डिप्टी सीएम ने राष्ट्रीय संगोष्ठी में भाग लिया
हैदराबाद। उपमुख्यमंत्री भट्टी विक्रमार्क ने कहा कि तेलंगाना को नुमिस्मैटिक्स (Numismatics) (सिक्कों का अध्ययन) और हेरिटेज स्टडीज़ के क्षेत्र में देश का नेतृत्व करना चाहिए। वे गुरुवार को मर्री चन्ना रेड्डी मानव संसाधन विकास संस्थान में आयोजित “कॉइनिज एंड इकॉनमी ऑफ साउदर्न इंडिया (Coinage and Economy of Southern India)” विषयक राष्ट्रीय संगोष्ठी को संबोधित कर रहे थे। उन्होंने उम्मीद जताई कि यह दो दिवसीय संगोष्ठी केवल अकादमिक कार्यक्रम न रहे, बल्कि नए विचारों को जन्म देने वाली प्रेरक चिंगारी सिद्ध हो। उन्होंने कहा कि संस्थानों के बीच सहयोग बढ़ना चाहिए और युवा शोधकर्ताओं को बहुविषयक अध्ययन पर ध्यान देना चाहिए।
कला, नवाचार और शासन-कौशल के अद्भुत प्रतीक हैं साम्राज्यों के सिक्के
उपमुख्यमंत्री ने बताया कि पर्यटन एवं आबकारी मंत्री जुपल्ली कृष्णा राव के नेतृत्व में राज्य सरकार विरासत आधारित शोध को बढ़ावा देने के लिए दृढ़ संकल्पित है, जिससे तेलंगाना वैज्ञानिक अध्ययन, सांस्कृतिक संरक्षण और ज्ञान उत्पादन का प्रमुख केंद्र बन सके। भट्टी विक्रमार्क ने दक्षिण भारत की समृद्ध सिक्का परंपरा का उल्लेख करते हुए कहा कि सातवाहन, इक्ष्वाकु, काकतीय और विजयनगर साम्राज्यों के सिक्के कला, नवाचार और शासन-कौशल के अद्भुत प्रतीक हैं। उन्होंने इस बात पर गर्व व्यक्त किया कि 114 साल पुराने पुरातत्व एवं संग्रहालय विभाग ने पहली बार सिक्कों पर एक विस्तृत राष्ट्रीय संगोष्ठी आयोजित की है।
सिक्के छोटे धातु के टुकड़े नहीं, बल्कि “संक्षिप्त प्राचीन डेटा”
उन्होंने कहा कि सिक्के छोटे धातु के टुकड़े नहीं, बल्कि “संक्षिप्त प्राचीन डेटा” जैसे हैं, जिनमें आर्थिक व्यवस्था, राजा की आकांक्षाएँ, तकनीक, व्यापार मार्ग, धार्मिक विचार और कूटनीतिक संकेत समाहित होते हैं। मज़ाक में उन्होंने कहा कि अगर प्राचीन काल में पुरातत्वविदों को जे़डआईपी , तो वे शायद उसे “कॉइन” ही कहते। तेलंगाना में हुई खोजों का ज़िक्र करते हुए उन्होंने कोटि लिंगाला में मिले सातवाहन कालीन सीसे के सिक्के का उल्लेख किया, जिसके दोनों ओर उज्जैन प्रतीक और रेलिंग मोटिफ थे तथा ब्राह्मी लेख में शासक का नाम अंकित था। यह सिक्का इस क्षेत्र में सातवाहनों की उपस्थिति का महत्वपूर्ण प्रमाण है। कार्यक्रम में उपमुख्यमंत्री ने “चांदा: एन अर्ली हिस्टोरिक साइट इन तेलंगाना”, “आर्ट, आर्किटेक्चर एंड आइकनोग्राफी फ्रॉम कृष्णा–तुंगभद्रा वैली”, “साउथ इंडियन फनम्स” और एनएसआई जर्नल के 106वें वार्षिक सम्मेलन सहित कई प्रकाशनों का विमोचन किया।
सिक्कों के अध्ययन को क्या कहा जाता है?
इतिहास, निर्माण, धातु, कला, शिलालेख और प्रचलन की व्यवस्थित जांच को न्यूमिज़मैटिक्स कहा जाता है। यह विषय प्राचीन व्यापार, राजस्व व्यवस्था, शासन प्रणाली और सांस्कृतिक परिवेश को समझने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है तथा इतिहासकारों को विश्वसनीय प्रमाण उपलब्ध कराता है।
सिक्कों का अध्ययन करने वाला व्यक्ति क्या कहलाता है?
प्राचीन तथा आधुनिक सिक्कों की उत्पत्ति, धातु संरचना, शिल्प, कालक्रम, शिलालेख और उपयोगिता का विश्लेषण करने वाला विशेषज्ञ न्यूमिज़मैटिस्ट कहलाता है। यह विशेषज्ञ संग्रहालयों, शोध संस्थानों और इतिहासकारों के लिए प्रमाणिक जानकारी प्रदान करता है और आर्थिक व पुरातात्विक अध्ययनों में महत्वपूर्ण योगदान देता है।
अभिलेख एवं सिक्कों के अध्ययन को क्या कहते हैं?
शिलालेखों और प्राचीन सिक्कों का संयुक्त अध्ययन, जिसमें राजवंशीय इतिहास, प्रशासनिक नीतियां, भाषा-संस्कृति, आर्थिक ढांचे और सामाजिक संरचनाओं का विश्लेषण शामिल होता है, उसे एपिग्राफी और न्यूमिज़मैटिक्स कहा जाता है। यह अध्ययन ऐतिहासिक तथ्यों की पुष्टि और प्राचीन सभ्यताओं को समझने का विश्वसनीय आधार प्रदान करता है।
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