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Latest Hindi News : Supreme court- तलाक से पहले वैवाहिक  टूटने के सबूत जरूरी- सुप्रीम कोर्ट

Anuj Kumar
Anuj Kumar
Latest Hindi News : Supreme court- तलाक से पहले वैवाहिक  टूटने के सबूत जरूरी- सुप्रीम कोर्ट

नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने तलाक के मामलों में बड़ा निर्देश जारी करते हुए कहा कि केवल यह कहकर तलाक नहीं दिया जा सकता कि वैवाहिक रिश्ता (Marital Relationship) “पूरी तरह टूट चुका” है। इसके लिए ठोस और विश्वसनीय सबूत होना जरूरी है कि किसी एक पक्ष ने जानबूझकर दूसरे को छोड़ा हो या साथ रहने से स्पष्ट इनकार किया हो।

सुप्रीम कोर्ट की दो पीठ का फैसला

14 नवंबर 2025 को जस्टिस सूर्यकांत (Chief Justice) और जस्टिस जॉयमाला बागची की पीठ ने विस्तृत आदेश जारी किया। पीठ ने कहा कि तलाक देने से पहले अदालत को दोनों पक्षों की परिस्थितियों, सामाजिक स्थिति, आर्थिक पृष्ठभूमि और बच्चों के हित को ध्यान में रखकर गहन जांच करनी चाहिए।

बच्चों के हित को सबसे संवेदनशील कारक माना

कोर्ट ने कहा कि बच्चों की मौजूदगी में मामला और भी संवेदनशील हो जाता है, क्योंकि तलाक का सबसे गहरा प्रभाव उन पर ही पड़ता है। इस मामले की सुनवाई उत्तराखंड के एक दंपती के विवाद से शुरू हुई थी।

मामला कैसे शुरू हुआ: वर्षों पुरानी कानूनी लड़ाई

पति-पत्नी की शादी 2010 से पहले हुई थी।

  • 2010: पति ने पहली बार क्रूरता का आरोप लगाकर तलाक की अर्जी दी, लेकिन बाद में वापस ले ली।
  • 2013: दूसरी याचिका दाखिल की, जिसमें कहा गया कि पत्नी घर छोड़कर चली गई।
  • 2018: ट्रायल कोर्ट ने सबूत न मिलने पर याचिका खारिज कर दी।
  • 2019: उत्तराखंड हाईकोर्ट ने ट्रायल कोर्ट का फैसला पलटते हुए पति को तलाक दे दिया।

पत्नी की अपील और सुप्रीम कोर्ट की कड़ी टिप्पणी

महिला ने हाईकोर्ट के फैसले को सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) में चुनौती दी। शीर्ष अदालत ने पाया कि हाईकोर्ट ने केवल पति के मौखिक बयानों पर भरोसा किया था, जबकि पत्नी का दावा था कि उसे ससुराल वालों ने जबरन घर से निकाला और वह अकेले बच्चे की परवरिश कर रही थी।
कोर्ट ने इसे गंभीर चूक बताया।

“महज अलग रहना परित्याग नहीं” — सुप्रीम कोर्ट

कोर्ट ने हिंदू विवाह अधिनियम की व्याख्या करते हुए कहा:

  • अलग रहना स्वयं में परित्याग नहीं माना जाएगा।
  • यह साबित होना आवश्यक है कि अलगाव जानबूझकर और बिना उचित कारण किया गया था।
  • कई महिलाएँ घरेलू हिंसा, उत्पीड़न या मजबूरी में घर छोड़ती हैं—ऐसे में उन्हें ही दोषी ठहराना न्यायसंगत नहीं माना जा सकता।

सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट का फैसला रद्द कर मामला लौटाया

अंत में सुप्रीम कोर्ट ने 2019 का हाईकोर्ट का आदेश रद्द कर दिया और मामले को नए सिरे से सुनवाई के लिए वापस हाईकोर्ट भेज दिया। कोर्ट ने निर्देश दिया कि सभी गवाहों, परिस्थितियों और सबूतों की फिर से पूर्ण जांच की जाए।

तलाक मामलों के लिए नया मानदंड

विशेषज्ञों का कहना है कि यह फैसला देश की सभी अदालतों के लिए एक नया मानदंड स्थापित करता है।
अब तलाक के मामलों में जल्दबाजी, एकतरफा बयान या अपूर्ण सबूतों के आधार पर फैसला देना कठिन होगा। इससे कई शादियाँ बच सकती हैं और महिलाओं व बच्चों को अनावश्यक मानसिक और आर्थिक आघात से राहत मिलेगी

सुप्रीम कोर्ट का फैसला कौन बदल सकता है?

सुप्रीम कोर्ट के फैसले को संसद कानून बनाकर बदल सकती है, लेकिन कानून को फैसले के कानूनी आधार को संबोधित करना होगा। साथ ही, सुप्रीम कोर्ट स्वयं अपने ही फैसले की समीक्षा (review) या उसे पलट सकती है, जो कि दुर्लभ मामलों में होता है। राष्ट्रपति सीधे तौर पर फैसले को नहीं बदल सकते हैं, लेकिन संसद के प्रस्ताव पर राष्ट्रपति न्यायाधीश को हटा सकते हैं। 

सबसे पावरफुल जज कौन है?

सुप्रीम कोर्ट में सबसे बड़ा पद चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया का होता है. हाल ही में जस्टिस सूर्यकांत देश के 53वें चीफ जस्टिस बने हैं, उन्होंने जस्टिस बीआर गवई की जगह ली.

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