नई दिल्ली। देश में हाड़तोड़ मेहनत करने वाले मजदूरों की मजदूरी अब मनुस्मृति के अनुसार तय की जा सकती है। इस आशय का ड्राफ्ट केंद्र सरकार (Draft Central Government) ने तैयार कर लिया है। बता दें, यह वही मनुस्मृति है, जिसे लेकर आए दिन राजनीति गर्माती रहती है।
नई लेबर पॉलिसी 2025 के ड्राफ्ट में मनुस्मृति का उल्लेख
केंद्र सरकार (Centre Government) की ओर से तैयार की गई लेबर पॉलिसी, 2025 के ड्राफ्ट में बताया गया है कि मनुस्मृति में भी इस बात का उल्लेख है कि कैसे मजदूरी तय होनी चाहिए और श्रमिकों के हितों की रक्षा की जानी चाहिए। ड्राफ्ट में कई प्राचीन ग्रंथों का हवाला दिया गया है, लेकिन मनुस्मृति का जिक्र होने से विवाद की संभावना बढ़ गई है।
प्राचीन ग्रंथों में ‘शुल्क न्याय’ का सिद्धांत
ड्राफ्ट में कहा गया है कि भारतीय ग्रंथों में ‘शुल्क न्याय (Fee Justice) की अवधारणा थी — यानी मजदूर को समय पर वेतन मिलना उसका अधिकार और न्याय है। ऐसा न करना अन्याय की श्रेणी में आता है। इसमें मनुस्मृति, याज्ञवल्क्यस्मृति, नारदस्मृति, शुक्रनीति और अर्थशास्त्र जैसे प्राचीन ग्रंथों का उल्लेख किया गया है, जिनमें राजधर्म, श्रम और मजदूरी के नैतिक नियमों पर बल दिया गया था।
श्रम केवल आर्थिक नहीं, नैतिक कर्तव्य का प्रतीक
ड्राफ्ट में लिखा गया है कि भारत की दृष्टि में श्रम केवल आर्थिक पहलू तक सीमित नहीं है, बल्कि यह एक पवित्र और नैतिक कर्तव्य का प्रतीक है, जो सामाजिक सद्भाव, आर्थिक कल्याण और सामूहिक समृद्धि को बनाए रखता है। भारतीय विचार में काम को धर्म से जोड़ा गया है, और प्रत्येक श्रमिक — चाहे वह कारीगर, किसान, शिक्षक या औद्योगिक मजदूर हो — समाज की रचना में एक अनिवार्य भागीदार माना गया है।
शुक्रनीति में नियोक्ता के कर्तव्यों का भी उल्लेख
ड्राफ्ट में शुक्रनीति का हवाला देते हुए कहा गया है कि किसी कर्मचारी को सुरक्षित और मानवीय माहौल प्रदान करना नियोक्ता का कर्तव्य है। यह दृष्टिकोण श्रमिकों के सम्मानजनक कार्य वातावरण की आवश्यकता को रेखांकित करता है।
विपक्ष ने जताई आपत्ति, कहा- “जातिभेद के ग्रंथ से क्यों ले रहे प्रेरणा?”
इस मामले पर विपक्ष ने केंद्र सरकार पर हमला बोल दिया है। कांग्रेस नेताओं ने कहा कि जातिभेद करने वाली मनुस्मृति का जिक्र करना गलत है। कांग्रेस के वरिष्ठ नेता जयराम रमेश ने कहा कि मनुस्मृति के सिद्धांतों की ओर यह वापसी आरएसएस की परंपरा के अनुरूप है। उन्होंने कहा कि संविधान अपनाए जाने के तुरंत बाद आरएसएस ने मनुस्मृति को आदर्श मानते हुए संविधान पर हमला किया था, क्योंकि संविधान ने मनु के मूल्यों से प्रेरणा नहीं ली थी।
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