पटना,। बिहार में विधानसभा चुनाव को लेकर सियासी सरगर्मी बढ़ गई है। जाति और धर्म के आधार पर सीटों का विश्लेषण कर उसी के अनुरूप प्रत्याशियों का चयन किया जा रहा रहा है। एनडीए और महागठबंधन में सभी तरह के समीकरणों का ख्याल रखकर सीट बंटवारे पर मंथन चल रहा है।
लालू का ‘एम-वाई समीकरण’ और उसकी सियासी विरासत
बिहार में लालू यादव ने मुस्लिम-यादव (Muslim- Yadav) समीकरण का ईजाद कर आरजेडी (RJD) की बादशाहत कायम की थी। बाद के सालों में उनके इस समीकरण की काट निकाली गई और आरजेडी सत्ता के अंदर-बाहर आती-जाती रही, लेकिन ज्यादातर समय एनडीए (NDA) के हाथ में ही सत्ता की बागडोर रही। हालांकि, आरजेडी के लिए मुस्लिम-यादव फॉर्मूला आज भी उपयोगी और कारगर है, लेकिन 2020 के विधानसभा चुनाव में एक नए खिलाड़ी ने इस फॉर्मूले में सेंध लगा दी और पांच सीटें जीत लीं।
ओवैसी की एंट्री और सीमांचल में एआईएमआईएम का उभार
उनका नाम है असदुद्दीन ओवैसी। उनकी पार्टी एआईएमआईएम ने साल 2015 में बिहार की एंट्री की थी और अब खासकर सीमांचल क्षेत्र में अहम फैक्टर बन चुकी है। ओवैसी की पार्टी ने इस बार 243 सीटों में से 100 पर उम्मीदवार उतारने का मन बनाया है।
राजनीतिक एक्सपर्ट्स का मानना है कि एआईएमआईएम सबसे ज्यादा आरजेडी को नुकसान पहुंचाएगी।
सीमांचल का सियासी महत्व
सीमांचल को मुस्लिम आबादी वाला क्षेत्र माना जाता है। इस क्षेत्र में मुख्य रूप से चार जिले — कटिहार, किशनगंज, अररिया और पूर्णिया — आते हैं। यह क्षेत्र मुस्लिम बहुल आबादी के चलते लंबे समय से राजनीतिक दलों के लिए आकर्षण का केंद्र रहा है। किशनगंज में ओवैसी ने इस फैक्टर को ध्यान में रखते हुए कहा था कि वे बिहार में कई साथियों से मिलने और नई मित्रता करने के लिए उत्सुक हैं। “राज्य की जनता को एक नया विकल्प चाहिए और हम वही बनने की कोशिश कर रहे हैं,” उन्होंने कहा।
2015 में शुरुआत, 2020 में मजबूत प्रदर्शन
एआईएमआईएम ने साल 2015 में पहली बार बिहार विधानसभा चुनाव लड़ा था। पार्टी ने सीमांचल की छह सीटों पर उम्मीदवार उतारे थे, लेकिन उसे कोई सफलता नहीं मिली थी।
किशनगंज के कोचाधामन विधानसभा सीट से पार्टी के उम्मीदवार और मौजूदा प्रदेश अध्यक्ष अख्तरुल ईमान को करीब 37 हजार वोट मिले थे, जो कुल मतों का करीब 26 फीसदी था।
साल 2020 के बिहार विधानसभा चुनाव में ओवैसी की पार्टी ने अपना अच्छा खासा प्रभाव छोड़ा और सीमांचल में पांच सीटें जीत लीं।
मुस्लिम वोट बैंक का बढ़ता असर
बिहार में मुसलमानों की आबादी 17.7 फीसदी से ज्यादा है। राज्य की 47 विधानसभा सीटें ऐसी हैं, जहां मुस्लिम मतदाता निर्णायक भूमिका निभा सकते हैं।
इनमें 11 सीटों पर मुस्लिम आबादी 40 फीसदी से ज्यादा, सात सीटों पर 30 फीसदी से ज्यादा और 29 सीटों पर 20 से 30 फीसदी के बीच है। इनमें से ज्यादातर सीटें सीमांचल में हैं।
AIMIM की नई रणनीति और लालू-तेजस्वी से दूरी
एआईएमआईएम के प्रदेश अध्यक्ष अख्तरुल ईमान का कहना है कि पार्टी बिहार चुनाव में एक नया विकल्प पेश करने की कोशिश कर रही है।
उन्होंने कहा, “हमारी योजना 100 सीटों पर उम्मीदवार उतारने की है। हमने राजद प्रमुख लालू यादव और महागठबंधन के नेता तेजस्वी यादव को पत्र लिखकर एआईएमआईएम के लिए कुछ सीट की मांग की थी, लेकिन उन्होंने रुचि नहीं दिखाई। अब चुनाव में जनता इसका जवाब देगी।”
2020 में पांच सीटों पर जीत, फिर बड़ा झटका
साल 2020 के विधानसभा चुनाव में ओवैसी की पार्टी ने 20 सीटों पर उम्मीदवार उतारकर राजनीतिक ताकत का प्रदर्शन किया था। इस चुनाव में एआईएमआईएम ने सीमांचल की पांच सीटों — अमौर, बहादुरगंज, बायसी, कोचाधामन और जोकीहाट — पर जीत हासिल की थी। हालांकि, 2022 में पार्टी को बड़ा झटका तब लगा जब अख्तरुल ईमान को छोड़कर बाकी चारों विधायक राजद में शामिल हो गए। 2020 में पार्टी ने 16 मुस्लिम और चार गैर-मुस्लिम प्रत्याशियों को टिकट दिया था, जिनमें से पांच मुस्लिम उम्मीदवारों ने जीत दर्ज की थी।
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