जमानत के बाद कोर्ट परिसर के बाहर सुभासपा (SBSP) के कई पदाधिकारी और कार्यकर्ता राजभर के समर्थन में मौजूद थे, जिससे इस मामले ने सियासी रंग भी ले लिया। राजभर (OP Rajbhar) ने कोर्ट में पेश होने से पहले मीडिया से बातचीत में मामले को हल्का करने की कोशिश की और कहा कि वह संवैधानिक प्रक्रिया का पालन करने आए हैं। हालांकि, उन्होंने मामले की गंभीरता को कमतर आंकते हुए इसे सामान्य चुनावी बयानबाजी से जोड़ा। इस घटना ने एक बार फिर राजभर की छवि को चर्चा में ला दिया, जो अक्सर अपने विवादित बयानों के लिए सुर्खियों में रहते हैं।
राजनैतिक दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण
यह मामला राजनैतिक दृष्टिकोण से भी महत्वपूर्ण है, क्योंकि मऊ क्षेत्र में सुभासपा का मजबूत जनाधार है, और राजभर इस क्षेत्र को अपनी राजनीति का केंद्र मानते हैं। 2019 के बाद से राजभर ने अपनी पार्टी को मजबूत करने के लिए कई रणनीतिक कदम उठाए हैं, जिसमें भाजपा के साथ गठबंधन और फिर सपा के साथ गठजोड़ शामिल रहा है। वर्तमान में वह योगी आदित्यनाथ सरकार में कैबिनेट मंत्री हैं, और मऊ की सदर सीट पर संभावित उपचुनाव को लेकर उनकी पार्टी ने दावेदारी ठोकी है।
स्थिति को और मजबूत करने की कोशिश
इस जमानत के बाद राजभर ने अपनी स्थिति को और मजबूत करने की कोशिश की है, ताकि क्षेत्र में उनकी राजनीतिक प्रभुत्व बनी रहे। हालांकि, इस मामले ने एक बार फिर सुभासपा और भाजपा के बीच गठबंधन की गतिशीलता पर सवाल उठाए हैं। कुछ राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि राजभर की यह जमानत और उनके बयानों से भाजपा के साथ उनके रिश्तों पर असर पड़ सकता है, खासकर मऊ और गाजीपुर जैसे क्षेत्रों में, जहां दोनों पार्टियों का जनाधार ओवरलैप करता है।
राजभर ने कोर्ट के बाहर यह भी कहा कि वह अपनी पार्टी के हितों को प्राथमिकता देंगे और मऊ की सदर सीट पर सुभासपा का दावा बरकरार रखेंगे। इस घटना ने मऊ के आगामी उपचुनाव की सियासी सरगर्मियों को और तेज कर दिया है
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