नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट में गैरसरकारी संस्था एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (ADR) की याचिका पर सुनवाई चल रही है। एडीआर ने वोटर्स के नाम काटने के आरोप लगाए हैं।
हलफनामे में झूठ उजागर, वकील पर फटकार
शीर्ष अदालत में एडीआर की ओर से पेश सीनियर एडवोकेट प्रशांत भूषण (Prashant Bhusan) के लिए असहज स्थिति पैदा हो गई, जब एनजीओ की ओर से पेश हलफनामे में झूठ उजागर हुई। मामले की सुनवाई कर रही दो जजों की पीठ ने प्रशांत भूषण से कहा कि उन्हें इस झूठ की जिम्मेदारी लेनी होगी।
योगेंद्र यादव ने जताई गंभीर समस्या
कोर्ट ने योगेंद्र यादव की ओर से पेश डेटा (Data) के आधार पर कहा कि यह समस्या नहीं, बल्कि संकट है। पीठ ने कहा, “कोर्ट आपके साथ होता यदि आपने उन लोगों का विवरण दिया होता, जिनके नाम बिना किसी सूचना के फाइनल वोटर लिस्ट से हटा दिए गए हैं।”
कोर्ट ने निर्देश दिए
पीठ ने सुनिश्चित किया कि प्रक्रिया का पालन किए बिना मतदाता सूची से कोई भी नाम नहीं हटाया जाए। साथ ही डीएलएसए को निर्देश दिया कि वे बूथ स्तर के अधिकारियों से उन लोगों के बारे में पूछताछ करें, जिनके नाम 3.75 लाख की डिलीटेड लिस्ट में हैं।
एडीआर के आरोप और हलफनामे की असलियत
एडीआर ने अपनी याचिका में आरोप लगाया कि बिहार में बिना किसी सूचना के वोटर्स के नाम सूची से डिलीट कर दिए गए। इसके लिए हलफनामे भी दाखिल किया गया, जिसमें झूठ उजागर हुआ।
कोर्ट ने प्रशांत भूषण से मांगी जवाबदेही
पीठ ने कहा कि झूठे हलफनामे का अनुभव मिलने के बाद उन पर भरोसा कैसे किया जा सकता है। प्रशांत भूषण ने कहा कि इसकी सत्यता की जांच कराई जा सकती है, जिस पर कोर्ट और नाराज हुई।
बिहार में मतदाता सूची की गंभीर स्थिति
योगेंद्र यादव ने कोर्ट में दलील दी कि बिहार की मतदाता सूची में एसआईआर प्रक्रिया का दुरुपयोग कर बड़ी संख्या में खासकर महिलाओं के नाम हटाए गए हैं। उन्होंने कहा कि इस प्रक्रिया के चलते लगभग 80 लाख मतदाताओं के नाम हटाए गए।
कोर्ट ने इसे गंभीर संकट बताया
कोर्ट ने यादव के प्रेजेंटेशन पर टिप्पणी करते हुए कहा कि साल 2023 तक बिहार में मतदाताओं की संख्या राज्य की वयस्क आबादी से 105 प्रतिशत तक पहुंच गई थी। यह कोई सामान्य समस्या नहीं, बल्कि संकट है। यादव ने चुनाव आयोग को सुझाव दिया कि डुप्लिकेट नाम हटाने के लिए सॉफ्टवेयर का प्रयोग किया जाए।
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