दुबई । भारत ने ब्रह्मोस मिसाइलों से लैस तेजस लड़ाकू विमानों को दुबई एयरशो-2025 में प्रदर्शित किया। इसका उद्देश्य सिर्फ (UAE ) के साथ रक्षा संबंधों को मजबूत करना ही नहीं, बल्कि खाड़ी, एशिया और अफ्रीका के रक्षा बाजारों में भारत को एक उभरते सप्लायर के रूप में स्थापित करना है। यह एयर शो 17 से 21 नवंबर तक चल रहा है।
HAL, DRDO और निजी कंपनियों की संयुक्त उपस्थिति
रिपोर्ट के मुताबिक हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड, (DRDO) निजी रक्षा कंपनियाँ और स्टार्टअप्स के साथ भारतीय वायुसेना की सूर्यकिरण टीम और (LCA) तेजस लड़ाकू विमान एयरशो में अपनी उन्नत क्षमताओं का प्रदर्शन कर रहे हैं। ब्रह्मोस मिसाइल पहले ही पाकिस्तान के खिलाफ अपनी क्षमता दिखा चुकी है, जिससे यह एक युद्ध-प्रमाणित हथियार बन गई है।
दुबई एयरशो—एशिया, अफ्रीका और खाड़ी बाजार का संगम
दुबई एयरशो की खासियत है कि यह खाड़ी, अफ्रीका और दक्षिण एशिया के सामरिक चौराहे पर स्थित है। इस शो में 1000 से अधिक ऑब्जर्वर्स, रक्षा विशेषज्ञ और विभिन्न देशों के वरिष्ठ प्रतिनिधिमंडल भाग लेते हैं।
भारत रिकॉर्ड रक्षा निर्यात और दशक के अंत तक इसे दोगुना करने के लक्ष्य के साथ यहाँ पहुंचा है। भारत की नीति “मेक इन इंडिया, मेक फॉर द वर्ल्ड” पर आधारित है।
भारत-यूएई रिश्तों को मिल रही नई मजबूती
भारत और UAE के बीच आर्थिक साझेदारी, समुद्री सुरक्षा, एयरोस्पेस और तकनीकी क्षेत्र में बढ़ता सहयोग दुबई एयरशो को भारत के लिए एक महत्वपूर्ण मंच बनाता है। यह शो न सिर्फ संभावित खरीदारों तक पहुँचने का अवसर देता है, बल्कि भारत को पश्चिमी देशों के विकल्प के रूप में नई रक्षा शक्ति के तौर पर स्थापित करने का मौका भी देता है।
दुबई एयरशो का स्टार—एलसीए तेजस MK-1A
दुबई एयरशो में भारत का सबसे बड़ा आकर्षण है LCA तेजस Mk1A, जिसे भारत ने 4.5-जनरेशन मल्टीरोल फाइटर के रूप में पेश किया है। GE F404 इंजन से संचालित यह जेट मेक 1.8 की गति, 16,000 मीटर से अधिक सर्विस सीलिंग और डेल्टा-विंग डिजाइन के कारण उच्च गतिशीलता प्रदान करता है। इसमें 9 हार्डपॉइंट्स हैं और यह 5 टन तक हथियार ले जा सकता है।
टेक्नोलॉजी और प्रदर्शन से दुनिया प्रभावित
AESA रडार, स्वदेशी इलेक्ट्रॉनिक वॉरफेयर सूट, BVR मिसाइलें और कम ऑपरेटिंग लागत की वजह से तेजस उन देशों के लिए आकर्षक विकल्प है जो भारी ट्विन-इंजन जेट खरीदने में सक्षम नहीं हैं।
मलेशिया, अर्जेंटीना और मिस्र पहले रुचि दिखा चुके हैं, जबकि खाड़ी, दक्षिण–पूर्व एशिया और अफ्रीका में भी इसके लिए बड़े अवसर हैं। हालाँकि, इंजन सप्लाई को लेकर अमेरिका पर निर्भरता भारत की निर्यात क्षमता पर सीमित प्रभाव डालती है।
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