हम सभी के जेब में कभी न कभी 1 रुपये का सिक्का जरूर होता है , चाहे वो दूध वाले को खुले पैसे देने हों या किराने की दुकान पर छुट्टा लेना हो। लेकिन क्या आपने कभी यह सोचा है कि इस छोटे से सिक्के को बनाने में सरकार की जेब पर कितना बोझ पड़ता है?
हम सभी के जेब में कभी न कभी 1 रुपये का सिक्का जरूर होता है — चाहे वो दूध वाले को खुले पैसे देने हों या किराने की दुकान पर छुट्टा लेना हो। लेकिन क्या आपने कभी यह सोचा है कि इस छोटे से सिक्के को बनाने में सरकार की जेब पर कितना बोझ पड़ता है? जवाब जानकर आप हैरान रह जाएंगे।
एक रुपये का सिक्का : नाम एक, लागत ज़्यादा
भारतीय रिजर्व बैंक द्वारा पहले दी गई जानकारी के अनुसार, 1 रुपये का सिक्का तैयार करने में सरकार को करीब 1.11 रुपये की लागत आती है। यानी हर सिक्के पर लगभग 11 पैसे का नुकसान होता है।यह मामला सिर्फ एक रुपये तक ही सीमित नहीं है। दूसरे सिक्कों की लागत भी उनकी कीमत से अधिक है:
- 2 रुपये का सिक्का: लगभग ₹1.28
- 5 रुपये का सिक्का: करीब ₹3.69
- 10 रुपये का सिक्का: लगभग ₹5.54
कहां और कैसे बनते हैं सिक्के?
भारत सरकार के तहत चलने वाली टकसालें, मुख्य रूप से मुंबई और हैदराबाद, देश भर में चलने वाले सिक्कों का निर्माण करती हैं। एक रुपये का सिक्का स्टेनलेस स्टील से बनाया जाता है, जिसका वजन करीब 3.76 ग्राम, व्यास 21.93 मिमी, और मोटाई 1.45 मिमी होती है। यह सिक्का वर्षों तक उपयोग में रह सकता है, जिससे इसकी टिकाऊ प्रकृति साफ झलकती है।
जब है घाटा, तो क्यों बनाए जाते हैं सिक्के?
यह सवाल अक्सर उठता है कि जब सरकार को हर सिक्के पर घाटा हो रहा है तो फिर इनका निर्माण क्यों जारी है? जवाब सीधा है: टिकाऊपन और मुद्रा प्रणाली की स्थिरता।
सिक्के नोटों की तुलना में काफी ज्यादा समय तक चलते हैं। जहां नोटों को कुछ सालों में बदलना पड़ता है, वहीं सिक्के दशकों तक प्रचलन में रहते हैं। इसका मतलब है कि एक बार लागत जरूर आती है, लेकिन दीर्घकालिक रूप से यह ज्यादा किफायती और व्यवहारिक साबित होता है।
यह सिर्फ आर्थिक नहीं, रणनीतिक भी है फैसला
सिक्के बनाना सिर्फ पैसे का खेल नहीं है, यह रणनीतिक और प्रणालीगत निर्णय होता है। ये सिक्के नकद लेनदेन में निरंतरता बनाए रखते हैं, जिससे आर्थिक प्रणाली में भरोसा कायम रहता है।
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