नई दिल्ली । दुनिया में दो नायाब हीरे हैं। एक कोहिनूर और दूसरा दरिया-ए-नूर। कोहिनूर (Kohinoor) का इतिहास और वर्तमान सबके सामने है, लेकिन नूर के दरिया का वर्तमान अभी रहस्य बना हुआ है। सभी को उम्मीद है कि 117 साल से बांग्लादेश (Bengladesh) के बैंक की तिजोरी में रखा ये हीरा अब सामने आएगा। वित्तीय संकट से जूझ रही बांग्लादेश सरकार ने उस तिजोरी को खोलने का फैसला किया है, जिसमें बेशकीमती रत्न रखे हुए हैं।
गोलकुंडा की खदानों से निकला नायाब हीरा
दरिया-ए-नूर हीरे को भारत की गोलकुंडा की खदानों से निकाला गया था। यहीं से विश्व प्रसिद्ध कोहिनूर हीरा भी मिला था। डिजिटल संग्रह संस्था बांग्लादेश ऑन रिकॉर्ड (Bengladesh on Record) के मुताबिक, दरिया-ए-नूर अपनी चमक के लिए दुनिया में बेजोड़ है। इसे सोने के बाजूबंद के बीच जड़ा गया था, जिसके चारों ओर 10 छोटे हीरे लगे थे।
वजन पर रहस्य, रिपोर्टों में अलग-अलग दावे
1908 के अदालती दस्तावेजों में इस हीरे के वजन का स्पष्ट उल्लेख नहीं है। कुछ रिपोर्ट्स में इसे 182 कैरेट का बताया गया है, जबकि कहीं 26 कैरेट माना गया है।
मराठों से लेकर नवाबों तक का सफर
खदानों से निकलने के बाद यह हीरा लंबे समय तक मराठा शासकों के पास रहा। इसके बाद हैदराबाद के नवाब शाही परिवार ने इसे 1.30 लाख रुपये में खरीदा। बाद में यह फारसी सम्राट के पास पहुंचा, जहां से पंजाब के शासक महाराजा रणजीत सिंह (1780-1839) ने कोहिनूर के साथ इसे भी जब्त कर लिया।
अंग्रेजों ने महारानी विक्टोरिया को भेजा
1849 में जब अंग्रेजों ने पंजाब पर कब्जा किया तो उन्होंने रणजीत सिंह के खजाने से कोहिनूर और दरिया-ए-नूर दोनों को ले लिया। 1850 में अंग्रेजों ने दोनों हीरों को महारानी विक्टोरिया को भेंट कर लंदन भेज दिया।
ढाका के नवाब ने की थी नीलामी में खरीद
नीलामी के समय ढाका के पहले नवाब ख्वाजा अलीमुल्लाह ने दरिया-ए-नूर को खरीदा। 1908 में ढाका के दूसरे नवाब सलीमुल्लाह ने आर्थिक संकट के चलते ब्रिटिश हुकूमत से 14 लाख टका कर्ज लिया और हीरे समेत 109 कीमती वस्तुओं को गिरवी रख दिया। कर्ज चुका न पाने के कारण यह हीरा सरकारी बैंकों के पास चला गया और तब से वहीं सुरक्षित है।
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