हैदराबाद : पुलिस फ्लैग डे (Police Flag Day) के मौके पर, सेंट्रल ज़ोन पुलिस के सैफाबाद डिवीज़न ने आज शाह फंक्शन प्लाज़ा में एक ब्लड डोनेशन कैंप (Blood Donation Camp) लगाया। इस पहल का मकसद थैलेसीमिया से पीड़ित मरीज़ों की मदद करना था, यह एक विरासत में मिली खून की बीमारी है जिसमें ज़िंदा रहने के लिए रेगुलर खून चढ़ाने की ज़रूरत होती है। स्टूडेंट, आम लोग, महिला वॉलंटियर और पुलिस वालों समेत कुल 210 लोगों ने कैंप में पूरे जोश के साथ हिस्सा लिया।
छात्रों के साथ कई लोगों के किया रक्तदान
खास योगदान देने वालों में तपस्या कॉलेज और आईसीबीएम कॉलेज, गवर्नमेंट डिग्री कॉलेज (खैरताबाद) के स्टूडेंट और नामपल्ली और खैरताबाद के युवा, और एचडीएफसी बैंक, डीएचएल, श्रीराम लाइफ और आईमैक्स के स्टाफ़ मेंबर शामिल थे। पुलिस अफ़सर एसीपी संजय, वेंकट रेड्डी, एसएचओ खैरताबाद, श्री नारायण रेड्डी, एसएचओ नामपल्ली, सैदुलु, डीआई खैरताबाद, एसआई और सैफाबाद डिवीज़न के दूसरे स्टाफ़ ने भी इस नेक काम में बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया। इस मौके पर, थैलेसीमिया और सिकल सेल सोसाइटी के चेयरमैन, चंद्रकांत ने थैलेसीमिया के मरीज़ों के लिए रेगुलर सुरक्षित खून की उपलब्धता की बहुत ज़रूरत पर ज़ोर दिया, जिन्हें ज़िंदा रहने के लिए लगभग हर 15 दिन में खून चढ़ाने की ज़रूरत होती है।

जागरूकता और स्क्रीनिंग से रोका जा सकता थैलेसीमिया को : डीसीपी
डीसीपी सेंट्रल ज़ोन, श्रीमती शिल्पावल्ली ने ज़ोर देकर कहा कि थैलेसीमिया एक ऐसी बीमारी है जिसे जागरूकता और समय पर शादी से पहले स्क्रीनिंग से रोका जा सकता है। उन्होंने बताया कि जब दोनों पार्टनर थैलेसीमिया माइनर कैरियर होते हैं, तो 25% संभावना होती है कि उनका बच्चा थैलेसीमिया मेजर के साथ पैदा हो सकता है, जिससे ज़िंदगी भर मेडिकल दिक्कतें आ सकती हैं। इसलिए, दो कैरियर के बीच शादी से बचना और जेनेटिक काउंसलिंग को बढ़ावा देना बचाव के ज़रूरी उपाय हैं। डीसीपी ने आगे लोगों, खासकर युवाओं से, अपनी मर्ज़ी से खून देने के लिए आगे आने और थैलेसीमिया को रोकने और प्रभावित मरीज़ों की मदद करने के लिए जागरूकता कैंपेन में सक्रिय रूप से हिस्सा लेने की अपील की।
थैलेसीमिया बीमारी से क्या होता है?
एक आनुवंशिक (genetic) रक्त विकार (blood disorder) है जिसमें शरीर हीमोग्लोबिन का उत्पादन ठीक से नहीं कर पाता।
Thalassemia का मरीज कब तक जीवित रह सकता है?
यदि उचित इलाज, जैसे कि रेगुलर ब्लड ट्रांसफ्यूजन, आयरन चेलेशन थेरेपी, और समय-समय पर स्वास्थ्य जांच की जाए तो
थैलेसीमिया मेजर के मरीज भी 30–50 साल या उससे अधिक जीवित रह सकते हैं।
आज की मेडिकल सुविधाओं के कारण कई मरीज सामान्य जीवन जी रहे हैं।
Thalassemia का पता कैसे लगाया जाता है?
इसका पता लगाने के लिए मुख्य रूप से ये परीक्षण किए जाते हैं:
- CBC (Complete Blood Count) – एनीमिया का पता चलता है
- Hemoglobin Electrophoresis – यह बताता है कि हीमोग्लोबिन का प्रकार कैसा है (यही थैलेसीमिया की पुष्टि करता है)
- genetic Testing – थैलेसीमिया के जीन की पहचान के लिए
- Prenatal Testing – जन्म से पहले शिशु में थैलेसीमिया की जांच
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