Putin Delhi visit : रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन दो दिवसीय आधिकारिक यात्रा पर भारत आ रहे हैं। इस दौरान वे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मुलाकात करेंगे और भारत–रूस के वार्षिक शिखर सम्मेलन में हिस्सा लेंगे। यह दौरा अंतरराष्ट्रीय राजनीति के लिहाज से बेहद महत्वपूर्ण माना जा रहा है।
पुतिन की इस यात्रा के दौरान नई दिल्ली और मॉस्को के बीच कई अहम समझौते होने की उम्मीद है। यह दौरा ऐसे समय हो रहा है, जब अमेरिका भारत पर रूस से तेल खरीद कम करने का दबाव बना रहा है। साथ ही, यूक्रेन युद्ध को समाप्त करने के लिए अमेरिकी नेतृत्व में रूस और यूक्रेन के बीच बातचीत का दौर भी जारी है।
भारत और रूस दशकों से घनिष्ठ सहयोगी रहे हैं। प्रधानमंत्री मोदी और राष्ट्रपति पुतिन के बीच व्यक्तिगत संबंध भी मजबूत माने जाते हैं। ऐसे में यह बैठक दोनों देशों के लिए रणनीतिक रूप से अहम है।
तेल, व्यापार और रणनीतिक हित
भारत की आबादी लगभग 150 करोड़ है और उसकी आर्थिक विकास दर 8 प्रतिशत से अधिक है। यह भारत को दुनिया की सबसे तेजी से बढ़ती बड़ी अर्थव्यवस्था बनाता है। यही वजह है कि रूस के लिए भारत तेल और अन्य संसाधनों के लिहाज से एक बेहद आकर्षक बाजार है।
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भारत दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा कच्चे तेल का उपभोक्ता है। यूक्रेन युद्ध से पहले भारत के तेल आयात में रूस की हिस्सेदारी केवल 2.5 प्रतिशत थी। लेकिन पश्चिमी प्रतिबंधों और यूरोपीय बाजार से दूरी के चलते रूस ने तेल सस्ता किया, जिसका फायदा उठाते हुए भारत ने खरीद बढ़ाई और यह आंकड़ा 35 प्रतिशत तक पहुंच गया।
इससे भारत को फायदा हुआ, लेकिन अमेरिका नाराज़ हुआ। (Putin Delhi visit) अक्टूबर में ट्रंप प्रशासन ने भारतीय वस्तुओं पर अतिरिक्त 25 प्रतिशत टैरिफ लगाया। इसके बाद भारत द्वारा रूसी तेल की खरीद में कुछ गिरावट देखी गई। बावजूद इसके, पुतिन चाहते हैं कि भारत रूसी तेल की खरीद जारी रखे।
रक्षा सहयोग और श्रम बाजार
सोवियत काल से ही रूस भारत का प्रमुख रक्षा साझेदार रहा है। पुतिन की यात्रा से पहले खबरें आईं कि भारत रूस से अत्याधुनिक लड़ाकू विमान और एयर डिफेंस सिस्टम खरीद सकता है। इससे दोनों देशों का रक्षा सहयोग और मजबूत हो सकता है।
रूस में श्रमिकों की कमी है और ऐसे में भारत को वह कुशल मानव संसाधन के स्रोत के रूप में भी देखता है।
भू-राजनीतिक संदेश
क्रेमलिन यह दिखाना चाहता है कि यूक्रेन युद्ध के कारण रूस को अलग-थलग करने की पश्चिमी कोशिशें नाकाम रही हैं। भारत की यात्रा इसी रणनीति का हिस्सा मानी जा रही है।
कुछ महीने पहले पुतिन ने चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग से मुलाकात की थी और उसी दौरान प्रधानमंत्री मोदी से भी भेंट हुई थी। इन तीनों नेताओं की तस्वीरों ने ‘मल्टीपोलर वर्ल्ड’ की अवधारणा को मजबूती दी थी।
रूस चीन के साथ अपने संबंधों को ‘नो लिमिट्स पार्टनरशिप’ बताता है, वहीं भारत के साथ वह ‘विशेष और विशेषाधिकार प्राप्त रणनीतिक साझेदारी’ पर जोर देता है। यह सब ऐसे समय में हो रहा है, जब यूरोपीय संघ के साथ रूस के रिश्ते काफी तनावपूर्ण हैं।
आने वाले दिनों में भारत–रूस मित्रता, व्यापार समझौते और आर्थिक सहयोग पर जोरदार चर्चा सुनाई देने की संभावना है।
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