टैरिफ नीति पर नया दबाव बढ़ा
नई दिल्ली: अमेरिका(America) के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप(Donald Trump) द्वारा बनाए गए डिपार्टमेंट ऑफ गवर्नमेंट एफिशियंसी(DOGE) को सिर्फ दस महीनों में बंद कर दिया गया है। सरकारी खर्च घटाने के उद्देश्य से शुरू हुआ यह विभाग अपने लक्ष्य पूरे नहीं कर सका और इसी दौरान अमेरिका का कर्ज तेजी से बढ़ता गया। DOGE के समाप्त होने के साथ ही अब ट्रंप की टैरिफ नीति पर भी नए सवाल उठ रहे हैं, जिससे आर्थिक दबाव और बढ़ गया है।
DOGE की शुरुआत और बढ़ता विवाद
DOGE का गठन 20 जनवरी को किया गया था और इसकी जिम्मेदारी कारोबारी एलन मस्क को दी गई थी। हालांकि मस्क ने शुरुआत में ही इससे दूरी बना ली, जिससे विभाग की दिशा और नेतृत्व को लेकर विवाद पैदा हो गया। यह विभाग सरकारी ढांचे में सुधार करके अरबों डॉलर बचाने का दावा कर रहा था, पर इसके कदम व्यवहार में कमजोर साबित हुए और कोई ठोस प्रगति नहीं दिखी।
विभाग के 326 दिनों के संचालन में अमेरिका का कर्ज 2.1 ट्रिलियन डॉलर बढ़ गया। इसका अर्थ है कि प्रतिदिन लगभग 6.5 अरब डॉलर अतिरिक्त बोझ राष्ट्रीय बजट पर जुड़ता चला गया। ताज़ा आंकड़ों के अनुसार अमेरिका का कुल कर्ज अब 38.3 ट्रिलियन डॉलर हो गया है, जो देश की आर्थिक चिंताओं को और गहरा करता है।
टैरिफ फैसलों पर बढ़ते प्रश्न
DOGE बंद होने के बाद अब ध्यान राष्ट्रपति ट्रंप की टैरिफ रणनीति की ओर गया है। विशेषज्ञों का मानना है कि उनके लगातार बदलते रुख से यह संकेत मिल रहा है कि टैरिफ नीति में भी कुछ फैसले पलटे जा सकते हैं। ट्रंप ने कई देशों पर भारी शुल्क लगाए हैं, जिनमें भारत पर 50% का सबसे ऊँचा टैरिफ लागू है।
भारत पर लगे शुल्क में 25% का अतिरिक्त टैरिफ भी शामिल है, जिसका कारण रूस से कच्चा तेल खरीदना बताया गया है। यह निर्णय न केवल द्विपक्षीय व्यापार को प्रभावित कर रहा है बल्कि अमेरिकी बाजारों में भी अनिश्चितता बढ़ा रहा है। इसलिए विशेषज्ञों का अनुमान है कि आने वाले महीनों में इस नीति में बदलाव संभव है।
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आर्थिक दिशा पर बड़ा असर
DOGE का बंद होना आर्थिक प्रबंधन की एक कमजोर कड़ी सामने लाता है। इससे यह स्पष्ट है कि सरकारी सुधार योजनाएँ मजबूत आधार नहीं बना सकीं और कर्ज नियंत्रण की रणनीतियाँ असफल रहीं। आगे की आर्थिक दिशा अब टैरिफ नीतियों और प्रशासनिक निर्णयों पर निर्भर करेगी, जिनका असर वैश्विक व्यापार पर भी पड़ सकता है।
अर्थशास्त्रियों का कहना है कि मौजूदा आर्थिक दबाव अमेरिका को कठोर फैसले लेने के लिए मजबूर कर सकता है। यदि टैरिफ नीति में फेरबदल होता है, तो यह वैश्विक बाजारों में भी महत्वपूर्ण प्रभाव डाल सकता है।
DOGE असफल क्यों माना जा रहा है?
विभाग अपने मुख्य लक्ष्य—सरकारी खर्च में कटौती—को हासिल करने में विफल रहा। नेतृत्व की अस्पष्टता, कमजोर रणनीतिक योजना और कर्ज नियंत्रण पर असर न पड़ना इसकी नाकामी के प्रमुख कारण बताए जा रहे हैं।
क्या टैरिफ नीति में निकट भविष्य में बदलाव संभव है?
विशेषज्ञों का मानना है कि आर्थिक दबाव और बदलते अंतरराष्ट्रीय समीकरणों के कारण टैरिफ नीति में बदलाव की संभावना बनी हुई है। बढ़ती लागत और व्यापारिक प्रभावों की वजह से अमेरिकी प्रशासन नई रणनीति पर विचार कर सकता है।
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