नई दिल्ली: वक्फ (Waqf) (संशोधन) अधिनियम को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को अपना अंतरिम आदेश सुनाया। मुख्य न्यायाधीश बी.आर. गवई (B.R. Gawai) की अध्यक्षता वाली बेंच ने कहा कि पूरे कानून को रोकने की कोई वजह नहीं है, लेकिन कुछ विशेष प्रावधानों को स्थगित करना ज़रूरी है। इससे पहले 22 मई को अदालत ने तीन दिन तक लगातार सुनवाई के बाद फैसला सुरक्षित रखा था।
विवाद के तीन मुद्दे
याचिकाकर्ताओं ने दलील दी थी कि यह कानून मुसलमानों के अधिकारों के खिलाफ है और इसे असंवैधानिक घोषित किया जाना चाहिए। वहीं, केंद्र सरकार ने इसे वैध और आवश्यक बताते हुए बचाव किया। सुनवाई के दौरान अदालत ने तीन मुख्य बिंदुओं पर विशेष ध्यान दिया—
- क्या सुनवाई पूरी होने तक वक्फ संपत्तियों को डी-नोटिफाई किया जा सकता है।
- वक्फ बोर्ड की संरचना, खासकर इस सवाल पर कि क्या सभी सदस्य (पदेन को छोड़कर) मुस्लिम होने चाहिए।
- जिला कलेक्टर की जांच के दौरान संपत्ति को वक्फ न मानने का प्रावधान।
सुप्रीम कोर्ट का आदेश
- कलेक्टर की शक्तियां सीमित: अदालत ने साफ किया कि अब कोई जिला कलेक्टर यह तय नहीं कर सकेगा कि कोई संपत्ति वक्फ की है या नहीं। कोर्ट ने माना कि प्रशासनिक अधिकारी को ऐसा अधिकार देना विवाद और मनमानी को बढ़ावा दे सकता है।
- पाँच साल वाली शर्त खारिज: संशोधन अधिनियम में यह शर्त रखी गई थी कि केवल वही व्यक्ति वक्फ बना सकता है, जो कम से कम पाँच साल से इस्लाम धर्म का पालन कर रहा हो। सुप्रीम कोर्ट ने इसे भेदभावपूर्ण माना और लागू करने से रोक दिया।
- गैर-मुस्लिम सदस्यों की नियुक्ति पर रोक: अदालत ने उस प्रावधान को भी स्थगित कर दिया, जिसमें वक्फ बोर्ड और केंद्रीय वक्फ परिषद में गैर-मुस्लिम सदस्यों को अनिवार्य रूप से शामिल करने की बात कही गई थी। कोर्ट ने स्पष्ट किया कि जब तक सरकार इस पर स्पष्ट नियम नहीं बनाती, यह व्यवस्था लागू नहीं होगी।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि कानून की संवैधानिक वैधता की विस्तृत जांच आगे की सुनवाई में होगी। फिलहाल अदालत ने केवल उन प्रावधानों पर रोक लगाई है, जिनसे धार्मिक स्वतंत्रता, न्यायिक अधिकारों और प्रशासनिक प्रक्रिया पर सवाल उठ रहे थे। यह आदेश वक्फ कानून को लेकर चल रही बहस को और गहराई देगा और सरकार को नियमों को स्पष्ट रूप से परिभाषित करने की दिशा में कदम उठाने होंगे।
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