Rapid pre-eclampsia टेस्ट : प्री-एक्लेमप्सिया से गर्भवती महिलाओं की बचेगी जान

By digital@vaartha.com | Updated: April 28, 2025 • 9:47 PM

प्री-एक्लेमप्सिया टेस्ट : गर्भवती महिलाओं में कुशलतापूर्वक परीक्षण करने का वादा

हैदराबाद। गर्भवती महिलाओं की जान बचाने के लिए रैपिड प्री-एक्लेमप्सिया टेस्ट विकसित किया गया है। भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान मद्रास (आईआईटी मद्रास) के नेतृत्व में एक अनुसंधान दल ने एक बायोसेंसर प्लेटफॉर्म विकसित किया है, जो गर्भवती महिलाओं में होने वाले उच्च रक्तचाप संबंधी विकार प्री-एक्लेमप्सिया का शीघ्र और कुशलतापूर्वक परीक्षण करने का वादा करता है। शोधकर्ताओं ने मौजूदा प्रौद्योगिकियों के संभावित विकल्प के रूप में फाइबर ऑप्टिक्स सेंसर प्रौद्योगिकी का उपयोग करके पॉइंट-ऑफ-केयर (पीओसी) परीक्षण उपकरण विकसित करने के लिए एक साथ मिलकर काम किया है। गर्भवती महिलाओं पर यह शोध बड़ा कारगर साबित होने वाला है।

प्री-एक्लेमप्सिया टेस्ट : संवेदनशीलता, विशिष्टता और गति के साथ आसानी से सुलभ

गर्भवती महिला में प्री-एक्लेम्पसिया का पता लगाने की सामान्य विधि समय लेने वाली है, जिसके लिए विशाल बुनियादी ढांचे और प्रशिक्षित कर्मियों की आवश्यकता होती है, जो इस परीक्षण को दूरदराज के क्षेत्रों और संसाधन-सीमित सेटिंग्स में ज्यादातर दुर्गम बनाता है। इसलिए, प्री-एक्लेम्पसिया के निदान के लिए ‘3एस’ विशेषताओं (संवेदनशीलता, विशिष्टता और गति) के साथ आसानी से सुलभ, पॉइंट-ऑफ-केयर परीक्षण उपकरण की तत्काल आवश्यकता है।

प्री-एक्लेमप्सिया टेस्ट : बायोसेंसर प्लेटफ़ॉर्म सरल और विश्वसनीय

प्रोफ़ेसर वीवी राघवेंद्र साईं, बायोसेंसर प्रयोगशाला, अनुप्रयुक्त यांत्रिकी और जैव चिकित्सा इंजीनियरिंग विभाग, आईआईटी मद्रास ने कहा कि शोध टीम द्वारा विकसित बायोसेंसर प्लेटफ़ॉर्म सरल और विश्वसनीय है, जो किफ़ायती निदान का मार्ग प्रशस्त करता है। इससे प्लेसेंटल ग्रोथ फैक्टर (पीएलजीएफ) बायोमार्कर परीक्षणों के परीक्षण कवरेज में भी वृद्धि हो सकती है, जिसके परिणामस्वरूप प्री-एक्लेमप्सिया के प्रबंधन पर महत्वपूर्ण प्रभाव पड़ने की संभावना है और प्री-एक्लेमप्सिया से गर्भवती महिलाओं की होने वाली मृत्यु दर और रुग्णता के वैश्विक बोझ में कमी लाने की दिशा में काम हो सकता है।

32 सप्ताह में चरम पर होता है बायोमार्कर

प्री-एक्लेमप्सिया का पता लगाने के लिए, ‘पीएलजीएफ’ बायोमार्कर का उपयोग करने वाले परीक्षण व्यापक रूप से उपयोग में हैं, क्योंकि सामान्य गर्भावस्था में बायोमार्कर 28 से 32 सप्ताह में चरम पर होता है, लेकिन प्री-एक्लेमप्सिया वाली गर्भवती महिलाओं के मामले में, गर्भावस्था के 28 सप्ताह के बाद यह 2 से 3 गुना कम हो जाता है।

एक एंजियोजेनिक रक्त बायोमार्कर है पीएलजीएफ

प्रोफेसर वीवी राघवेंद्र साई ने कहा कि प्लेसेंटल ग्रोथ फैक्टर (पीएलजीएफ) एक एंजियोजेनिक रक्त बायोमार्कर है जिसका उपयोग प्री-एक्लेमप्सिया निदान के लिए किया जाता है। हमने पॉलीमेथिल मेथैक्रिलेट (पीएमएमए) आधारित यू-बेंट पॉलीमेरिक ऑप्टिकल फाइबर (पीओएफ) सेंसर जांच का उपयोग करके फेम्टोमोलर स्तर पर पीएलजीएफ का पता लगाने के लिए प्लास्मोनिक फाइबर ऑप्टिक एब्जॉर्बेंस बायोसेंसर (पी-एफएबी) तकनीक की स्थापना की है। यह निश्चित रूप से गर्भवती महिलाओं के लिए कारगर साबित होने वाला है।

पीएलजीएफ को 30 मिनट के भीतर माप सकती है

इस शोध दल द्वारा विकसित पीओएफ सेंसर जांच पी-एफएबी रणनीति का उपयोग करके 30 मिनट के भीतर पीएलजीएफ को माप सकती है। प्रेस विज्ञप्ति में कहा गया है कि नैदानिक नमूना परीक्षण ने पी-एफएबी-आधारित पीओएफ सेंसर प्लेटफ़ॉर्म की सटीकता, विश्वसनीयता, विशिष्टता और संवेदनशीलता की पुष्टि की है, जिससे पीएलजीएफ का पता लगाने और प्री-एक्लेमप्सिया निदान के लिए इसकी क्षमता के लिए लागत प्रभावी तकनीक का मार्ग प्रशस्त हुआ है।

अनुसंधान दल में ये लोग हैं शामिल

गर्भवती महिलाओं के इस कारगर अनुसंधान दल में आईआईटी मद्रास के एप्लाइड मैकेनिक्स और बायोमेडिकल इंजीनियरिंग विभाग के प्रोफेसर वीवी राघवेंद्र साईं और डॉ. रतन कुमार चौधरी, आईआईटी मद्रास के बायोटेक्नोलॉजी विभाग के डॉ. नारायणन मादाबूसी, वेल्लोर इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी के नैनोबायोटेक्नोलॉजी केंद्र के डॉ. जितेंद्र सतीजा, श्री नारायणी अस्पताल एवं अनुसंधान केंद्र, वेल्लोर के श्री शक्ति अम्मा इंस्टीट्यूट ऑफ बायोमेडिकल रिसर्च के डॉ. बालाजी नंदगोपाल और डॉ. रामप्रसाद श्रीनिवासन शामिल थे।

# Paper Hindi News #Breaking News in Hindi #Google News in Hindi #Hindi News Paper breakingnews health latestnews pre-eclampsia Rapid pre-eclampsia test trendingnews