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Hyderabad : वैज्ञानिकों ने एशिया की जैव विविधता का रहस्य सुलझाया

Ankit Jaiswal
Ankit Jaiswal
Hyderabad : वैज्ञानिकों ने एशिया की जैव विविधता का रहस्य सुलझाया

एशिया के लिए इस तरह का व्यापक विश्लेषण पहली बार

हैदराबाद। हैदराबाद स्थित कोशिकीय एवं आणविक जीवविज्ञान केंद्र (CCMB) के शोधकर्ताओं द्वारा हाल ही में इकोलॉजी लेटर्स में प्रकाशित एक अध्ययन में पहली बार यह उजागर किया गया है कि दक्षिण एशिया और व्यापक एशियाई क्षेत्र में जीवन रूपों की प्रजातियां कैसे विकसित हुईं और लुप्त हो गईं। गणितीय मॉडलों का उपयोग करके जानवरों और पौधों के 33 अच्छी तरह से अध्ययन किए गए समूहों का विश्लेषण करके, टीम ने पूरे क्षेत्र में प्रजातियों के निर्माण (प्रजातिकरण) और हानि (विलुप्ति) के पैटर्न का पता लगाया। एशिया (Asia) के लिए इस तरह का व्यापक विश्लेषण पहली बार किया गया है।

जानवरों और पौधों के समूहों में प्रजातियों के बनने या नष्ट होने के तरीके में बहुत ज़्यादा असमानता

सीसीएमबी की वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ. जाह्नवी जोशी बताती हैं, ‘प्रत्येक समूह में निकट से संबंधित स्थानिक प्रजातियाँ और एक सामान्य पूर्वज शामिल हैं जो किसी समय पर अस्तित्व में थे। लाखों वर्षों के दौरान, उनके वंशज पूरे परिदृश्य में फैल गए और कई प्रजातियों में विविधता आई, जिनमें से कई आज भी मौजूद हैं।’ शोधकर्ताओं ने पाया कि जानवरों और पौधों के समूहों में प्रजातियों के बनने या नष्ट होने के तरीके में बहुत ज़्यादा असमानता है। उन्होंने पाया कि विकास से संबंधित समूह, जैसे कि अलग-अलग तरह की छिपकलियाँ, प्रजातियों के बनने और नष्ट होने की समान दर प्रदर्शित करती हैं। उन्होंने यह भी पाया कि जानवरों और पौधों के आधे समूहों ने लाखों सालों में धीरे-धीरे विविधता जमा की।

एशिया

कभी गोंडवानालैंड महाद्वीप का हिस्सा था प्रायद्वीपीय भारत

डॉ. जोशी ने टिप्पणी की, ‘प्रायद्वीपीय भारत में उष्णकटिबंधीय वन पारिस्थितिकी तंत्र की स्थिरता ने इस तरह के स्थिर विविधीकरण को संभव बनाया है। नतीजतन, यह क्षेत्र गंभीर जलवायु परिवर्तनों से प्रजातियों को बचाने वाले शरणस्थल के रूप में काम करता है।’ इस स्थलखंड के अशांत भू-जलवायुगत अतीत को देखते हुए इस पारिस्थितिकी तंत्र की स्थिरता आश्चर्यजनक है। अध्ययन के प्रथम लेखक प्रज्ञादीप रॉय ने कहा, ‘प्रायद्वीपीय भारत कभी गोंडवानालैंड महाद्वीप का हिस्सा था, जिसमें अफ्रीका और ऑस्ट्रेलिया जैसे भूभाग शामिल थे। यह लगभग 100 मिलियन वर्ष पहले टूट गया, उत्तर की ओर बह गया और अंततः एशिया से टकराया, जिससे हिमालय का निर्माण हुआ। इस आंदोलन से भू-जलवायु में भारी बदलाव के बावजूद, इस क्षेत्र में जैव विविधता में लगातार बदलाव आया है।’

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