नई दिल्ली । ऑपरेशन सिंदूर के बाद पाकिस्तान के साथ देश की पश्चिमी सीमा पर जारी तनाव के बीच रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन (DRDO) ने स्वदेशी विकसित सैन्य युद्धक पैराशूट सिस्टम (MCPS) का 32 हजार फीट की ऊंचाई से सफल परीक्षण किया। इसे भारतीय वायुसेना द्वारा अंजाम दिया गया।
रक्षा मंत्री और डीआरडीओ अध्यक्ष ने दी बधाई
रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह (Rajnath Singh) और डीआरडीओ अध्यक्ष डॉ. समीर वी. कामत ने इस सफलता के लिए संगठन, सशस्त्र सेनाओं और उद्योग जगत को बधाई दी। मंत्रालय ने बताया कि परीक्षण के दौरान वायुसेना ने सिस्टम की क्षमता, भरोसेमंदता और उन्नत डिजाइन को पूरी तरह प्रदर्शित किया।
25 हजार फीट से ऊपर भी ऑपरेट करने में सक्षम
परीक्षण के बाद MCPS को अब ऐसा सिस्टम माना गया है, जिसे सशस्त्र सेनाएं 25 हजार फीट से अधिक की ऊंचाई पर भी ऑपरेट कर सकती हैं।
डेवलपमेंट और उन्नत फीचर्स
एमसीपीएस को डीआरडीओ की आगरा एरियल डिलीवरी रिसर्च एंड डेवलपमेंट इस्टैब्लिशमेंट और बेंगलुरु की डिफेंस बायो इंजीनियरिंग एंड इलेक्ट्रोमेडिकल लेबोरेटरी द्वारा विकसित किया गया है।
इसमें शामिल उन्नत फीचर्स:
- पैराट्रूपर सुरक्षित विमान से बाहर निकल सकते हैं
- पूर्व निर्धारित ऊंचाई वाले इलाकों में आसानी से तैनाती
- दिशा ज्ञान के साथ चयनित क्षेत्र में सटीक लैंडिंग
- कम रखरखाव और मरम्मत का समय
स्वदेशी तकनीक से बढ़ेगा आत्मनिर्भरता का भरोसा
इस सिस्टम की सफलता से भारत अब आयातित उपकरणों पर निर्भरता कम कर सकेगा। यह पैराशूट सिस्टम सैन्यबलों के लिए ज्यादा मुफीद साबित होगा और युद्धकाल में रणनीतिक बढ़त प्रदान करेगा।
पैराशूट कितने प्रकार के होते हैं?
व्यक्तिगत रैम-एयर पैराशूट मोटे तौर पर दो प्रकारों में विभाजित होते हैं – आयताकार या पतला – जिन्हें आमतौर पर क्रमशः “स्क्वायर” या “एलिप्टिकल” कहा जाता है। मध्यम-प्रदर्शन वाले कैनोपी (रिजर्व-, बेस- , कैनोपी फॉर्मेशन-, और एक्यूरेसी-टाइप) आमतौर पर आयताकार होते हैं।
पैराशूट का क्या सिद्धांत है?
एक बार पैराशूट सख्त हो जाने पर, पंख जैसा आकार वास्तव में आगे की ओर गति और उठाव पैदा करता है। पैराशूट का ऊपरी हिस्सा थोड़ा सा कूबड़ जैसा होता है, और इस कूबड़ के कारण हवा सपाट तल के नीचे की तुलना में ऊपर की ओर ज़्यादा दूर तक जाती है। इससे हवा ऊपर की ओर तेज़ी से चलती है, जिससे नीचे की हवा की तुलना में कम दबाव बनता है।
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