जम्मू-कश्मीर में चिनाब नदी पर बना चिनाब ब्रिज दुनिया का सबसे ऊंचा रेलवे आर्च पुल है। यह पुल उधमपुर-श्रीनगर-बारामूला रेल लिंक परियोजना का हिस्सा है। एफिल टावर से भी ऊंचा यह पुल रियासी जिले में दो पहाड़ों को जोड़ता है। इंजीनियरों ने कई चुनौतियों का सामना करते हुए इसे बनाया। स्टील और कंक्रीट से बने इस पुल को तूफान अत्यधिक तापमान और भूकंप से सुरक्षित बनाया गया है।
जम्मू। कश्मीर तक रेल का सपना आज पूरा हो जाएगा। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी आज जम्मू-कश्मीर को दो वंदे भारत एक्सप्रेस ट्रेनों की सौगात देंगे। कश्मीर तक ट्रेन लाने का काम उधमपुर-श्रीनगर-बारामूला रेल लिंक (USBRL) परियोजना के अंतर्गत किया गया। दशकों से यह काम जारी था, जो अब जाकर संपन्न हुआ। इस बीच इंजीनियरों को कई बड़ी चुनौतियों का सामना करना पड़ा था। इन्हीं में शामिल थी एक सबसे बड़ी चुनौती- चिनाब नदी

जम्मू के रियासी जिले में दो ऊंचे पहाड़ों के बीच गहरी खाई और नीचे बहती चिनाब नदी थी, जिसे ऊपर से देखने से ही हाथ-पैर कांप जाएं। ट्रेन को एक से दूसरी पहाड़ी पर ले जाना असंभव सा लग रहा था। लेकिन हमारे इंजीनियरों ने हार नहीं मानी।
हिम्मत, हौसले और कुछ कर गुजरने की चाह ने विश्व के सबसे ऊंचे रेलवे के आर्च पुल का निर्माण कर दिया जिसे हम चिनाब ब्रिज के नाम से जानते हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी आज वंदे भारत एक्सप्रेस को हरी झंडी दिखाने के साथ इसका भी उद्घाटन करेंगे। आइए, इसकी खासियत जानते हैं।
चिनाब रेल पुल स्टील और कंक्रीट का आर्च ब्रिज है
चिनाब रेल पुल स्टील और कंक्रीट का आर्च ब्रिज है। पुल के आर्च की नींव फुटबाल के आधे मैदान जितनी है। इस पुल को इस तरह से डिजाइन किया गया है कि तूफान आए, अत्याधिक या माइनस में हो तापमान, इसपर कोई असर नहीं पड़ेगा। बड़े भूकंप में भी यह पुल मजबूती से खड़ा रहेगा।
खास बातें
- चिनाब ब्रिज फ्रांस के एफिल टावर से भी ऊंचा है। एफिल टावर की ऊंचाई 330 मीटर है, जबकि चिनाब ब्रिज की ऊंचाई 359 मीटर है।
- इसकी लंबाई 1315 मीटर है और यह 13 मीटर चौड़ा है
- इस बनाने में करीब 1486 करोड़ रुपये खर्च हुए हैं।
- 266 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार से चलने वाली हवाएं भी यह पुल आसानी से झेल सकता है।
- 120 साल के लिए तक इस पुल की मजबूती का दावा किया गया है।
- पुल में 112 सेंसर लगाए गए हैं, जो हवा की गति, टेंपरचर और कंपन आदि की जानकारी देंगे।
- इसे बनाने में 30350 मीट्रिक टन की स्टील का इस्तेमाल किया गया है।
- इसे बनाने के लिए उत्तर रेलवे के साथ कोंकण, अफकान और केआरसीएल ने काम किया। इसके साथ ही डीआरडीओर और भारतीय भौगोलिक सर्वेक्षण जैसी संस्थाएं भी जुड़ी रहीं। आईआईटी रूड़की और आईआईटी दिल्ली ने भी अपना योगदान दिया।
- 150 सर्वर की सुविधा से लैस अत्याधुनिक नियंत्रण कक्ष बनाया गया है।
- पुल इतना मजबूत है कि धमाके से भी इसे नुकसान नहीं पहुंचेगा।
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