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Somnath मंदिर किसने बनवाया था

Surekha Bhosle
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Somnath मंदिर किसने बनवाया था

क्या है यहां के शिवलिंग का रहस्य?

सोमनाथ (Somnath) मंदिर का शिवलिंग (Shiva Linga) हिंदुओं के लिए अत्यधिक पवित्र और पूजनीय है. यह शिव के 12 ज्योतिर्लिंगों में सबसे पहला माना जाता है और यह इतिहास में कई बार गिराए जाने के बाद भी अपनी आस्था और वैभव के साथ खड़ा है।

सोमनाथ Somnath मंदिर, गुजरात के सौराष्ट्र क्षेत्र में स्थित, भारत के 12 ज्योतिर्लिंगों में से प्रथम ज्योतिर्लिंग है. इसका इतिहास अत्यंत प्राचीन, गौरवशाली और कई बार के विध्वंस तथा पुनर्निर्माण की कहानियों से भरा हुआ है. सोमनाथ मंदिर के निर्माण को लेकर कई मान्यताएं और ऐतिहासिक प्रमाण मिलते हैं, जो इसे एक नहीं, बल्कि कई बार विभिन्न शासकों और देवताओं द्वारा निर्मित बताते हैं।

पौराणिक कथाओं के अनुसार

पौराणिक कथाओं के अनुसार, सोमनाथ मंदिर स्वयं चंद्रदेव (सोमराज) ने बनवाया था. एक बार चंद्रदेव को राजा दक्ष प्रजापति ने श्राप दिया था, जिसके कारण वे क्षय रोग से पीड़ित हो गए थे।

इस श्राप से मुक्ति पाने के लिए चंद्रदेव ने भगवान शिव की तपस्या की थी. भगवान शिव ने प्रसन्न होकर उन्हें श्राप से मुक्त किया. श्राप मुक्त होने के बाद, चंद्रदेव ने भगवान शिव से प्रार्थना की कि वे इस स्थान पर शिवलिंग के रूप में विराजमान हों. भगवान शिव ने उनकी प्रार्थना स्वीकार की, और तभी से यह स्थान सोमनाथ ज्योतिर्लिंग के नाम से जाना जाने लगा।

सोमनाथ Somnath मंदिर पर कई बार आक्रमण हुए और इसे तोड़ा गया, लेकिन हर बार इसका पुनर्निर्माण किया गया. लगभग 649 ईस्वी में दूसरी बार इस मंदिर का पुनर्निर्माण वल्लभी के मैत्रक राजाओं ने करवाया था. 815 ईस्वी सिंध के मुस्लिम सूबेदार अल जुनैद द्वारा तोड़े जाने के बाद प्रतिहार राजा नागभट्ट ने इसका पुनर्निर्माण करवाया।

महमूद गजनवी द्वारा 1025 ईस्वी में मंदिर तोड़ने और लूटने के बाद, गुजरात के राजा भीमदेव और मालवा के राजा भोज ने इसका पुनर्निर्माण कराया. 1169 ईस्वी के आसपास चालुक्य राजा कुमारपाल ने इसका और भव्य निर्माण कराया था।

वर्तमान में जो सोमनाथ Somnath मंदिर खड़ा है

उसका पुनर्निर्माण भारत की आजादी के बाद सरदार वल्लभभाई पटेल के प्रयासों से बना था. उन्होंने 1947 में जूनागढ़ के विलय के बाद इस मंदिर के पुनर्निर्माण का संकल्प लिया था. सरदार पटेल के निधन के बाद, इस कार्य को के.एम. मुंशी के निर्देशन में पूरा किया गया. 1 दिसंबर 1955 को भारत के तत्कालीन राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद ने इस मंदिर को राष्ट्र को समर्पित किया।

कुछ प्राचीन ग्रंथों में उल्लेख मिलता है कि सोमनाथ मंदिर का शिवलिंग पहले हवा में तैरता था, यानी वह जमीन को नहीं छूता था. 13वीं सदी के लेखक जखारिया अल काजिनी ने अपनी किताब ‘वंडर्स ऑफ क्रिएशन’ में इसका जिक्र किया है कि महमूद गजनवी ने जब मंदिर पर हमला किया तो उसने शिवलिंग को जमीन और छत के बीच हवा में तैरते हुए देखा था. यह एक रहस्यमयी घटना थी, जिसे गुरुत्वाकर्षण के सिद्धांत से परे माना जाता था. हालांकि, आधुनिक काल में इस पर कोई वैज्ञानिक प्रमाण नहीं है।

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