालत ने सोमवार को राजनीतिक दलों की उस मांग को खारिज कर दिया, जिसमें चुनाव आयोग(Election Commission) को यह निर्देश देने की बात कही गई थी कि आधार(Aadhaar) को मतदाता सूची में नाम दर्ज कराने के लिए नागरिकता के प्रमाण के रूप में स्वीकार किया जाए। अदालत ने कहा कि आधार पहचान का दस्तावेज तो है, परंतु नागरिकता का प्रमाण नहीं।
अदालत का रुख और कानूनी सीमा
जस्टिस सूर्यकांत(Surya Kant) और जस्टिस जॉयमाल्या बागची की बेंच ने कहा कि वोटर लिस्ट में नाम दर्ज कराने के लिए आधार(Aadhaar) अन्य दस्तावेजों के साथ पहचान के तौर पर इस्तेमाल किया जा सकता है। लेकिन इसकी कानूनी स्थिति को नागरिकता तक नहीं बढ़ाया जा सकता।
पीठ ने पुट्टस्वामी मामले का हवाला देते हुए कहा कि पांच जजों की बेंच ने भी साफ किया था कि आधार केवल पहचान का साधन है, न कि नागरिकता का अधिकार। अदालत ने दोहराया कि हम कानून में लिखी सीमा से आगे नहीं जा सकते।
राजनीतिक दलों की दलील और सवाल
राजद के वकील प्रशांत भूषण ने तर्क दिया कि बिहार में 65 लाख नाम मसौदा मतदाता सूची से हटाए गए हैं। उनका कहना था कि यदि आधार को नागरिकता का प्रमाण मान लिया जाए तो लोगों का नाम आसानी से बहाल हो सकता है।
लेकिन पीठ ने यह पूछते हुए राजनीतिक दलों की मांग को खारिज किया कि आखिर आधार को ही अंतिम प्रमाण बनाने पर इतना जोर क्यों दिया जा रहा है। अदालत ने कहा कि यह हमारी भूमिका नहीं है कि हम आधार की स्थिति को बदल दें।
फर्जी पहचान और आयोग की चिंता
चुनाव आयोग की ओर से सीनियर एडवोकेट राकेश द्विवेदी ने बताया कि बिहार के कुछ जिलों में आधार सैचुरेशन 140% से अधिक है। इसका सीधा मतलब है कि वहां बड़ी संख्या में फर्जी पहचान पत्र बने हैं।
केंद्र ने भी अदालत को बताया कि कैसे अवैध बांग्लादेशी और रोहिंग्या प्रवासी कुछ राज्यों में आधार बनवाने में सफल रहे हैं। इससे मतदाता सूची की विश्वसनीयता पर खतरा मंडरा रहा है।
समाधान और राजनीतिक दलों की भूमिका
पीठ ने कहा कि राजनीतिक दल अपने कार्यकर्ताओं और बूथ एजेंटों को सक्रिय करें ताकि वे उन लोगों की पहचान कर सकें जिनके नाम गलत तरीके से हटाए गए हैं। ऐसे लोगों को चुनाव आयोग के बूथ स्तर के अधिकारियों के पास दावा दायर करने में मदद करनी चाहिए।
अदालत ने यह भी दोहराया कि मतदाता सूची को सही करने के लिए सभी राजनीतिक दलों को जिम्मेदारी से काम करना होगा। केवल आधार पर जोर देने से समस्या का समाधान संभव नहीं है।
सुप्रीम कोर्ट ने आधार को नागरिकता प्रमाण क्यों नहीं माना?
अदालत ने कहा कि आधार पहचान का दस्तावेज है, लेकिन यह नागरिकता या निवास का अधिकार प्रदान नहीं करता। कानून और पुट्टस्वामी फैसले में भी यही स्पष्ट किया गया है।
राजनीतिक दलों की मांग क्यों खारिज हुई?
दल चाहते थे कि आधार को नागरिकता का प्रमाण मानकर लोगों का नाम सूची में जोड़ा जाए। परंतु अदालत ने कहा कि यह कानूनी प्रावधान से परे है और ऐसे आदेश नहीं दिए जा सकते।
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