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जब तक काम पूरा न हो जाए, सतर्क रहें; लापरवाही और अभिमान से अंतिम समय पर काम बिगड़ जाते हैं

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जब तक काम पूरा न हो जाए,

अधिकतर लोग मेहनत करते हैं, लेकिन सफलता कुछ ही लोगों को मिलती है। इसके पीछे एक बड़ा कारण है – लापरवाही और अभिमान। कई बार अंतिम पड़ाव पर की गई छोटी-सी लापरवाही भी बड़े नुकसान का कारण बन सकती है। इसलिए जब तक लक्ष्य पूर्ण न हो जाए, हर कदम पर सतर्क रहना आवश्यक है।

कबीर का दोहा और इसकी सीख

संत कबीर का एक प्रसिद्ध कहा है-

पकी खेती देखिके, गरब किया किसान।

अजहूं झोला बहुत है, घर आवै तब जान।।

इस दोहे में ‘अजहूं झोला’ का अर्थ है झमेला या कठिनाइयां। जब किसान अपनी पक चुकी फसल को देखकर प्रसन्न होता है, तब उसमें अभिमान आ जाता है। लेकिन जब तक फसल को बिना किसी बाधा के सुरक्षित रूप से अपने घर तक नहीं ले लाया जाता है, तब तक किसान को अपनी सफलता नहीं माननी चाहिए। यही सिद्धांत जीवन के हर क्षेत्र में लागू होता है।

सफलता के मार्ग में बाधाएं

हमारे कार्यों में कई प्रकार की बाधाएं आ सकती हैं। इनमें से दो मुख्य कारण हैं:

अभिमान – जब हमें लगता है कि हम सफलता के बहुत करीब हैं, तो कई बार हम अभिमानी हो जाते हैं। यह अहंकार हमारी सफलता में सबसे बड़ी बाधा बन सकता है।

लापरवाही – कार्य पूरा होने से पहले ही खुद को विजयी मान लेना, सावधानी छोड़ देना और प्रयासों में कमी करना असफलता का कारण बन सकता है।

अभिमान और लापरवाही से कैसे बचें?

अभिमान से बचने के लिए और सफलता को सुनिश्चित करने के लिए इन बातों को जीवन में उतारें-

निरंतर प्रार्थना करें – भगवान का आभार मानें और विनम्रता बनाए रखें। प्रार्थना करने से हमारा अहंकार दूर होता है।

सतर्कता बनाए रखें – जब तक कार्य पूरी तरह से सफल न हो जाए, तब तक सावधानी न छोड़ें।

समर्पण और विनम्रता अपनाएं – ये गुण हमें सही दिशा में बनाए रखते हैं और आत्मविश्वास को संतुलित रखते हैं।

सफलता की राह में मेहनत के साथ-साथ सतर्कता और विनम्रता भी जरूरी है। जब तक लक्ष्य पूरी तरह प्राप्त न हो जाए, तब तक हमें सावधानी बरतनी चाहिए। संत कबीर का ये दोहा हमें यही सिखाता है कि असली सफलता तब है, जब कार्य पूर्ण हो जाए।

भक्ति के संदेश

कबीर दास जी की सबसे बड़ी खासियत ये थी कि वो जिस भी भाषा में किसी किताब को लिखते थे। उसमें उस भाषा के स्थानीय शब्दों का इस्तेमाल करना नहीं भूलते थे। यही कारण है कि कबीर दास जी के दोहे आज भी देश के अलग-अलग हिस्सों में अलग-अलग पुस्तकों की वजह से पहचाने जाते हैं।

कबीर दास जी का मानना था कि ईश्वर संसार के कण कण में समाया हुआ है। हर मन में परमेश्वर का निवास है। इसलिए ईश्वर को ढूंढने की आवश्यकता नहीं है। ईश्वर को एकाग्र मन से याद करने की आवश्यकता है।

कबीर जी का कहना था कि गुरु से बड़ा कुछ भी नहीं होता। इसीलिए अपने गुरु की तन मन धन से सेवा करना और गुरु के वचनों पर विश्वास करना एक भक्त का कर्तव्य होता है। इसके अलावा किसी भी तरह की मुसीबत आने पर आपको सिर्फ और सिर्फ अपने गुरु को याद करना चाहिए। इस दौरान आपको किसी और के बारे में ज़रा भी नहीं सोचना चाहिए।

कबीर ने कहा है कि आपको साधु गुरु की सेवा सद्भाव और प्रेम से करनी चाहिए। साथ ही गुरु गुण से संपन्न साधु को आपको अपने गुरु के समान समझना चाहिए। कबीर ने इसी तरह के कई और बहुमूल्य भक्ति से जुड़े संदेश दिए हैं।

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