वाशिंगटन । आज यानी 31 जुलाई को धरती के बहुत ही करीब से एक अंतरिक्ष चट्टान गुजर रही है, जिसका नाम एस्टेरॉयड 2025 ओएल1 (Asteroid 2025 OL1) है। यह एस्टेरॉयड एक छोटे यात्री विमान जितना बड़ा है, करीब 110 फीट व्यास का। इसकी रफ्तार है 27,204 किलोमीटर प्रति घंटा है। नासा ने इसे लेकर चेतावनी दी है, लेकिन साथ ही यह भी कहा है कि इससे धरती को कोई खतरा नहीं है। एस्टेरॉयड 2025 ओएल1 धरती से करीब 12.9 लाख किलोमीटर दूर से गुजरेगा। यह दूरी अंतरिक्ष के पैमानों पर तो बहुत पास है, लेकिन आम मानव जीवन के हिसाब से यह सुरक्षित दूरी है। बता दें चांद धरती से करीब 3.84 लाख किलोमीटर दूर है, यानी यह एस्टेरॉयड चांद से भी तीन गुना ज्यादा दूरी से गुजरेगा।
एस्टेरॉयड ने करीब 2000 वर्ग किलोमीटर जंगल तबाह कर दिया था
नासा (Nasa) के मुताबिक कोई भी एस्टेरॉयड 7.4 मिलियन किलोमीटर के दायरे में आता है और उसका आकार 85 मीटर या उससे ज्यादा है, तो उसे संभावित रूप से खतरनाक माना जाता है। एस्टेरॉयड 2025 ओएल1 आकार के लिहाज से इस श्रेणी में आता तो है, लेकिन दूरी के कारण यह खतरे की श्रेणी से बाहर है। मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक इतिहास में एस्टेरॉयड से टकराव की घटनाएं हमें यह सिखा चुकी हैं कि अंतरिक्ष की ये चट्टानें कितनी विनाशकारी हो सकती हैं। 1908 में तुंगुस्का (साइबेरिया) में गिरे एस्टेरॉयड ने करीब 2000 वर्ग किलोमीटर जंगल तबाह कर दिया था। अगर कोई बड़ा एस्टेरॉयड घनी आबादी वाले इलाके में टकरा जाए, तो वह भयानक तबाही मचा सकता है।
एपोपिस जैसे बड़े एस्टेरॉयड पर है, जो 2029 में धरती के बेहद पास से गुजरेगा
यही कारण है कि नासा, इसरो जैसी अंतरिक्ष एजेंसियां लगातार निगरानी करती हैं। इनका मकसद न केवल इनके रास्तों को समझना है, बल्कि भविष्य में होने वाली किसी संभावित टक्कर को रोकने की रणनीति भी बनाना है। इसरो भी अब इस दिशा में सक्रिय है। इसरो प्रमुख एस सोमनाथ (S Somnath) ने हाल ही में कहा था कि भारत को भी ऐसे खतरों के लिए तैयार रहना होगा। इसरो की नज़र विशेषकर एपोपिस जैसे बड़े एस्टेरॉयड पर है, जो 2029 में धरती के बेहद पास से गुजरेगा।
एस्टेरॉयड 2025 ओएल1 खतरा न हो, वैज्ञानिकों के लिए एक बड़ा अवसर
इसरो अब नासा, यूरोपीय अंतरिक्ष एजेंसी, जापान जैसी अंतरराष्ट्रीय एजेंसियों के साथ मिलकर एस्टेरॉयड डिटेक्शन और डिफ्लेक्शन टेक्नोलॉजी पर काम कर रहा है, ताकि भविष्य में किसी भी खतरनाक एस्टेरॉयड को धरती से टकराने से पहले ही रास्ता बदलने पर मजबूर किया जा सके। एस्टेरॉयड 2025 ओएल1 धरती के लिए खतरा न हो, लेकिन इसका पास से गुजरना वैज्ञानिकों के लिए एक बड़ा अवसर है। इससे वैज्ञानिक एस्टेरॉयड की संरचना, गति और गुरुत्वाकर्षण से होने वाले असर को बेहतर ढंग से समझ पाते हैं। हर ऐसा फ्लाईबाय डेटा कलेक्शन और ट्रैकिंग टेक्नोलॉजी को और सटीक बनाता है। नासा और अन्य एजेंसियां स्पेस टेलिस्कोप, ग्राउंड ऑब्ज़र्वेटरी और एआई बेस्ड ट्रैकिंग सिस्टम की मदद से ऐसे एस्टेरॉयड्स पर 24×7 नजर रखती हैं। जैसे-जैसे तकनीक विकसित हो रही है, अब एस्टेरॉयड डिफ्लेक्शन मिशन भी हकीकत बनने लगे हैं।
पृथ्वी की खोज किसने की थी?
पृथ्वी की खोज का श्रेय फर्डिनेंड मैगलन को दिया जाता है। उन्होंने 1519-1522 में अपनी समुद्री यात्रा के दौरान पृथ्वी का चक्कर लगाया और प्रशांत महासागर का नामकरण भी किया.
पृथ्वी का असली नाम क्या है?
पृथ्वी का असली नाम संस्कृत में “पृथ्वी” है, जिसका अर्थ “विशाल धरा” है. इसे “भूमि”, “धरा”, “धरित्री”, “रसा”, “रत्नगर्भा” आदि नामों से भी जाना जाता है. हिंदू पौराणिक कथाओं में, पृथ्वी को देवी-रूप में भी पूजा जाता है.
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