नई दिल्ली। बिहार की राजनीति में रणनीतिकार से नेता बने जन सुराज अभियान (Jan Suraj Abhiyan) के संस्थापक प्रशांत किशोर (PK) इन दिनों आक्रामक मोड में हैं। उन्होंने खुद को केवल किंगमेकर नहीं बल्कि किंग बनाने की तैयारी में रखा है। राज्य के बड़े नेताओं को भ्रष्टाचार के आरोपों के कटघरे में खड़ा कर उनकी रणनीति ने सियासी हलचल तेज कर दी है।
के का नया निशाना : NDA के दिग्गज नेता
पीके की रणनीति पहले आरजेडी और तेजस्वी यादव पर केंद्रित रही। अब उनकी स्टीयरिंग एनडीए (NDA) के वरिष्ठ नेताओं की ओर मुड़ चुकी है। जेडीयू के ग्रामीण कार्य मंत्री और नीतीश कुमार के करीबी अशोक चौधरी, भाजपा के उपमुख्यमंत्री सम्राट चौधरी, प्रदेश अध्यक्ष दिलीप जायसवाल, पूर्व अध्यक्ष संजय जायसवाल और मंत्री मंगल पांडेय पीके के टारगेट पर हैं।
केजरीवाल मॉडल की झलक
पीके की रणनीति का अंदाज काफी हद तक “केजरीवाल मॉडल” से मेल खा रहा है।
- नेताओं पर सबूतों के साथ भ्रष्टाचार के आरोप लगाना
- खुद को ईमानदार और जनता का संरक्षक दिखाना
इस कारण जेडीयू और भाजपा दोनों बैकफुट पर हैं और पार्टी के भीतर सवाल उठने लगे हैं।
जेडीयू पर सबसे बड़ा झटका
पीके ने आरोप लगाया कि अशोक चौधरी और उनके परिवार ने दो साल में 200 करोड़ की जमीन खरीदी। चौधरी ने मानहानि का नोटिस भेजा, लेकिन पीके ने आक्रामक रुख बनाए रखा। नतीजतन, नीतीश कुमार ने अपने करीबी मंत्री से दूरी बना ली।
भाजपा नेताओं पर भी कई गंभीर आरोप हैं
- उपमुख्यमंत्री सम्राट चौधरी: हत्या, नाम बदलने और सातवीं फेल होने के आरोप
- प्रदेश अध्यक्ष दिलीप जायसवाल: मेडिकल कॉलेज पर कब्जे का आरोप
- स्वास्थ्य मंत्री मंगल पांडेय: कोविड काल में भ्रष्टाचार और करोड़ों की संपत्ति खरीदने का आरोप
- पूर्व प्रदेश अध्यक्ष संजय जायसवाल: तेल चोरी में लिप्त
इन आरोपों से भाजपा की ईमानदार राजनीति की छवि पर सवाल खड़े हो गए हैं।
राजनीतिक विश्लेषक: इतिहास दोहराने की तैयारी
राजनीतिक जानकारों का कहना है कि जिस तरह 1990 के दशक में लालू प्रसाद यादव चारा घोटाले में घिरे और नीतीश कुमार को उभरने का मौका मिला, ठीक उसी तरह पीके वर्तमान सियासी समीकरणों को बदलने की कोशिश कर रहे हैं। फिलहाल इतना तय है कि बिहार के चुनावी माहौल के केंद्र में पीके आ चुके हैं और उनकी रणनीति ने जेडीयू और भाजपा दोनों के लिए सिरदर्द बढ़ा दिया है।
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