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Lipulekh Dispute: लिपुलेख विवाद में नहीं पड़ेगा चीन

Dhanarekha
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Lipulekh Dispute: लिपुलेख विवाद में नहीं पड़ेगा चीन

भारत-नेपाल को आपसी बातचीत से सुलझाने की सलाह

बीजिंग/काठमांडू: हाल ही में चीन ने भारत और नेपाल के बीच चल रहे लिपुलेख सीमा विवाद(Lipulekh Dispute) से खुद को अलग कर लिया है। नेपाल के विदेश सचिव अमृत बहादुर राय के मुताबिक, चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग(Xi Jinping) ने स्पष्ट कहा है कि लिपुलेख एक पारंपरिक दर्रा है और चीन नेपाल के दावे का सम्मान करता है।

हालांकि, उनका मानना है कि यह मुद्दा भारत और नेपाल(Nepal) का आपसी मामला है, जिसे दोनों देशों को मिलकर बातचीत के जरिए सुलझाना चाहिए। यह बयान तब आया है जब भारत और चीन ने 19 अगस्त को लिपुलेख दर्रे(Lipulekh Dispute) को फिर से व्यापार मार्ग के रूप में खोलने का फैसला किया था, जिस पर नेपाल ने कड़ा विरोध जताया था। नेपाल 2020 में एक नया नक्शा जारी कर लिपुलेख, लिंपियाधुरा और कालापानी को अपना हिस्सा बता चुका है

नेपाल के प्रधानमंत्री का भारत दौरा और द्विपक्षीय संबंध

इस महीने नेपाल के प्रधानमंत्री ओली 16 सितंबर को भारत दौरे पर आने वाले हैं। इस दौरे से पहले, भारत के विदेश सचिव विक्रम मिस्री ने काठमांडू का दौरा किया था। अपनी यात्रा के दौरान, मिस्री ने नेपाल के प्रधानमंत्री ओली, विदेश मंत्री अर्जु राणा देउबा और विदेश सचिव अमृत बहादुर राय से मुलाकात की।

इस बैठक में दोनों देशों के बीच संबंधों को मजबूत करने, कनेक्टिविटी, व्यापार और विकास सहयोग को बढ़ावा देने पर महत्वपूर्ण चर्चा हुई। उम्मीद है कि ओली के भारत दौरे पर भी इन मुद्दों पर बात होगी, और लिपुलेख विवाद(Lipulekh Dispute) को सुलझाने की दिशा में भी प्रयास किए जा सकते हैं।

लिपुलेख: एक ऐतिहासिक व्यापारिक और सांस्कृतिक मार्ग

5,334 मीटर की ऊंचाई पर स्थित लिपुलेख दर्रा सिर्फ एक भौगोलिक स्थान नहीं, बल्कि भारत, नेपाल और चीन के बीच सदियों से चली आ रही सांस्कृतिक और आर्थिक साझेदारी का प्रतीक है। ब्रिटिश काल से ही यह दर्रा व्यापार और कैलाश मानसरोवर तीर्थयात्रा का एक प्रमुख मार्ग रहा है।

1991 में भारत और चीन ने इसे एक औपचारिक व्यापारिक मार्ग का दर्जा दिया था। यह दर्रा तिब्बत को धारचूला से जोड़ता है, जो भारत-नेपाल सीमा पर स्थित है। यहाँ के व्यापारी 10वीं सदी से ही इस मार्ग के जरिए कारोबार करते आ रहे हैं। धारचूला-लिपुलेख सड़क के निर्माण और गूंजी गांव में मंडी की स्थापना से इस क्षेत्र में व्यापार को और भी बढ़ावा मिलेगा।

चीन ने लिपुलेख विवाद में पड़ने से क्यों इनकार किया?

लिपुलेख विवाद(Lipulekh Dispute) में पड़ने से चीन ने इसलिए इनकार किया, क्योंकि वह इस मुद्दे को भारत और नेपाल का द्विपक्षीय मामला मानता है। नेपाली विदेश सचिव अमृत बहादुर राय के अनुसार, चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने कहा है कि यह विवाद दोनों देशों को आपसी बातचीत से सुलझाना चाहिए। चीन ने नेपाल के दावे का सम्मान तो किया, लेकिन इस मुद्दे में सीधी भागीदारी से बचने का निर्णय लिया है। चीन का यह रुख उसकी अपनी विदेश नीति और व्यापारिक हितों को ध्यान में रखकर लिया गया है, क्योंकि लिपुलेख दर्रा भारत और चीन के बीच एक महत्वपूर्ण व्यापारिक मार्ग भी है।

लिपुलेख दर्रे का ऐतिहासिक और व्यापारिक महत्व क्या है?

यह केवल एक भौगोलिक स्थान नहीं, बल्कि भारत, नेपाल और चीन के बीच सदियों से चली आ रही एक ऐतिहासिक कड़ी है। यह दर्रा ब्रिटिश काल से ही व्यापार और कैलाश मानसरोवर तीर्थयात्रा का एक प्रमुख केंद्र रहा है। 5,334 मीटर की ऊंचाई पर स्थित यह दर्रा सदियों पुरानी सांस्कृतिक और आर्थिक साझेदारी का प्रतीक है। 1991 में इसे भारत और चीन के बीच एक औपचारिक व्यापारिक मार्ग बनाया गया था, जहाँ से दोनों देशों के बीच व्यापार होता है। यह दर्रा धारचूला को तिब्बत से जोड़ता है और स्थानीय व्यापारियों के लिए एक महत्वपूर्ण कारोबारी रास्ता है।

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