नई दिल्ली। भारत के आम नागरिकों के लिए संपत्ति खरीदना और बेचना अब मानसिक रूप से थका देने वाला, यानी ‘ट्रॉमेटिक’ अनुभव बन गया है। ऐसा कहना है सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) का। अदालत ने शुक्रवार को एक अहम टिप्पणी करते हुए कहा कि औपनिवेशिक युग के पुराने कानूनों के कारण भ्रम और मुकदमेबाजी दोनों बढ़ रहे हैं, जिससे आम लोगों के लिए प्रॉपर्टी ट्रांजैक्शन बेहद जटिल हो गया है।
कानून आयोग को सौंपा अध्ययन का जिम्मा
सुप्रीम कोर्ट ने कानून आयोग को निर्देश दिया है कि वह एक विस्तृत अध्ययन कर रिपोर्ट तैयार करे। इसमें केंद्र और राज्य सरकारों, कानूनी विशेषज्ञों और हितधारकों से चर्चा कर सुझाव दिए जाएं ताकि संपत्ति से जुड़े विवादों को कम किया जा सके। अदालत ने कहा कि देश में लगभग 66 प्रतिशत दीवानी मुकदमे संपत्ति विवादों से संबंधित हैं, जो इस समस्या की गंभीरता को दर्शाता है।
ब्रिटिश दौर के पुराने कानून बने बड़ी अड़चन
कोर्ट ने कहा कि भारत की संपत्ति व्यवस्था अब भी ब्रिटिश कालीन कानूनों जैसे ट्रांसफर ऑफ प्रॉपर्टी ऐक्ट 1882, इंडियन स्टैम्प ऐक्ट 1899 और रजिस्ट्रेशन ऐक्ट 1908 पर आधारित है। ये कानून आज की जरूरतों के अनुरूप नहीं हैं और स्वामित्व (TiTile) तथा पंजीकरण (रजिस्ट्रेशन) के बीच विरोधाभास पैदा करते हैं।
रजिस्ट्री मालिक होने का सबूत नहीं -सुप्रीम कोर्ट
अदालत ने स्पष्ट किया कि रजिस्ट्रेशन ऐक्ट केवल दस्तावेज के पंजीकरण की गारंटी देता है, स्वामित्व की नहीं। रजिस्ट्री सिर्फ एक सार्वजनिक रेकॉर्ड है, यह मालिकाना हक का अंतिम प्रमाण नहीं होता। खरीदारों को दशकों पुराने दस्तावेजों की चेन साबित करनी पड़ती है कि संपत्ति वैध है।
‘जाली दस्तावेजों और बिचौलियों का जाल’
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि मौजूदा प्रणाली जाली दस्तावेजों, अतिक्रमण, बिचौलियों की भूमिका और असमान राज्यीय नियमों से ग्रस्त है। अदालत ने टिप्पणी की — “भारत में प्रॉपर्टी खरीदना-बेचना अब एक त्रासदी जैसा अनुभव बन चुका है।”
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