इस्लामाबाद। पाकिस्तान के संविधान में 27वें संशोधन पर हाल ही में नेशनल असेंबली में मतदान हुआ। इसे रक्षा क्षेत्र में 1976 के बाद हुए सबसे बड़े बदलाव के रूप में देखा जा रहा है। संशोधन के जरिए आर्मी, वायु सेना और नेवी से संबंधित कानूनों में बदलाव करते हुए पाक सरकार इसे आधुनिकीकरण बता रही है। वहीं विपक्षी दल और आलोचक इसे सत्ता के केंद्रीकरण और तानाशाही की ओर बढ़ता कदम बता रहे हैं। उनका कहना है कि इससे मौजूदा सेना प्रमुख असीम मुनीर की ताकत अत्यधिक बढ़ जाएगी।
नई व्यवस्था का केंद्र सेना प्रमुख का दोहरा पद COAS और CDF
मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक इस पुनर्गठन के केंद्र में आर्मी चीफ का पद है, जो अब रक्षा बलों का प्रमुख यानी चीफ ऑफ डिफेंस फोर्सेज (CDF) भी होगा। इस दोहरी भूमिका ने इस पद को बहु-क्षेत्रीय एकीकरण, संयुक्तता और पुनर्गठन में नई शक्तियां प्रदान की हैं। खास बात यह है कि कई संरचनात्मक फैसलों के लिए अब संसदीय अनुमोदन भी आवश्यक नहीं होगा।
ज्वाइंट चीफ्स ऑफ स्टाफ कमेटी का पद समाप्त
नया कानून ज्वाइंट चीफ्स ऑफ स्टाफ कमेटी के अध्यक्ष पद को समाप्त कर देता है, जिसे 1971 के युद्ध के बाद तीनों सेनाओं में समन्वय के लिए बनाया गया था। नई कमान संरचना ने सेना प्रमुख के कार्यालय में संयुक्तता के तर्क को केंद्रित कर दिया है। अब शीर्ष सैन्य नियुक्तियां भी CDF-सह-(COAS) की सिफारिश पर निर्भर होंगी।
परमाणु बलों की संरचना में भी बड़ा बदलाव
संशोधन के अनुसार परमाणु बलों के कार्यालय (CNSC) के नए पदों पर नियुक्ति और सेवा अवधि बढ़ाने का अधिकार CDF की सिफारिश पर होगा। यह प्रक्रिया न्यायिक समीक्षा से भी मुक्त रहेगी। विशेषज्ञों के अनुसार CDF और राष्ट्रीय सामरिक कमान से जुड़े नए कमांडर—दोनों ही सेना से होंगे—और अन्य सेना प्रमुखों से वरिष्ठ माने जाएंगे।
CDF को निर्णायक नियंत्रण, निर्णय प्रक्रिया में पक्षपात का जोखिम
पाकिस्तान सेना में एक बड़ा परिवर्तन यह है कि CDF-सह-COAS को अपनी शक्तियों के प्रत्यायोजन पर निर्णायक नियंत्रण मिलेगा। संशोधन संघीय सरकार को उप-सेना प्रमुखों को COAS के कार्यों का प्रयोग करने के लिए अधिकृत करने का अधिकार देता है, जो पहले कार्यपालिका का विशेषाधिकार था।
इसके अलावा फील्ड मार्शल की संवैधानिक प्रधानता बरकरार रखी गई है। साथ ही संघीय सरकार को सेना के शासन, कमान, अनुशासन, सेवा शर्तों और प्रशासन से जुड़े नियम बनाने का व्यापक अधिकार प्रदान किया गया है।
एक पद पर अत्यधिक शक्ति के केंद्रीकरण की आशंका
इन बदलावों के चलते एक ही पद पर अत्यधिक नियंत्रण स्थापित होने और उसका कार्यकाल 2035 के बाद भी बढ़ाए जाने की संभावना को लेकर आलोचनाएं तेज हैं। विशेषज्ञों का कहना है कि निर्णय प्रक्रिया पद पर बैठे व्यक्ति के व्यक्तित्व, प्राथमिकताओं और राजनीति पर अत्यधिक निर्भर हो जाएगी, जिससे नौसेना और वायु सेना की भूमिका और कम हो सकती है।
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