Latest Hindi News : व्यक्तिगत सद्गुणों से सामूहिक उत्थान की राह दिखा रहा है संघ

By Anuj Kumar | Updated: October 2, 2025 • 3:34 PM

नागपुर। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक डॉ. मोहन भागवत (Dr. Mohan Bhagwat) ने कहा कि लंबे समय तक चले विदेशी आक्रमणों के कारण हमारी देशी प्रणालियां नष्ट हो गई थीं, जिन्हें अब समाज और शिक्षा प्रणाली के अंदर दोबारा स्थापित करने की आवश्यकता है। उन्होंने कहा कि भारत को फिर से आत्मस्वरूप में खड़ा करने का समय आ गया है।

सिर्फ शारीरिक अभ्यास नहीं, व्यक्तित्व निर्माण की प्रयोगशाला

भागवत ने कहा कि हमें ऐसे व्यक्तियों को तैयार करना होगा जो इस कार्य को कर सकें। इसके लिए सिर्फ मानसिक सहमति नहीं, बल्कि मन, वाणी और कर्म में भी बदलाव लाना होगा। यह बदलाव किसी भी सिस्टम के बिना संभव नहीं है और संघ की शाखा यही एक मजबूत व्यवस्था है। उन्होंने बताया कि शाखा केवल शारीरिक अभ्यास की जगह नहीं है, बल्कि यह व्यक्तित्व निर्माण और समाज में सकारात्मक आदतों के निर्माण की प्रयोगशाला है।

व्यक्तिगत सद्गुण और सेवा भावना पर जोर

भागवत ने कहा कि समाज की उन्नति के लिए सिर्फ व्यवस्थाएं जिम्मेदार नहीं होतीं, बल्कि परिवर्तन की असली शक्ति समाज की इच्छाशक्ति में होती है। इसलिए व्यक्तिगत सद्गुणों, सामूहिकता और सेवा भावना को समाज में फैलाने का कार्य संघ कर रहा है। उन्होंने कहा कि समाज का संगठित, शील संपन्न बल इस देश की एकता, अखंडता, विकास और सुरक्षा की गारंटी है।

आतंकवाद और राष्ट्रीय एकता का जिक्र

मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक, भागवत ने पहलगाम हमले (Pahalgam Attack) का भी जिक्र किया। उन्होंने कहा कि आतंकवादियों ने धर्म पूछकर उन्हें मारा। इस घटना के बाद सरकार की दृढ़ता, सेना का पराक्रम और समाज की एकता का अद्भुत दर्शन हुआ। उन्होंने इसे देश की सबसे बड़ी ताकत बताया।

पर्यावरण संकट पर चिंता

संघ प्रमुख ने कहा कि जो भौतिकवादी और उपभोक्तावादी विकास मॉडल (Model) विश्वभर में अपनाए जा रहे हैं, उनके दुष्परिणाम प्रकृति पर साफ दिख रहे हैं। अनियमित वर्षा, भूस्खलन और ग्लेशियरों का सूखना इसकी साक्षी हैं। उन्होंने कहा कि हमें इस दिशा में सोच-समझकर कदम उठाने होंगे।

वैश्विक स्तर पर भारत की भूमिका

भागवत ने कहा कि भारत की वसुधैव कुटुंबकम की परंपरा ही उसकी ताकत है और इस विचार को दुनिया तक पहुंचाना हमारा कर्तव्य है। उन्होंने प्रजातांत्रिक मार्गों को ही परिवर्तन का साधन बताया।

हिंदू राष्ट्र और राष्ट्रीय चरित्र पर विचार

भागवत ने कहा कि हिंदू कभी राज्य पर आधारित नहीं रहा, बल्कि यह एक राष्ट्र है। उन्होंने कहा कि विविधताओं के बावजूद भारतीय संस्कृति हिंदू राष्ट्रीयता है। यदि किसी को हिंदू शब्द से आपत्ति है तो वह भारतीय कहे।

संघ का संकल्प और शाखा की भूमिका

संघ प्रमुख ने कहा कि आदत बदले बिना परिवर्तन नहीं आता। जैसा देश चाहिए वैसा खुद को बनना होगा। संघ की शाखा इसी आदत परिवर्तन का माध्यम है। उन्होंने कहा कि संघ को लालच भी दिखाया गया, लेकिन संघ अपने काम से नहीं डिगा और शाखा को निरंतर चलाता रहा।

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