ट्रंप के टैरिफ का असर: अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप द्वारा लगाए गए टैरिफ का प्रभाव अब पूरी तरह से वैश्विक अर्थव्यवस्था पर दिखाई देने लगा है। ब्रिटेन से लेकर जर्मनी और चीन तक, हर देश इसकी चपेट में आता नजर आ रहा है। ब्रिटेन का निर्यात जहां बीते पांच साल में सबसे तेज गिरावट के दौर में पहुंच गया है, वहीं जर्मनी की मैन्युफैक्चरिंग यूनिट्स पर भी प्रभाव पड़ा है।
कंपनियों के बदलते फैसले और रणनीतियां
ट्रंप के टैरिफ का असर: अंतरराष्ट्रीय कंपनियों पर इस टैरिफ का प्रभाव काफी गहरा है। वोल्वो कार्स, डिएगेओ, और अन्य बहुराष्ट्रीय कंपनियों ने अपने सेल्स टारगेट घटा दिए हैं। रिपोर्ट के मुताबिक, सीमा पार व्यापार पर निर्भर छोटे और मझोले प्रयास पूरी तरह बाजार से बाहर हो गए हैं।
ट्रेड फोर्स मल्टीप्लायर के सीईओ सिंडी एलेन के मुताबिक,
“145% तक का टैरिफ छोटे व्यवसायियों के लिए असहनीय है।”
ट्रंप की रणनीति में नरमी, फिर भी राहत नहीं
हालांकि ट्रंप प्रशासन की ओर से कुछ नरमी और वार्तालाप की पहल की गई है। चीन, इंडिया, जापान और दक्षिण कोरिया जैसे देशों के साथ व्यापार समझौतों को लेकर फिर से बातचीत आरंभ हुई है, लेकिन वैश्विक बाजार अभी भी ढुलमुल हुआ है।
बीजिंग और वाशिंगटन के बीच बातचीत के संकेत अवश्य मिले हैं, लेकिन हालात स्थिर नहीं हैं। अमेरिका टैरिफ नीति ने बाजारों में असमंजस पैदा कर दिया है, जिससे निवेशकों का एतबार कमजोर हुआ है।
इंडिया के लिए चुनौती और अवसर दोनों
इंडिया ने इस आर्थिक संकट की घड़ी में अपना संतुलन बनाए रखा है। टैरिफ की दरें चीन की तुलना में कम हैं, जिससे यहां उत्पादन लागत अपेक्षाकृत कम बनी हुई है। यही कारण है कि Apple जैसी संगठन अब अपना प्रोडक्शन इंडिया शिफ्ट कर रही हैं।
यह बदलाव चीन के लिए चिंता का विषय है लेकिन इंडिया के लिए यह आर्थिक मौका बन सकता है।
सेंट्रल बैंकों की नीति और ब्याज दरों में बदलाव
इस वैश्विक अनिश्चितता के बीच सेंट्रल बैंक अर्थव्यवस्था को गति देने के लिए ब्याज दरों में कटौती कर रहे हैं। हालांकि, टैरिफ के प्रभाव को देखते हुए यह राहत सीमित ही साबित हो रही है।
प्रमुख चिंता: क्या मांग में और गिरावट आएगी?
टैरिफ के चलते उत्पादन लागत बढ़ी है और इसका सीधा असर वैश्विक मांग पर पड़ता दिख रहा है। यदि यह ट्रेंड जारी रहा तो आने वाले दिनों में अंतरराष्ट्रीय व्यापार और निवेश दोनों पर ऋणात्मक प्रभाव हो सकता है।