नई दिल्ली। छठ पर्व प्रकृति, पर्यावरण और सूर्य देव की उपासना का महान उत्सव है, जो अनेक लोकमान्यताओं और परंपराओं को समेटे हुए है। बिहार की संस्कृति में सूर्य पूजा का प्राचीन इतिहास रहा है, जिसका प्रमाण है बिहार के औरंगाबाद जिले में स्थित देवार्क सूर्य मंदिर (Dewark Sun Temple)
‘अर्क’ शब्द का अर्थ और महत्व
यह मंदिर सूर्य देव के वैदिक नाम ‘अर्क’ को समर्पित है। ‘देवार्क’ का अर्थ है ‘अर्क देव’, यानी सूर्य। वेदों में भी सूर्य को ‘अर्क’ कहा गया है, और सूर्य नमस्कार के तेरह मंत्रों में से एक मंत्र है — “ॐ अर्काय नमः”, जिसका अर्थ है “मैं अर्क देव को नमस्कार करता हूं।”
‘अर्क’ का एक अर्थ ‘रस’ भी है, जो जीवात्मा में ऊर्जा का स्रोत सूर्य को दर्शाता है। यही कारण है कि वैदिक ऋचाओं में सूर्य को विशेष स्थान प्राप्त है।
तीन प्रमुख सूर्य मंदिरों में एक देवार्क
औरंगाबाद का देवार्क सूर्य मंदिर सूर्य पूजा की प्राचीन परंपरा का जीवंत प्रमाण है। इसे तीन प्रमुख सूर्य मंदिरों में गिना जाता है —
- काशी का लोलार्क,
- ओडिशा का कोणार्क,
- और बिहार का देवार्क सूर्य मंदिर।
त्रिशूल कथा: सूर्य के तीन रूपों की उत्पत्ति
एक पौराणिक कथा के अनुसार, शिव के गण माली-सुमाली, जो रावण के नाना थे, कठोर तपस्या कर रहे थे। इससे भयभीत इंद्र ने सूर्य देव को आदेश दिया कि वे अपना ताप बढ़ाएं। जब सूर्य के ताप से माली-सुमाली जलने लगे, तब क्रोधित होकर भगवान शिव ने अपने त्रिशूल से सूर्य को भेद दिया। सूर्य के तीन खंड पृथ्वी पर गिरे — एक देवार्क (बिहार), दूसरा लोलार्क (काशी) और तीसरा कोणार्क (ओडिशा)।
देव माता अदिति की तपस्थली
एक अन्य पौराणिक कथा के अनुसार, प्रथम देवासुर संग्राम में जब देवता असुरों से पराजित हुए, तब देवमाता अदिति ने तेजस्वी पुत्र की प्राप्ति के लिए देवारण्य में छठी मैया (Chhathi Maiya) की कठोर तपस्या की। छठी मैया ने प्रसन्न होकर उन्हें सर्वगुण संपन्न पुत्र का वरदान दिया।
इसके परिणामस्वरूप अदिति के पुत्र त्रिदेव रूप आदित्य भगवान हुए, जिन्होंने देवताओं को असुरों पर विजय दिलाई। इसी कारण देवार्क सूर्य मंदिर को अदिति की तपस्थली और छठ मैया का प्राकट्य स्थल माना जाता है।
वास्तुकला और दिशा की विशेषता
देवार्क सूर्य मंदिर अन्य सूर्य मंदिरों की तरह पूर्वाभिमुख नहीं है, बल्कि यह पश्चिमाभिमुख है। यह विशेषता इसे अन्य सूर्य मंदिरों से अलग बनाती है। मंदिर की शिल्पकला अत्यंत आकर्षक है — पत्थरों को बारीकी से तराशकर इसमें उत्कृष्ट नक्काशी की गई है।
इतिहासकार इसके निर्माण काल को 6वीं से 8वीं सदी के बीच का मानते हैं, जबकि पौराणिक मान्यताएं इसे त्रेता या द्वापर युग से जोड़ती हैं।
छठी मैया का प्राकट्य और पूजा का महत्व
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, जब अदिति ने सर्वश्रेष्ठ पुत्र के लिए तप किया, तब उनके तप से प्रकृति का छठा अंश देवी के रूप में प्रकट हुआ — वही षष्ठी देवी, जिन्हें आज छठ मैया के रूप में पूजा जाता है।
ज्योतिष में पंचम भाव संतान सुख का और षष्ठम भाव शत्रु पर विजय तथा संरक्षण का प्रतीक है। इसीलिए षष्ठी तिथि को संतान और सुख-समृद्धि की प्रतीक माना गया है।
छठ व्रत और देवार्क का आध्यात्मिक महत्व
देवार्क वही पवित्र स्थान है जहां अदिति ने तपस्या की और सूर्यदेव मार्तंड के रूप में प्रकट हुए। इसी कारण यह स्थल छठ पर्व के दौरान विशेष रूप से पूजनीय है। हर वर्ष हजारों श्रद्धालु यहां पहुंचकर सूर्य देव को अर्घ्य अर्पित करते हैं और छठी मैया से परिवार की सुख-शांति की कामना करते हैं।
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