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Skanda Sashti : सावन मास की स्कंद षष्ठी कल

Surekha Bhosle
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Skanda Sashti : सावन मास की स्कंद षष्ठी कल

Skanda Sashti 2025: श्रावण मास में आने वाली स्कंद षष्ठी (Skanda Sashti) को विशेष धार्मिक महत्व प्राप्त है. यह व्रत भगवान शिव (Shiva) और उनके पुत्र भगवान कार्तिकेय (स्कंद) की आराधना के लिए रखा जाता है. मान्यता है कि इस दिन व्रत और पूजा करने से सभी संकटों का नाश होता है और संतान सुख, शौर्य व पराक्रम की प्राप्ति होती है

Skanda Sashti 2025: देवों के देव महादेव को समर्पित पवित्र श्रावण मास में मनाए जाने वाले पर्वों में से एक महत्वपूर्ण पर्व है स्कंद षष्ठी. भगवान शिव और माता पार्वती के ज्येष्ठ पुत्र, देवों के सेनापति भगवान कार्तिकेय (जिन्हें स्कंद भी कहा जाता है) को समर्पित यह तिथि श्रावण मास के शुक्ल पक्ष की षष्ठी को पड़ती है.यह दिन भगवान कार्तिकेय की कृपा प्राप्त करने और संतान संबंधी मनोकामनाओं को पूर्ण करने के लिए बहुत ही शुभ माना जाता है. आइए जानते हैं इस स्कंद षष्ठी के दिन किस शुभ मुहूर्त में पूजा करने से शुभ फलों की प्राप्ति होगी।

स्कंद षष्ठी कब है?

पंचांग के अनुसार, षष्ठी तिथि का प्रारंभ 30 जुलाई 2025, बुधवार को सुबह 12 बजकर 46 मिनट से होगा. वहीं इस तिथि का समापन 31 जुलाई 2025, गुरुवार को सुबह 02 बजकर 41 मिनट पर होगा. हर माह के शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि को स्कंद षष्ठी मनाई जाती है. श्रावण मास की स्कंद षष्ठी 30 जुलाई 2025, बुधवार को मनाई जाएगी।

स्कंद षष्ठी के दिन शुभ मुहूर्त

पंचांग के अनुसार, स्कंद षष्ठी के दिन विजय मुहूर्त में दोपहर 2 बजकर 18 मिनट से 3 बजकर 11 तक पूजा कर सकते हैं, वहीं इस दिन रवि योग भी बन रहा हैं जिसका समय शाम 5 बजकर 24 मिनट से 9 बजकर 53 मिनट तक रहेगा।

स्कंद षष्ठी व्रत की पूजा विधि

स्कंद षष्ठी के दिन भगवान कार्तिकेय की पूजा का विशेष विधान है. षष्ठी के दिन सुबह जल्दी उठकर स्नान करें और स्वच्छ वस्त्र धारण करें. पूजा शुरू करने से पहले भगवान कार्तिकेय का ध्यान करते हुए व्रत का संकल्प लें. घर के मंदिर को साफ करें और भगवान कार्तिकेय की मूर्ति या तस्वीर स्थापित करें. यदि मूर्ति उपलब्ध न हो तो आप शिव-पार्वती और गणेश जी की प्रतिमा के साथ भी पूजा कर सकते हैं. पूजा स्थान पर गंगाजल छिड़ककर उसे पवित्र करें. घी का दीपक जलाएं।

भगवान कार्तिकेय को लाल फूल विशेष रूप से प्रिय हैं, अतः उन्हें लाल गुड़हल के फूल अर्पित करें. इसके अलावा चंदन, रोली, अक्षत, धूप, दीप और नैवेद्य (फल, मिठाई, मोर पंख) अर्पित करें. स्कंद षष्ठी की व्रत कथा का पाठ करें या सुनें. भगवान कार्तिकेय की आरती करें. भगवान कार्तिकेय के मंत्रों का जाप करें. पूजा के बाद प्रसाद परिवार के सदस्यों और अन्य लोगों में बांटें. दिनभर व्रत रखें. कुछ लोग फलाहारी व्रत रखते हैं, जबकि कुछ लोग निर्जला व्रत रखते हैं. शाम को पूजा के बाद व्रत का पारण करें।

स्कंद षष्ठी का महत्व

धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, स्कंद षष्ठी का व्रत करने से संतान सुख की प्राप्ति होती है. जिन दंपत्तियों को संतान प्राप्ति में बाधा आ रही हो, उन्हें यह व्रत पूरी श्रद्धा और भक्ति के साथ करने की सलाह दी जाती है. यह व्रत संतान के स्वास्थ्य, दीर्घायु और उज्ज्वल भविष्य के लिए भी लाभकारी माना जाता है।

भगवान कार्तिकेय को शौर्य, शक्ति और ज्ञान का प्रतीक माना जाता है. उनकी पूजा से शत्रुओं पर विजय प्राप्त होती है और जीवन में आने वाली बाधाएं दूर होती हैं. दक्षिण भारत में भगवान कार्तिकेय को ‘मुरुगन’ के नाम से पूजा जाता है और यह पर्व वहां विशेष उत्साह के साथ मनाया जाता है।

कौन हैं स्कंद देवता?

स्कंद, जिन्हें कार्तिकेय, मुरुगन, या सुब्रह्मण्य भी कहा जाता है, हिंदू धर्म में युद्ध के देवता हैं। वे भगवान शिव और देवी पार्वती के पुत्र हैं और गणेश के भाई माने जाते हैं। स्कंद को आमतौर पर एक युवा योद्धा के रूप में चित्रित किया जाता है, जो मोर पर सवार होता है। 

स्कंद षष्ठी पूजा कैसे करें?

  1. स्नान आदि कर मंदिर की साफ सफाई करें
  2. भगवान श्री कार्तिकेय का जलाभिषेक करें
  3. प्रभु का पंचामृत सहित गंगाजल से अभिषेक करें
  4. अब प्रभु को पूजन सामग्री माला, पुष्प, अक्षत, कलावा, सिंदूर और चंदन आदि अर्पित करें
  5. मंदिर में घी का दीपक प्रज्वलित करें

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