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Mumbai : मुंबई में ढोल-ताशों की गूंज के साथ भक्तों ने बप्पा को विदाई दी

Surekha Bhosle
Surekha Bhosle
Mumbai : मुंबई में ढोल-ताशों की गूंज के साथ भक्तों ने बप्पा को विदाई दी

Mumbai : अनंत चतुर्दशी के पावन अवसर पर शनिवार को मुंबई (Mumbai) की सड़कों पर ‘ढोल-ताशों’ की गूंज, रंग-बिरंगे गुलाल और भक्तों की भीड़ ने माहौल को भक्तिमय बना दिया। भारी बारिश के बावजूद सैकड़ों लोग बड़ी श्रद्धा से गणेश विसर्जन यात्रा में हिस्सा ले रहे हैं और प्यारे बप्पा को विदाई दे रहे हैं। मुंबई के लालबाग इलाके में प्रसिद्ध तेजुकायाचा राजा, गणेश गली और कई अन्य मंडलों की प्रतिमाएं विसर्जन के लिए पंडालों से निकलीं। हर तरफ ‘गणपति बप्पा मोरया, अगले साल जल्दी आना के जयकारे गूंज रहे थे

रंगमय हुआ पूरा शहर, रंगोली और पुष्पवर्षा का अनोखा संगम

सड़कों पर जहां-जहां से विसर्जन (Ganesh Visarjan) यात्राएं गुजर रही थीं, वहां रंगोली से सजावट की गई थी। लालबाग के श्रॉफ बिल्डिंग के पास परंपरागत पुष्पवर्षा (फूलों की वर्षा) की गई। लोग सड़क के दोनों ओर लाइन लगाकर बप्पा के दर्शन का इंतजार कर रहे थे। हालांकि अभी तक मुंबई का सबसे प्रसिद्ध गणपति लालबागचा राजा की विसर्जन यात्रा अभी शुरू नहीं हुई थी। अभी तक की मिली जानकारी के अनुसार अंतिम तैयारियां चल रही थीं और प्रतिमा गिरगांव चौपाटी के लिए रवाना होगी।

गिरगांव चौपाटी पर जुटे हजारों श्रद्धालु

गिरगांव चौपाटी की ओर जाने वाले रास्तों पर भी हजारों की भीड़ मौजूद थी। यहां फोर्ट, गिरगांव, माझगांव, बायकुला, दादर, माटुंगा, सायन, चेंबूर और अन्य इलाकों की प्रमुख गणेश प्रतिमाएं पहुंचती हैं। इतना ही नहीं पूरे मुंबई में गणपति बप्पा को विदा करते समय लोगों के चेहरों पर उत्साह साफ नजर आ रहा था। ढोल-ताशों की थाप, नाच-गाने और गुलाल से पूरा शहर गणेश भक्ति में डूबा हुआ था।

इतिहास क्या है ढोल का?

लोक संस्कृति का प्रचीन प्रमुख पारम्परिक वाद्य यंत्र है , दमाऊ इसका पूरक वाद्य है जो साथ साथ रहता है । कहते हैं 16वीं शताब्दी के आस पास ढोल की शुरुआत हुई , धीरे धीरे इसने अपना एक विशाल साम्राज्य बना डाला । इसके संगीत साहित्य को ढोल सागर कहते हैं , बजने वाले संगीत को ताल शब्द कहा जाता है ।

ढोल कौन सा यंत्र है?

ढोल लकड़ी, पीतल, चमड़ा, कपास, चर्मपत्र, और धातु से बना एक ताल वाद्य यंत्र होता है। यह लोक वाद्य यंत्र पश्चिम बंगाल, उड़ीसा, केरल, हिमाचल प्रदेश और असम में पाया जाता है। यह मुख्य रूप से पारंपरिक और लोक संगीत तथा नृत्य प्रदर्शन के साथ संगत के लिए उपयोग किया जाता है।

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