पुराने समझौते, नए सौदों से परहेज
मॉस्को: भारत ने रूस(Russia) के साथ अपने पुराने रक्षा समझौतों को पूरा करने का निर्णय लिया है, लेकिन नए हथियार सौदों से दूरी बना रखी है। अमेरिका के साथ व्यापारिक तनाव और रूस से ऐतिहासिक(Historical) रक्षा संबंधों के बावजूद, मोदी(Modi) सरकार एक संतुलित विदेश नीति अपना रही है, जिसमें तकनीकी गुणवत्ता और सामरिक स्वतंत्रता को प्राथमिकता दी जा रही है।
रूस(Russia) के साथ जारी पुरानी डीलें
राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजित डोभाल और विदेश मंत्री एस. जयशंकर(Jai Shankar) की हालिया मॉस्को यात्राओं ने भारत-रूस संबंधों में मजबूती का संकेत दिया। इन मुलाकातों में राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन(Putin) और विदेश मंत्री सर्गेई लावरोव से रणनीतिक मुद्दों पर चर्चा हुई।
भारत ने यह स्पष्ट किया है कि वह पहले से चल रहे रक्षा अनुबंधों को पूरा करेगा, जिनमें एस-400 बैलिस्टिक मिसाइल डिफेंस सिस्टम की शेष दो रेजिमेंटों की आपूर्ति और चक्र-III परमाणु पनडुब्बी की लीज शामिल है। हालांकि, पिछले कुछ वर्षों से कोई नया बड़ा रक्षा सौदा रूस के साथ नहीं किया गया है।
नए हथियारों में रूस की उपेक्षा
भारतीय नौसेना ने रूस(Russia) की अमूर डीजल-इलेक्ट्रिक पनडुब्बी की पेशकश को अस्वीकार करते हुए जर्मन कंपनी थिसेनक्रुप मरीन की छह पनडुब्बियों को प्राथमिकता दी है, जो एयर इंडिपेंडेंट प्रपल्शन (AIP) सिस्टम से लैस होंगी।
वहीं, भारतीय वायुसेना अपने फ्रांसीसी राफेल बेड़े को बढ़ाने पर विचार कर रही है। जमीनी बलों के स्तर पर, लंबे समय से रूसी तोपखाने और टैंकों पर निर्भर रहने के बाद, अब भारत स्वदेशी डिजाइन और निर्माण के लिए निजी भारतीय कंपनियों के साथ साझेदारी पर जोर दे रहा है।
तकनीकी अंतर और सामरिक बदलाव
विशेषज्ञों का मानना है कि रूस से नए हथियार न लेने की मुख्य वजह उसकी तकनीकी पिछड़ापन है। कई राजनयिकों का कहना है कि रूस ने वर्षों पहले पश्चिमी तकनीकों की नकल कर रक्षा उद्योग खड़ा किया, लेकिन वह आज भी विमानों से लेकर सेमीकंडक्टर चिप्स तक में पश्चिमी देशों की नवीनतम पीढ़ी के स्तर तक नहीं पहुंच पाया है।
भारत इस स्थिति में ऐसी तकनीकों को प्राथमिकता दे रहा है जो दीर्घकालिक रूप से प्रतिस्पर्धी और उन्नत हों। यह नीति भारत को न केवल सामरिक स्वतंत्रता देती है, बल्कि रक्षा क्षेत्र में स्वदेशीकरण को भी प्रोत्साहित करती है।
भारत नए रूसी हथियार क्यों नहीं खरीद रहा है?
रूस की तकनीक अपेक्षाकृत पुरानी मानी जा रही है और वह आधुनिक पश्चिमी मानकों से पीछे है। भारत उन्नत और भविष्य-उन्मुख तकनीक अपनाने पर जोर दे रहा है।
कौन-कौन से पुराने रक्षा सौदे अभी जारी हैं?
एस-400 बैलिस्टिक मिसाइल डिफेंस सिस्टम की शेष दो रेजिमेंट और चक्र-III परमाणु पनडुब्बी की लीज जैसे अनुबंध अभी पूरे किए जा रहे हैं।
भारतीय सेनाओं की नई खरीद रणनीति क्या है?
नौसेना जर्मन AIP पनडुब्बियों, वायुसेना फ्रांसीसी राफेल और थलसेना स्वदेशी हथियार निर्माण पर ध्यान केंद्रित कर रही है, जिससे विदेशी निर्भरता कम हो सके।
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