नई दिल्ली । बिहार की राजनीति हमेशा जातिगत समीकरणों (Caste Equations) के इर्द-गिर्द घूमती रही है। प्रदेश में यादव समुदाय लगभग 14% आबादी पर कब्ज़ा करता है, जो किसी भी अन्य जाति से अधिक है। 2020 विधानसभा चुनावों में यादव वोटों के बल पर आरजेडी (RJD) राज्य की सबसे बड़ी पार्टी बनी थी।
लालू परिवार और यादव-मुस्लिम समीकरण
राष्ट्रीय जनता दल के संस्थापक लालू प्रसाद यादव ने 1990 के दशक से यादव वोट बैंक को सामाजिक न्याय और मुस्लिम-यादव (Muslim-Yadav) गठजोड़ के तहत एकजुट किया। इस गठबंधन ने वर्षों तक आरजेडी की सत्ता में स्थिरता बनाई।
मोदी मैजिक का असर
लेकिन 2024 के लोकसभा चुनावों में मोदी सरकार का विकास और कल्याण योजनाओं के साथ हिंदुत्व का मिश्रण यादव वोटों में सेंध लगाता दिखा। एनडीए की ठोस नीतियों, जैसे बेरोजगारी पर कदम, केंद्र से वित्तीय पैकेज, पीएम किसान, उज्ज्वला और फ्री राशन, ने यादव मतदाताओं को प्रभावित किया।
आरजेडी की चुनौती
आरजेडी का वोट बैंक एमवाय समीकरण पर निर्भर है, जो बिहार में लगभग 32% बनता है। 2024 लोकसभा चुनाव में 23 सीटों पर चुनाव लड़ते हुए आरजेडी केवल 4 सीटें जीत पाई। यादव उम्मीदवारों की हार और बीजेपी के प्रभाव से यह संकेत मिलते हैं कि यादव वोट अब पूरी तरह लालू परिवार के पक्ष में नहीं हैं।
विधानसभा चुनाव में संभावित प्रभाव
2025 विधानसभा चुनाव से पहले अगर यादव वोट आरजेडी से दूर हुए, तो पार्टी की सत्ता में वापसी मुश्किल हो सकती है। एनडीए ने यादव बहुल इलाकों में विकास और हिंदुत्व को मिलाकर राजद के जातिगत नैरेटिव को चुनौती दी है।
निष्कर्ष
बिहार में यादव-मुस्लिम समीकरण और मोदी का विकास+हिंदुत्व एजेंडा 2025 विधानसभा चुनाव के नतीजों को प्रभावित कर सकता है। आरजेडी के लिए यह सबसे बड़ी चुनौती होगी कि वह अपनी पारंपरिक वोट बैंक को भ्रष्ट न होने दे और गठबंधन को मजबूती से बनाए।
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