B-2 Stealth Bomber के पायलटों की खतरे और रोमांच से भरी होती है जीवनशैली

By Anuj Kumar | Updated: June 27, 2025 • 11:50 AM

नई दिल्ली। इजराइल और ईरान के बीच जब संघर्ष जंग के मोड पर आया तो बी-2 स्टेल्थ बॉम्बर (B-2 Stealth Bomber) के चर्चे आम हो गए। दरअसल दोनों देश एक दूसरे पर मिसाइलों और बमों की बारिश कर रहे थे, तभी अमेरिका के मिसूरी व्हाइटमैन एयर फोर्स बेस से बी-2 स्टेल्थ बॉम्बर के पायलटों ने रात के सन्नाटे को चीरते हुए ऑपरेशन मिडनाइट हैमर (Operation Midnight Hammer)को अंजाम दिया। बस यहीं से शुरु होती है बी-2 स्टेल्थ बॉम्बर के पायलटों की रोजनामा जिंदगी की कुछ अनजानी और कुछ पहचानी रोमांच से भरी कहानी। कहते हैं इसका पायलट वही हो सकता है, जिसने अपनी गहरी नींद के साथ जिस्म को तोड़ देने वाली थकान को जीत लिया हो और हर दम खतरे से लड़ना जानता हो। इन पायलटों पर आधारित एक रिपोर्ट (Report) के मुताबिक सुबह चार बजे अलार्म बजता है। पायलट अपनी आंखें मलते हुए उठ जाते हैं।

आतंकी ठिकानों को नष्ट करने के लिए बी2 बॉम्बर से बम बरसाए थे

इस रिपोर्ट को रिटायर्ड कर्नल मेल्विन डीएक्स की बताई गई कहानी पर आधारित किया गया जो कि इससे जुड़ी यादें आज भी ताजा हैं। बताते हैं कि 2001 में उन्होंने 44 घंटे की उड़ान भरी थी। उन्होंने अफगानिस्तान में आतंकी ठिकानों को नष्ट करने के लिए बी2 बॉम्बर से बम बरसाए थे। उन्होंने बताया कि ऐसी उड़ानों की तैयारी महीनों पहले शुरू की जाती है। सिम्युलेटर में 24 घंटे की प्रैक्टिस, नींद का चक्र सेट करना, फ्लाइट डॉक्टर की स्लीपिंग पिल्स, मिशन से पहले पायलट तरोताजा हों, यह जरूरी होता है।

इन विमानों के नाम दिल में जोश भरते हैं

ब्रीफिंग रूम में हर डिटेल पर चर्चा के लिए तैयार रहना, फिर अपने बी-2 की ओर बढ़ जाना। उनकी मानें तो इन विमानों के नाम दिल में जोश भरते हैं। कॉकपिट में दो सीटें। बायीं पर पायलट। वह विमान उड़ाता है। खतरे से बचाता है। दायीं सीट पर मिशन कमांडर बैठता है उसके पास रडार, हथियार, कम्युनिकेशन संभालने की जिम्मेदारी होती है। कॉकपिट छोटा होता है। उसमें एक केमिकल टॉयलेट होता है जो सिर्फ इमरजेंसी के लिए होता है। माइक्रोवेव, मिनी-फ्रिज, सैंडविच, सूरजमुखी के बीज, पानी की बोतलें, लंबी उड़ान में हाइड्रेशन ही जिंदगी है। पायलट जानते हैं एक गलती और सब कुछ खत्म।

उन्होंने बताया कि रात में फ्यूल टैंकर बी-2 से जुड़ते हैं। पायलट की आंखें टैंकर की लाइट्स पर होती हैं। दिल की धड़कनें तेज होती हैं। एक गलत मूव और टक्कर सब कुछ तबाह करने वाला होता है। ऐसे में ट्रेनिंग और आत्मविश्वास ही उनका सहारा होता है। टारगेट पर बम गिरते ही विमान हल्का हो जाता है। पायलट पलक झपकते ही विमान को कंट्रोल करता और कॉकपिट में सन्नाटा सिर्फ इंजन की आवाज गूंजती है। ऐसी उड़ानों में वापसी सबसे मुश्किल होती है।

आंखें भारी, दिमाग सुस्त, फिर भी, हार मानने का समय नहीं

एड्रेनालिन खत्म होते ही, पायलटों को थकान घेरने लगती है। पायलट बारी-बारी से कॉकपिट के पीछे कॉट पर सोए। गो पिल्स खाईं। अलर्ट रहना जरूरी होता है। मेल्विन ने बताया था कि 2001 में सूरज की रोशनी ने नींद से उठाया था। आंखें भारी, दिमाग सुस्त, फिर भी, हार मानने का समय नहीं। एक-दूसरे का हौसला बढ़ाना और सूरजमुखी के बीज चबाते हुए पानी पीना बस, आगे बढ़ जाना। यह कहानी मशीनों की नहीं इंसानों की है और वह भी उन पायलटों की, जो नींद, थकान से जूझते हुए अपने मिशन को पूरा करते हैं।

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