नई दिल्ली । मामला उत्तराखंड (Uttrakhand) के स्थानीय निकाय चुनावों से जुड़ा है, जहां ऐसे प्रत्याशियों के नामांकन को चुनौती दी गई जिनके नाम दो अलग-अलग मतदाता सूचियों में दर्ज थे। चुनाव आयोग के नियमों के अनुसार, ऐसे प्रत्याशी अपने नामांकन के लिए अयोग्य माने जाते हैं। लेकिन शिकायतों के बावजूद स्थानीय इलेक्शन सीईओ ने कोई कार्रवाई नहीं की, जिससे मामला सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) तक पहुंच गया।
सुप्रीम कोर्ट ने लगाया जुर्माना
सर्वोच्च न्यायालय ने उत्तराखंड राज्य चुनाव आयोग पर 2 लाख रुपये का जुर्माना लगाया। कोर्ट ने आयोग को फटकार लगाई कि उसने कानून की स्पष्ट धाराओं की गलत व्याख्या की।
आयोग का विवादित स्पष्टीकरण
राज्य चुनाव आयोग (State Election Commission) ने पहले यह स्पष्ट किया था कि यदि किसी व्यक्ति का नाम दो मतदाता सूचियों (पंचायत, नगरपालिका, विधानसभा क्षेत्र) में हो, तो उसे नामांकन से बाहर नहीं किया जाएगा।
याचिकाकर्ता की दलील
विरोध में, याचिकाकर्ता ने कहा कि उत्तराखंड पंचायती राज अधिनियम, 2016 की धारा 9(6) और 9(7) स्पष्ट हैं – किसी व्यक्ति का नाम दो मतदाता सूचियों में नहीं हो सकता।
सुप्रीम कोर्ट का रुख
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि प्रशासनिक स्पष्टीकरण कानून की स्पष्ट धाराओं को दरकिनार नहीं कर सकता। यदि कानून कहता है कि दो मतदाता सूची में नाम नहीं हो सकता, तो उसका उलट स्पष्टिकरण लागू नहीं हो सकता। यह फैसला चुनाव प्रक्रिया, मतदाता सूची की विश्वसनीयता और विधिक सीमाओं पर बहस को फिर से तूल दे रहा है।
भारत में कुल कितने सुप्रीम कोर्ट हैं?
भारत में केवल एक ही सर्वोच्च न्यायालय है, जो देश का सर्वोच्च न्यायिक निकाय है और नई दिल्ली में स्थित है। इसके अतिरिक्त, भारत में 25 उच्च न्यायालय हैं जो राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के न्यायिक मामलों की देखरेख करते हैं।
सुप्रीम कोर्ट में कितने ब्राह्मण जज हैं?
सुप्रीम कोर्ट में ब्राह्मण जजों की सटीक संख्या बताना मुश्किल है क्योंकि सरकार या सर्वोच्च न्यायालय द्वारा आधिकारिक तौर पर जातिगत आंकड़े जारी नहीं किए जाते हैं.
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