नई दिल्ली,। सुप्रीम कोर्ट ने प्रेसिडेंशियल रेफरेंस (Presidensial Refrence) मामले पर गुरुवार को ऐतिहासिक फैसला सुनाते हुए राज्यपालों की विधायी शक्तियों और उनकी सीमाओं को स्पष्ट किया। कोर्ट ने कहा कि राज्यपाल के पास यह अधिकार नहीं है कि वह किसी विधेयक को अनिश्चितकाल तक रोक कर रखें।
सीजेआई बीआर गवई (CJI B R Gawai) की अध्यक्षता वाली संविधान पीठ ने स्पष्ट किया कि राज्यपाल के पास बिल पर निर्णय लेने के केवल तीन संवैधानिक विकल्प हैं—
- मंज़ूरी देना
- राष्ट्रपति के पास भेजना
- विधानसभा को वापस भेजना
इसके अलावा किसी बिल को बिना निर्णय के लंबित रखना संवैधानिक रूप से गलत है।
समय-सीमा निर्धारित करने की मांग खारिज
सुप्रीम कोर्ट ने राज्यपाल द्वारा बिल पर निर्णय की समय-सीमा तय करने की मांग भी खारिज कर दी। सीजेआई गवई ने कहा कि संविधान के अनुच्छेद 200 और 201 में जानबूझकर लचीलापन रखा गया है, इसलिए अदालत या विधानमंडल राज्यपाल या राष्ट्रपति पर कोई निश्चित समयसीमा नहीं थोप सकते।
तमिलनाडु विवाद से जुड़ा मामला
यह फैसला तमिलनाडु सरकार (Tamilnadu Government) और राज्यपाल के बीच खींचतान से जुड़े मामले पर आया है। राज्यपाल द्वारा कई बिल लंबित रखने पर सुप्रीम कोर्ट पहले ही टिप्पणी कर चुका था कि राज्यपाल के पास कोई “वीटो पावर” नहीं है। 8 अप्रैल को सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि राष्ट्रपति को राज्यपाल द्वारा भेजे गए बिल पर तीन माह में निर्णय लेना होगा। इसी संदर्भ में राष्ट्रपति ने सुप्रीम कोर्ट से राय मांगते हुए 14 सवाल पूछे थे।
राज्यपालों की भूमिका पर कोर्ट की सख्त टिप्पणी
अदालत ने अपने ताज़ा फैसले में कहा कि—
- राज्यपाल बिलों को मनमाने तरीके से लंबित नहीं रख सकते
- ऐसा करना संघवाद के सिद्धांत के खिलाफ है
- समय-सीमा तय करना अदालत के अधिकार क्षेत्र से बाहर है, यह शक्तियों के पृथक्करण का उल्लंघन होगा
सुप्रीम कोर्ट में कितने ब्राह्मण जज हैं?
सुप्रीम कोर्ट में ब्राह्मण न्यायाधीशों की संख्या को लेकर कोई आधिकारिक रिकॉर्ड उपलब्ध नहीं है, लेकिन अलग-अलग विश्लेषणों के अनुसार 2023 तक लगभग 12 से 15 न्यायाधीश ब्राह्मण समुदाय से थे। यह संख्या सुप्रीम कोर्ट में कुल न्यायाधीशों की संख्या और ब्राह्मण समुदाय की आबादी के अनुपात पर बहस का मुद्दा बनी हुई है।
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