भारत को अपने खिलाफ बढ़ते खतरे को देखते हुए अमेरिका और यूरोप के साथ गठबंधन करना ही पड़ेगा. हालांकि, वो रूस को भी नहीं छोड़ेगा. वहीं अमेरिका और यूरोप को भी भारत की बहुत जरूरत है. चीन को रोकने के लिए अमेरिका और यूरोप को भारत की जरूरत पड़नी ही पड़नी है.
रूस की RIC त्रिकोणीय साझेदारी को पुनर्जनन की कोशिश:
रूस ने एक बार फिर रूस-भारत-चीन (RIC) त्रिकोणीय मंच को पुनर्जनन करने की अपनी इच्छा जाहिर की है। रूसी विदेश मंत्री सर्गेई लावरोव ने हाल ही में कहा कि भारत और चीन के बीच सीमा तनाव में कमी के बाद अब समय है कि RIC को फिर से सक्रिय किया जाए।
इस कदम के पीछे रूस की भू-राजनीतिक रणनीति और वैश्विक प्रभाव को मजबूत करने की मंशा साफ दिखाई देती है।
रूस की रणनीति के प्रमुख कारण
पश्चिमी प्रभाव का मुकाबला: यूक्रेन युद्ध के बाद पश्चिमी देशों, विशेष रूप से अमेरिका और नाटो, द्वारा रूस पर लगाए गए कड़े प्रतिबंधों ने उसे वैकल्पिक साझेदारों की ओर धकेल दिया है। रूस का मानना है कि भारत और चीन जैसे शक्तिशाली देशों के साथ RIC त्रिकोण पश्चिमी प्रभुत्व को चुनौती दे सकता है और बहुध्रुवीय विश्व व्यवस्था को बढ़ावा दे सकता है।
लावरोव ने दावा किया कि पश्चिमी देश भारत और चीन के बीच दरार पैदा करने की कोशिश कर रहे हैं, जिसे RIC के जरिए रोका जा सकता है।
चीन पर निर्भरता में संतुलन:
रूस और चीन के बीच मजबूत रणनीतिक साझेदारी के बावजूद, रूस नहीं चाहता कि वह पूरी तरह से चीन पर निर्भर हो जाए। भारत को साथ लाकर रूस अपनी कूटनीतिक स्वायत्तता बनाए रखना चाहता है। भारत के साथ मजबूत संबंध रूस को एशिया में संतुलन स्थापित करने में मदद करते हैं, ताकि वह केवल चीन का सहायक न बन जाए।
भारत-चीन तनाव में मध्यस्थता:
2020 की गलवान झड़प के बाद भारत-चीन संबंधों में तल्खी आई थी, जिसने RIC को निष्क्रिय कर दिया था। हाल ही में कज़ान में ब्रिक्स शिखर सम्मेलन (अक्टूबर 2024) के दौरान दोनों देशों के बीच सीमा पर सैन्य गतिरोध को कम करने के लिए हुए समझौते को रूस एक अवसर के रूप में देख रहा है। रूस का मानना है कि वह दोनों देशों को एक मंच पर लाकर क्षेत्रीय स्थिरता को बढ़ावा दे सकता है।
एशिया में नई धुरी:
रूस का लक्ष्य है कि RIC के जरिए एशिया में एक नई भू-राजनीतिक धुरी बनाई जाए, जो अमेरिका के नेतृत्व वाले क्वाड और इंडो-पैसिफिक रणनीति को संतुलित कर सके। लावरोव ने आरोप लगाया कि क्वाड के अन्य देश भारत को सैन्य सहयोग की ओर धकेल रहे हैं, जबकि भारत की रुचि मुख्य रूप से आर्थिक सहयोग में है। RIC इस क्षेत्र में रूस की स्थिति को मजबूत कर सकता है।
भारत और चीन की भूमिका
भारत ने हमेशा रूस के साथ अपने ऐतिहासिक संबंधों को महत्व दिया है, लेकिन चीन के साथ अविश्वास और सीमा विवाद ने RIC में उसकी सक्रियता को सीमित किया है। हाल के समझौतों के बाद भारत RIC में भाग लेने के लिए तैयार हो सकता है, लेकिन वह अपनी रणनीतिक स्वायत्तता को बनाए रखेगा।

भारत के लिए अमेरिका और पश्चिमी देशों के साथ बढ़ते संबंध भी उतने ही महत्वपूर्ण हैं, और वह RIC को इन संबंधों के खिलाफ नहीं देखेगा।
चीन ने भी RIC को बहुपक्षीय सहयोग के लिए एक उपयोगी मंच माना है, लेकिन भारत के साथ उसका तनाव और पाकिस्तान के साथ उसकी सैन्य साझेदारी RIC की राह में चुनौती बनी हुई है। हाल ही में भारत-पाकिस्तान तनाव में चीन की पाकिस्तान को सैन्य सहायता, जैसे PL-15 मिसाइलें और J-35 लड़ाकू विमान, ने भारत की चिंताएं बढ़ाई हैं।
वैश्विक प्रभाव
RIC का पुनर्जनन वैश्विक शक्ति संतुलन को प्रभावित कर सकता है। यह त्रिकोणीय साझेदारी न केवल पश्चिमी प्रभाव को कम करने की दिशा में काम कर सकती है, बल्कि ब्रिक्स और शंघाई सहयोग संगठन जैसे मंचों को भी मजबूत कर सकती है। हालांकि, भारत-चीन के बीच अविश्वास, रूस की आर्थिक कमजोरी और भारत की पश्चिमी देशों के साथ बढ़ती साझेदारी इस मंच की सफलता में बाधक हो सकती हैं।

रूस की RIC को पुनर्जनन की कोशिश पश्चिमी दबाव का मुकाबला करने, चीन पर निर्भरता को संतुलित करने और एशिया में एक नई शक्ति धुरी बनाने की रणनीति का हिस्सा है।
भारत और चीन के बीच हाल के सकारात्मक कदम इस दिशा में एक अवसर प्रदान करते हैं, लेकिन दोनों देशों के बीच गहरे अविश्वास और रूस की अपनी सीमाएं इस साझेदारी को जटिल बनाती हैं। आने वाले समय में यह देखना होगा कि क्या RIC वैश्विक मंच पर प्रभावी भूमिका निभा पाएगा।