MP : इस बार बहनों की पहली पसंद बनी ‘ऑपरेशन सिंदूर’ राखियां

By Anuj Kumar | Updated: August 9, 2025 • 8:21 AM

भोपाल । राजधानी में रक्षाबंधन (Raksha Bandhan) के त्योहार ने बाजारों में अलग ही रौनक घोल दी है। हर बार की तरह इस बार भी रंग-बिरंगी राखियों से बाजार सजे हैं। लेकिन इस बार बाजारों में सजी राखियों में कुछ अलग सा दिखाई दिया, जिसने सबका ध्यान अपनी ओंर खीचा है। दरअसल, बाजारों में सजी राखियों में इस बार एक खास राखी है, जिसका नाम ‘ऑपरेशन सिंदूर (Operation Sindoor) रखा गया है। यह अनोखी राखी हर कहीं चर्चा का केंद्र बनी हुई है। भोपाल के बाजारों में राखियों की दुकानों पर बहनों की भीड़ लगी है।

चमकदार पोस्टर ‘देश के जवानों को नमन ये राखी है

हालांकि, इस बार सबसे ज्यादा आकर्षण का केंद्र बनी हैं वही राखियां हैं, जिन पर ऑपरेशन सिंदूर लिखा है। दुकानों के बाहर लगे चमकदार पोस्टर ‘देश के जवानों को नमन ये राखी है शहादत के सम्मान में’ जैसे स्लोगन लोगों का ध्यान खींच रहे हैं। इस राखी की खास बात सिर्फ इसका नाम नहीं, बल्कि इसकी पैकिंग भी कमाल की है। हर पैकेट में राखी के साथ-साथ सिंदूर और चावल (अक्षत) भी शामिल हैं। यह राखी त्याग, संकल्प और शुभता का प्रतीक हैं और जब ये तीनों चीजें एक साथ आती हैं, तो भावना और श्रद्धा का मेल खुद-ब-खुद हो जाता है।

दुकानों पर बहनों की भीड़

बाजारों (Market) में राखी खरीद रहीं बहनों का कहना है कि इस बार की राखी सिर्फ एक धागा नहीं, बल्कि देश के लिए गर्व की एक भावनात्मक डोर है। एक बहन भावुक होकर कहती है, जब भारतीय सेना ने ‘ऑपरेशन सिंदूर’ के तहत आतंकवादियों को मुंहतोड़ जवाब दिया, तब हम सबने गर्व महसूस किया। अब जब हम अपने भाइयों को ये खास राखी बांधेंगी, तो उसमें देश के उन शहीदों का भी आशीर्वाद होगा, जिन्होंने हमारी सुरक्षा के लिए जान दी


सबसे पहले राखी किसने बांधी थी?

इस प्रकार, सबसे पहली राखी इंद्राणी ने इंद्र को बांधी थी, और तभी से यह परंपरा चली आ रही है. जिसमें एक रक्षा-सूत्र, प्रेम, आशीर्वाद और सुरक्षा का प्रतीक बन गया. यह केवल भाई-बहन का त्योहार नहीं, बल्कि रक्षा और विश्वास का प्रतीक भी है, चाहे वह किसी भी रूप में हो.

रक्षाबंधन की असली कहानी क्या है?

द्रौपदी ने उस समय अपनी साड़ी फाड़कर उनकी उँगली पर पट्टी बाँध दी। यह श्रावण मास की पूर्णिमा का दिन था। कृष्ण ने इस उपकार का बदला बाद में चीरहरण के समय उनकी साड़ी को बढ़ाकर चुकाया। कहते हैं परस्पर

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