न्यूयॉर्क: फिलिस्तीन(Palestine) को हाल ही में पांच और देशों ने मान्यता दी है, जिससे उसे अंतरराष्ट्रीय स्तर पर एक स्वतंत्र देश के रूप में और अधिक स्वीकार्यता मिल रही है। फ्रांस, मोनाको, माल्टा, लक्जमबर्ग और बेल्जियम ने इस कदम की घोषणा की। यह निर्णय न्यूयॉर्क में संयुक्त राष्ट्र की एक बैठक के दौरान लिया गया, जिसकी अध्यक्षता फ्रांस(France) और सऊदी अरब ने की थी। फ्रांस के राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों(Emmanuel Macron) ने कहा कि फिलिस्तीन(Palestine) को मान्यता देना शांति के लिए एक महत्वपूर्ण कदम है और इसे हमास की हार बताया। वहीं, संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंटोनियो गुटेरस ने इसे फिलिस्तीनियों का अधिकार बताया, न कि कोई इनाम।
गाजा संघर्ष और बदलती वैश्विक राय
बेल्जियम ने हालांकि, मान्यता के साथ एक शर्त रखी है। इसके अनुसार, यह मान्यता तभी कानूनी रूप से लागू होगी जब गाजा से हमास को सत्ता से हटाया जाएगा और सभी इजरायली बंधकों को रिहा कर दिया जाएगा। इससे पहले, रविवार को ब्रिटेन, कनाडा, ऑस्ट्रेलिया और पुर्तगाल जैसे चार और देशों ने फिलिस्तीन(Palestine) को मान्यता दी थी। अब तक कुल 150 से अधिक देश फिलिस्तीन को स्वतंत्र देश के रूप में मान्यता दे चुके हैं, जो संयुक्त राष्ट्र के सदस्य देशों का लगभग 75% हिस्सा है। इस बढ़ती मान्यता का मुख्य कारण गाजा में जारी संघर्ष और इजराइल की सैन्य कार्रवाई से उपजे मानवीय संकट को माना जा रहा है, जिससे दुनिया भर की राय बदल रही है।
संयुक्त राष्ट्र में फिलिस्तीन की स्थिति
फिलिस्तीन(Palestine) को संयुक्त राष्ट्र में ‘परमानेंट ऑब्जर्वर स्टेट’ (स्थाई पर्यवेक्षक राज्य) का दर्जा प्राप्त है। इसका मतलब है कि फिलिस्तीन(Palestine) संयुक्त राष्ट्र की बैठकों और कार्यक्रमों में हिस्सा ले सकता है, लेकिन उसके पास वोट देने का अधिकार नहीं है। फ्रांस की मान्यता के बाद, संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (UNSC) के पांच स्थायी सदस्यों में से चार – चीन, रूस, फ्रांस और ब्रिटेन (जो हाल ही में मान्यता दी) ने अब तक फिलिस्तीन को मान्यता दे दी है। इस तरह, अमेरिका एकमात्र स्थायी सदस्य है जिसने अभी तक फिलिस्तीन को मान्यता नहीं दी है, हालांकि उसने फिलिस्तीनी अथॉरिटी (PA) को मान्यता दी हुई है।
फ्रांस के राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों ने फिलिस्तीन को मान्यता देने को हमास की हार क्यों बताया?
मैक्रों ने फिलिस्तीन(Palestine) को मान्यता देने को हमास की हार इसलिए बताया, क्योंकि यह कदम शांति प्रक्रिया को मजबूत करने और इजराइल-फिलिस्तीन विवाद का “दो-राज्य समाधान” (two-state solution) खोजने की दिशा में एक बड़ा कदम है। उनका मानना था कि इस तरह के समाधान से हमास जैसे चरमपंथी समूहों का प्रभाव कम होगा, जो हिंसा और संघर्ष को बढ़ावा देते हैं।
फिलिस्तीन को संयुक्त राष्ट्र में वोट देने का अधिकार क्यों नहीं है?
फिलिस्तीन को संयुक्त राष्ट्र में ‘परमानेंट ऑब्जर्वर स्टेट’ का दर्जा प्राप्त है, न कि पूर्ण सदस्य का। यह दर्जा उसे बैठकों में भाग लेने और कुछ प्रक्रियाओं में हिस्सा लेने की अनुमति देता है, लेकिन पूर्ण सदस्य न होने के कारण उसे वोट देने का अधिकार नहीं है। पूर्ण सदस्यता के लिए संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (UNSC) की मंजूरी और महासभा के दो-तिहाई बहुमत की आवश्यकता होती है, जो अभी तक फिलिस्तीन को नहीं मिल पाई है।
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