नई दिल्ली, 14 जुलाई 2025: भारतीय मौसम विज्ञान विभाग (IMD) के अनुसार, 2025 का मानसून भारत में सामान्य से अधिक सक्रिय रहा, जो जून में समय से पहले शुरू हुआ और 9 जुलाई तक पूरे देश को कवर कर लिया, जो सामान्य समय-सीमा से 8 दिन पहले था।
जून में 8% अधिक वर्षा दर्ज की गई, जिससे खरीफ फसलों के लिए अनुकूल परिस्थितियाँ बनीं। हालांकि, उत्तर-पूर्वी भारत में मानसून का प्रदर्शन निराशाजनक रहा, जिससे क्षेत्र की जलवायु और कृषि पर चिंता बढ़ गई है।
क्या रहेंगे पूर्वोत्तर के हालत ?
असम, मेघालय, अरुणाचल प्रदेश, नगालैंड, मणिपुर, मिजोरम और त्रिपुरा जैसे उत्तर-पूर्वी राज्यों में मानसून सामान्य से कमजोर रहा। IMD के पूर्वानुमान के मुताबिक, बंगाल की खाड़ी से आने वाली नम हवाओं की कमजोर शाखा ने इस क्षेत्र में वर्षा को प्रभावित किया। जून में यहाँ सामान्य से कम बारिश हुई, जो पड़ोसी राज्यों जैसे पूर्वी उत्तर प्रदेश और बिहार में भी देखी गई, जहाँ वर्षा 15% कम रही।
पूर्णिया, किशनगंज और अररिया जैसे कुछ क्षेत्रों में हल्की से मध्यम बारिश दर्ज की गई। उदाहरण के लिए, पूर्णिया के ढेंगराघाट में 46.2 मिमी वर्षा हुई, लेकिन यह पर्याप्त नहीं थी। मेघ गर्जन और तेज हवाओं (30-60 किमी/घंटा) के साथ छिटपुट बारिश देखी गई, पर भारी वर्षा की उम्मीदें पूरी नहीं हुईं।
कम वर्षा से खरीफ की फसल पर असर
यह स्थिति उत्तर-पूर्व के लिए चिंताजनक है, जहाँ रबी और खरीफ फसलों की सिंचाई मानसून पर निर्भर है। कम बारिश से जलाशयों और भूजल स्तर पर असर पड़ सकता है, जिससे कृषि उत्पादकता प्रभावित हो सकती है। मेघालय और आदिवासी क्षेत्रों में बाढ़ का जोखिम कम रहा, लेकिन अपर्याप्त वर्षा ने जल प्रबंधन की चुनौतियाँ बढ़ा दी हैं। IMD ने जुलाई में कुछ क्षेत्रों में बारिश बढ़ने की संभावना जताई है, जो किसानों के लिए राहत की उम्मीद देता है।
पश्चिमी विक्षोभ और स्थानीय मौसम प्रणालियों ने मई में तापमान को नियंत्रित रखा, जिससे गर्मी से राहत मिली। फिर भी, उत्तर-पूर्व में मानसून की कमजोरी ने क्षेत्रीय जल प्रबंधन और कृषि योजना पर सवाल उठाए हैं। विशेषज्ञों का कहना है कि निरंतर निगरानी और वैकल्पिक जल स्रोतों की व्यवस्था आवश्यक है।