नई दिल्ली । भारत में वैज्ञानिक प्रतिभा की कोई कमी नहीं, लेकिन अंतरराष्ट्रीय मंच पर सम्मान की बात करें तो तस्वीर उतनी चमकदार नहीं दिखती। विज्ञान (Science) के क्षेत्र में भारत को आखिरी बार नोबेल सम्मान (Nobel Prize) मिले अब 95 साल बीत चुके हैं। 1930 में सी. वी. रमन ने फिजिक्स में नोबेल पुरस्कार जीतकर इतिहास रचा था, लेकिन उसके बाद से भारत में काम करने वाले किसी भी वैज्ञानिक को यह सम्मान नहीं मिला।
सिर्फ एक भारतीय को मिला नोबेल सम्मान
1930 में सी. वी. रमन को भौतिकी के क्षेत्र में ‘रमन इफेक्ट’ (Raman Effect) की खोज के लिए नोबेल पुरस्कार मिला था। इसके बाद हरगोविंद खुराना (1968, मेडिसिन), सुब्रह्मण्यम चंद्रशेखर (1983, फिजिक्स) और वेंकटरमन रामकृष्णन (2009, केमिस्ट्री) ने नोबेल जीता, लेकिन ये सभी उस समय विदेश में कार्यरत थे और भारतीय नागरिक नहीं थे।
भारत में रिसर्च की रफ्तार क्यों धीमी है
विशेषज्ञों का कहना है कि भारत में रिसर्च और इनोवेशन के लिए माहौल अभी भी सीमित है। सरकारी फंडिंग कम है, नौकरशाही की प्रक्रियाएं धीमी हैं और विश्वविद्यालयों में रिसर्च की संस्कृति कमजोर है। जनसंख्या के अनुपात में शोधकर्ताओं की संख्या वैश्विक औसत से पांच गुना कम बताई जाती है। निजी क्षेत्र में भी रिसर्च को लेकर प्रोत्साहन और निवेश की कमी बनी हुई है।
कई भारतीय वैज्ञानिक रहे नोबेल की दौड़ में
भारत से कई दिग्गज वैज्ञानिकों को नोबेल पुरस्कार के लिए नामांकित किया गया, लेकिन सम्मान नहीं मिला। इनमें मेघनाद साहा, होमी भाभा और सत्येंद्रनाथ बोस (फिजिक्स), जी. एन. रामचंद्रन और टी. शेषाद्रि (केमिस्ट्री), और उपेंद्रनाथ ब्रह्मचारी (मेडिसिन) शामिल हैं।
जगदीश चंद्र बोस और के. एस. कृष्णन जैसे वैज्ञानिकों के योगदान को भी वैश्विक स्तर पर सराहा गया, लेकिन उन्हें सम्मान नहीं मिला। वहीं, ई. सी. जी. सुदर्शन को दो बार नोबेल से वंचित रखा गया।
नोबेल पर अमेरिका और यूरोप का दबदबा
विज्ञान के नोबेल पुरस्कारों में अमेरिका और यूरोप का प्रभुत्व सबसे ज्यादा रहा है। उत्तरी अमेरिका और यूरोप के अलावा केवल नौ देशों के वैज्ञानिकों ने ही विज्ञान के क्षेत्र में यह पुरस्कार जीता है। जापान ने 21 नोबेल जीतकर एशिया में सबसे अधिक सफलता हासिल की है। इन देशों में मजबूत रिसर्च इंफ्रास्ट्रक्चर, वित्तीय सहायता और सहयोगी वातावरण वैज्ञानिक सफलता की कुंजी माने जाते हैं।
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