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Breaking News: Agreement: पाकिस्तान-सऊदी अरब रक्षा समझौता

Dhanarekha
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Breaking News: Agreement: पाकिस्तान-सऊदी अरब रक्षा समझौता

एक गहरा रणनीतिक गठजोड़

इस्लामाबाद: पाकिस्तान के रक्षा मंत्री ख्वाजा आसिफ ने हाल ही में घोषणा की है कि अगर भारत के साथ युद्ध होता है तो सऊदी अरब पाकिस्तान का साथ देगा और इस रक्षा समझौते(Agreement) के तहत पाकिस्तान अपनी परमाणु क्षमता सऊदी अरब के साथ साझा करेगा। इस समझौते को दोनों देशों के बीच एक अम्ब्रेला समझौता कहा जा रहा है, जिसका अर्थ है कि एक पर हमला होने पर दोनों मिलकर जवाब देंगे। यह समझौता(Agreement) दोनों देशों के बीच लंबे समय से चली आ रही आर्थिक और रणनीतिक साझेदारी को और भी गहरा करता है। रिपोर्टों के अनुसार, सऊदी अरब(Saudi Arabia) ने पाकिस्तान के परमाणु कार्यक्रम में आर्थिक रूप से मदद की है, और यह नया समझौता इस रिश्ते को एक औपचारिक रूप दे रहा है। हालांकि, पाकिस्तान का दावा है कि यह समझौता रक्षात्मक है, न कि आक्रामक

भारत पर संभावित प्रभाव और सुरक्षा चिंताएँ

भारत के विदेश मंत्रालय ने इस समझौते(Agreement) को गंभीरता से लिया है और इसके राष्ट्रीय सुरक्षा, क्षेत्रीय और वैश्विक स्थिरता पर पड़ने वाले असर की जांच करने की बात कही है। यह समझौता भारत के लिए चिंता का विषय है क्योंकि पाकिस्तान के पास पहले से ही 170 परमाणु हथियार हैं, जो भारत के लगभग 172 हथियारों के बराबर हैं। यदि पाकिस्तान अपनी परमाणु क्षमताओं(Nuclear Capabilities) को सऊदी अरब के साथ साझा करता है, तो यह मध्य पूर्व में परमाणु प्रसार की संभावना को बढ़ा सकता है, जिससे क्षेत्रीय संतुलन बिगड़ सकता है। यह समझौता(Agreement) अमेरिका के लिए भी एक चुनौती है, क्योंकि सऊदी अरब अब अमेरिका की सुरक्षा गारंटी पर पूरी तरह निर्भर नहीं रहना चाहता है।

नाटो जैसी संयुक्त सेना का प्रस्ताव और ऐतिहासिक संदर्भ

इस समझौते(Agreement) से पहले, पाकिस्तान ने मुस्लिम देशों के बीच एक नाटो जैसी संयुक्त रक्षा बल बनाने का सुझाव दिया था। यह प्रस्ताव इजरायल-हमास संघर्ष के बाद आया था, जिसमें पाकिस्तान ने इस्लामिक समुदाय (उम्माह) की रक्षा के लिए अपनी परमाणु क्षमता का उपयोग करने की बात कही थी। यह ध्यान देने योग्य है कि पाकिस्तान का अमेरिका के साथ भी ऐसा ही एक रक्षा समझौता(Agreement) (म्यूचुअल डिफेंस असिस्टेंस एग्रीमेंट, 1954) था, जो 1979 में टूट गया था। उस समझौते के तहत भी अमेरिका ने पाकिस्तान को सैन्य सहायता दी थी, लेकिन भारत-पाक युद्धों में सीधे तौर पर मदद नहीं की थी। यह ऐतिहासिक संदर्भ दिखाता है कि इस तरह के समझौते हमेशा गारंटी नहीं होते।

पाकिस्तान ने अमेरिका के साथ किस तरह का रक्षा समझौता किया था और वह क्यों टूट गया?

पाकिस्तान ने अमेरिका के साथ 1954 में म्यूचुअल डिफेंस असिस्टेंस एग्रीमेंट (MDAA) किया था। यह समझौता शीत युद्ध के दौरान सोवियत संघ के विस्तार को रोकने के लिए किया गया था, जिसमें दोनों देशों ने एक-दूसरे को सैन्य सहायता देने का वादा किया था। हालाँकि, यह समझौता 1979 में टूट गया था। इस समझौते के बावजूद, भारत-पाकिस्तान के बीच हुए युद्धों में अमेरिका ने पाकिस्तान की सीधे तौर पर कोई मदद नहीं की।

सऊदी अरब और पाकिस्तान के बीच इस समझौते को लेकर विशेषज्ञ क्या मानते हैं?

विशेषज्ञों का मानना है कि यह समझौता भले ही एक औपचारिक संधि न हो, लेकिन इसकी गंभीरता को देखते हुए इसे एक बड़ी रणनीतिक साझेदारी माना जा सकता है। कुछ विशेषज्ञ यह भी सवाल उठा रहे हैं कि क्या यह समझौता(Agreement) कतर में इजरायल के हमले का जवाब है, या यह इस बात की पुष्टि करता है कि सऊदी अरब पाकिस्तान के परमाणु कार्यक्रम का एक अघोषित सहयोगी रहा है। यह भी माना जा रहा है कि यह समझौता सऊदी अरब की अमेरिका पर निर्भरता कम करने का एक प्रयास है।

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