पटना । बिहार विधानसभा चुनाव इस बार बेहद दिलचस्प होने जा रहा है। एनडीए और महागठबंधन के पारंपरिक मुकाबले के बीच कई ऐसी पार्टियां मैदान में हैं जो सभी 243 सीटों पर चुनाव लड़ने की घोषणा कर चुकी हैं। इन दलों की मौजूदगी से बड़े गठबंधनों का समीकरण प्रभावित हो सकता है।
आम आदमी पार्टी ने अकेले लड़ने का किया ऐलान
आम आदमी पार्टी (AAP) ने साफ किया है कि वह किसी गठबंधन में शामिल नहीं होगी और सभी 243 सीटों पर अकेले चुनाव लड़ेगी। दिल्ली में दो बार सरकार बना चुकी आप अब बिहार में अपनी जमीन तलाश रही है। हालांकि राज्य में संगठन की स्थिति कमजोर है, फिर भी पार्टी की रणनीति महागठबंधन के वोट बैंक में सेंध लगाने की मानी जा रही है।
बसपा भी मैदान में, शाहाबाद पर निगाह
बसपा सुप्रीमो मायावती ने भी इस बार बिहार की सभी सीटों पर चुनाव लड़ने का फैसला किया है।
उनकी पार्टी का प्रभाव सीमित रहा है, लेकिन शाहाबाद इलाका, जो यूपी से सटा हुआ है, बसपा के लिए अहम माना जाता है। शाहाबाद की 22 विधानसभा सीटों में से 20 पर फिलहाल महागठबंधन का कब्जा है, ऐसे में बसपा की एंट्री इस क्षेत्र में समीकरण बदल सकती है। एनडीए (NDA) और महागठबंधन दोनों ने यहां अपनी पकड़ मजबूत करने के लिए पूरी ताकत झोंक दी है।
जन सुराज पार्टी — प्रशांत किशोर का ‘तीसरा रास्ता’
प्रशांत किशोर (PK) की जन सुराज पार्टी शुरुआत से ही “सभी सीटों पर चुनाव” की बात करती रही है।
पीके का दावा है कि लालू-नीतीश के 35 साल के शासन में बिहार बेहाल हुआ है, और अब नई राजनीति का समय आ गया है। उन्होंने अपने 101 उम्मीदवारों की पहली सूची जारी करने की घोषणा की है और खुद भी चुनाव लड़ने का ऐलान किया है — संभावना है कि वे करगहर सीट से उम्मीदवार बनेंगे।
उनका निशाना एनडीए और महागठबंधन — दोनों पर है।
ओवैसी का सीमांचल कार्ड — थर्ड फ्रंट की तैयारी
असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी एआईएमआईएम की बिहार के सीमांचल इलाके में मजबूत पकड़ है।
पिछले चुनाव में पार्टी ने पांच विधायक जीते थे, जिनमें से चार आरजेडी में चले गए। इस बार ओवैसी ने घोषणा की है कि वे “चार का बदला चालीस से लेंगे” और थर्ड फ्रंट बनाकर चुनाव लड़ेंगे। हालांकि अभी यह स्पष्ट नहीं है कि उनके मोर्चे में कौन-कौन दल शामिल होंगे।
गोपालगंज उपचुनाव में उनका प्रभाव देखा जा चुका है — अगर एआईएमआईएम ने वहां वोट नहीं काटे होते, तो आरजेडी उम्मीदवार की जीत तय थी।
लोजपा (रामविलास) की रणनीति पर भी नज़र
एनडीए के भीतर भी चिराग पासवान की पार्टी लोजपा (रामविलास) के तेवर पर सबकी निगाह है।
2020 की तरह इस बार भी अगर चिराग अलग राह चुनते हैं, तो एनडीए के समीकरण पर असर पड़ सकता है।
निष्कर्ष: छोटे दलों का बड़ा असर
बिहार चुनाव में इस बार सिर्फ दो गठबंधनों की जंग नहीं, बल्कि तीसरी और चौथी ताकतों का भी मुकाबला है। आम आदमी पार्टी, बसपा, जन सुराज और एआईएमआईएम जैसी पार्टियां अगर कुछ सीटों पर भी अच्छा प्रदर्शन करती हैं, तो महागठबंधन और एनडीए — दोनों का खेल बिगड़ सकता है।
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