National: भारत से गिनी तक रेल की नई शुरुआत, पीएम दिखाएंगे हरी झंडी

By Anuj Kumar | Updated: June 19, 2025 • 1:04 PM

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी 20 जून 2025 को बिहार के मरहौरा रेल कारखाने में निर्मित पहले स्वदेशी लोकोमोटिव इंजन को गिनी गणराज्य को निर्यात किए जाने के लिए हरी झंडी दिखाएंगे। 

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी (Narendra Modi) 20 जून 2025 को बिहार के मरहौरा रेल कारखाने में निर्मित पहले स्वदेशी लोकोमोटिव इंजन को गिनी गणराज्य को निर्यात किए जाने के लिए हरी झंडी दिखाएंगे। यह अवसर भारत के लिए न केवल औद्योगिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है, बल्कि अंतरराष्ट्रीय व्यापार (International Trade) और ‘मेक इन इंडिया'(Make In India) पहल की वैश्विक साख को भी मजबूत करने वाला है। इस ऐतिहासिक जानकारी की पुष्टि रेलवे बोर्ड के सूचना एवं प्रचार विभाग के कार्यकारी निदेशक दिलीप कुमार ने की।

गिनी के लौह अयस्क प्रोजेक्ट के लिए भारत बनेगा रणनीतिक साझेदार

मरहौरा में निर्मित इन लोकोमोटिव इंजनों का उपयोग अफ्रीकी देश गिनी के सिमफेर क्षेत्र में स्थित सिमंडौ लौह अयस्क परियोजना में किया जाएगा। इस पूरी आपूर्ति की अनुमानित लागत 3,000 करोड़ रुपये से अधिक बताई जा रही है, जो भारत और गिनी के बीच औद्योगिक सहयोग को एक नई ऊंचाई पर ले जाएगा।

तीन वर्षों में चरणबद्ध रूप से होगी डिलीवरी


रेल मंत्रालय के अनुसार, इन इंजनों की आपूर्ति तीन चरणों में पूरी की जाएगी:
➤ 2025-26 (चालू वित्त वर्ष) में – 37 इंजन,
➤ 2026-27 (अगला वित्त वर्ष) में – 82 इंजन,
➤ 2027-28 (तीसरा वर्ष) में – शेष 31 इंजन।
इन सभी इंजनों का निर्माण मरहौरा रेल फैक्ट्री में अत्याधुनिक तकनीक के साथ किया गया है, जो भारत की निर्माण क्षमता और इंजीनियरिंग उत्कृष्टता को दर्शाता है।

मरहौरा कारखाना: भारत की रेल निर्माण क्षमता का प्रतीक

बिहार का मरहौरा रेल इंजन कारखाना देश के प्रमुख लोकोमोटिव उत्पादन केंद्रों में से एक बन चुका है। यहां तैयार किए जा रहे इंजन न केवल घरेलू ज़रूरतों को पूरा कर रहे हैं, बल्कि अब अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी निर्यात किए जाने लगे हैं। यह ‘मेक इन इंडिया’ और ‘वोकल फॉर लोकल’ जैसे अभियानों की सफलता का प्रत्यक्ष उदाहरण है।

तकनीकी रूप से उन्नत, वैश्विक मांग के अनुरूप

इन इंजनों को अंतरराष्ट्रीय मानकों के अनुरूप तैयार किया गया है। इनकी खासियत यह है कि ये भारी खनिजों के परिवहन के लिए सक्षम हैं, विशेष रूप से लौह अयस्क जैसे संसाधनों को लंबे रूट पर सुगमता से ले जाने के लिए डिज़ाइन किए गए हैं। इससे न केवल भारत के इंजीनियरिंग क्षेत्र को वैश्विक मंच पर मान्यता मिलेगी, बल्कि विदेशी मुद्रा अर्जन में भी उल्लेखनीय योगदान होगा।

भारत बन रहा है ‘रेलवे निर्यात हब’

इस परियोजना की शुरुआत भारत के रेलवे क्षेत्र के लिए एक ऐतिहासिक मोड़ साबित होगी। इससे यह स्पष्ट होता है कि भारत अब केवल अपने लिए निर्माण नहीं कर रहा, बल्कि वैश्विक ज़रूरतों को भी पूरा कर रहा है। प्रधानमंत्री द्वारा हरी झंडी दिखाया जाना इस उपलब्धि की औपचारिक शुरुआत है, जो आने वाले वर्षों में भारत को रेलवे तकनीक और निर्यात में अग्रणी बना सकती है।

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