सुप्रीम कोर्ट की तीखी सुनवाई बिहार (Bihar) में विधानसभा चुनाव से पहले चुनाव आयोग (ECI) द्वारा शुरू की गई स्पेशल इंटेंसिव रिवीजन (SIR) ने सियासी तूफान खड़ा कर दिया है। 24 जून 2025 को शुरू हुए इस अभियान के 22 दिनों के भीतर, विपक्षी दलों ने इसे “वोटरबंदी” और “NRC का बैकडोर” करार देकर सड़कों से लेकर सुप्रीम कोर्ट तक हंगामा मचाया।
सुप्रीम कोर्ट में जस्टिस सूर्यकांत और जॉयमाल्या बागची की बेंच ने ECI से तीखे सवाल पूछे, खासकर 65 लाख मतदाताओं की सूची से हटाए जाने और 22 लाख मृतकों की सूची की पारदर्शिता पर। इस बीच, विपक्ष ने संसद से सड़कों तक विरोध प्रदर्शन किए, जबकि सत्तारूढ़ गठबंधन ने SIR को जरूरी बताया। आखिर इन 22 दिनों में राजनीतिक दलों ने क्या किया, और सुप्रीम कोर्ट ने क्या सवाल उठाए? आइए, पूरी कहानी जानते हैं।
क्या है पूरा मामला ?
1. ECI का SIR आदेश और विवाद की शुरुआत:
24 जून 2025 को ECI ने बिहार में SIR शुरू करने की घोषणा की, जिसका मकसद मतदाता सूची को शुद्ध करना था। ECI ने कहा कि शहरीकरण, प्रवास, मृतकों की गलत सूचना और अवैध प्रवासियों की मौजूदगी के कारण यह जरूरी है। लेकिन विपक्ष ने इसे मतदाताओं को हटाने की साजिश करार दिया, खासकर दलितों, पिछड़ों, और अल्पसंख्यकों को निशाना बनाने का आरोप लगाया।
2. विपक्ष का सड़क से संसद तक विरोध: – 6 अगस्त 2025:
कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने X पर SIR के खिलाफ आवाज उठाई, इसे दलितों, पिछड़ों, आदिवासियों और प्रवासी मजदूरों के मताधिकार पर हमला बताया। उन्होंने संसद में चर्चा की मांग की, लेकिन सरकार ने इसे ठुकरा दिया।
– 11 अगस्त 2025: विपक्षी INDIA गठबंधन के नेताओं, जिनमें राहुल गांधी, अखिलेश यादव, और मल्लिकार्जुन खड़गे शामिल थे, ने संसद से ECI कार्यालय तक मार्च निकाला। दिल्ली पुलिस ने बैरिकेड लगाए, जिसे अखिलेश यादव ने लांघकर विरोध जताया।
– 1 अगस्त 2025: INDIA गठबंधन के सांसदों ने संसद परिसर में SIR के खिलाफ प्रदर्शन किया, इसे “नागरिकता जांच” और “वोटर दमन” का हथियार बताया।
3. सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई और तीखे सवाल: –
10 जुलाई 2025: सुप्रीम कोर्ट ने ECI से SIR की समयसीमा और वैधानिकता पर सवाल उठाए। जस्टिस बागची ने पूछा, “चुनाव से ठीक पहले इतने बड़े पैमाने पर यह कैसे संभव है?” कोर्ट ने ECI से आधार, मतदाता पहचान पत्र, और राशन कार्ड को वैध दस्तावेज मानने का सुझाव दिया।
14 अगस्त 2025: कोर्ट ने ECI से पूछा कि 22 लाख मृतकों की सूची को सार्वजनिक क्यों नहीं किया गया। जस्टिस सूर्यकांत ने कहा, “अगर कोई मृत घोषित व्यक्ति जीवित है, तो हम तुरंत हस्तक्षेप करेंगे।” कोर्ट ने पारदर्शिता की कमी पर नाराजगी जताई।
– 13 अगस्त 2025: वरिष्ठ वकील कपिल सिब्बल और अभिषेक मनु सिंघवी ने तर्क दिया कि SIR मौजूदा मतदाताओं पर नागरिकता साबित करने का बोझ डालता है, जो 1995 के लाल बाबू हुसैन मामले के फैसले के खिलाफ है। ECI ने जवाब दिया कि 17,665 दावे और आपत्तियां मिलीं, लेकिन कोई भी राजनीतिक दल ने औपचारिक आपत्ति दर्ज नहीं की।
4. ECI का पक्ष और सत्तारूढ़ गठबंधन का समर्थन:
ECI ने दलील दी कि SIR 2003 के बाद पहली गहन संशोधन प्रक्रिया है, जो बिहार की 7.89 करोड़ मतदाता सूची को साफ करने के लिए जरूरी है। सत्तारूढ़ NDA, खासकर चिराग पासवान, ने इसे समर्थन दिया, इसे “NRC नहीं, बल्कि अवैध प्रवासियों को रोकने का कदम” बताया। ECI ने कहा कि 91.69% मतदाताओं ने गणना फॉर्म जमा किए, और हटाए गए नामों को आपत्ति का मौका दिया
5. सामाजिक और राजनीतिक प्रभाव:
विपक्ष ने SIR को गरीब, प्रवासी, और अल्पसंख्यक समुदायों के खिलाफ बताया, क्योंकि आधार और राशन कार्ड जैसे आम दस्तावेज स्वीकार नहीं किए जा रहे। योगेंद्र यादव जैसे याचिकाकर्ताओं ने कहा कि 29 लाख मतदाता सूची से गायब हैं, जो हाशिए पर रहने वाले समुदायों को प्रभावित करेगा। दूसरी ओर, ECI ने दावा किया कि 22 लाख मृत, 7 लाख दोहरे पंजीकरण, और 35 लाख प्रवासित मतदाताओं की पहचान की गई।
पिछले 22 दिनों में बिहार SIR ने राजनीतिक माहौल को गरमा दिया है। विपक्ष ने इसे मतदाताओं को दबाने की साजिश बताया, तो NDA ने इसे मतदाता सूची की शुद्धता के लिए जरूरी कदम करार दिया। सुप्रीम कोर्ट की तीखी टिप्पणियां और ECI से पारदर्शिता की मांग इस मामले को और जटिल बनाती हैं।
क्या SIR बिहार के मतदाताओं के अधिकारों की रक्षा करेगा, या यह लाखों लोगों को मताधिकार से वंचित कर देगा? यह सवाल सुप्रीम कोर्ट के अंतिम फैसले और बिहार विधानसभा चुनाव पर निर्भर करता है। फिलहाल, यह सियासी जंग और कोर्ट की सुनवाई देश की निगाहों में है।
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