भारत और अमेरिका के बीच चल रही व्यापार वार्ता में “नॉन-वेज दूध” (Non-Veg Milk) एक बड़ा विवाद बनकर उभरा है, जिसने दोनों देशों के बीच प्रस्तावित व्यापार समझौते को प्रभावित किया है। यह मुद्दा न केवल आर्थिक, बल्कि सांस्कृतिक और धार्मिक संवेदनशीलताओं से भी जुड़ा है।
भारत, जो दुनिया का सबसे बड़ा दूध उत्पादक और उपभोक्ता देश है, अमेरिकी डेयरी उत्पादों के आयात को लेकर सख्त रुख अपनाए हुए है। इसका मुख्य कारण है अमेरिका में गायों को खिलाया जाने वाला पशु-आधारित चारा, जैसे मांस, रक्त, या अन्य पशु उत्पाद, जिससे प्राप्त दूध को भारत में “नॉन-वेज दूध” कहा जा रहा है
भारत में दूध और दूध से बने उत्पाद, जैसे घी, धार्मिक अनुष्ठानों और दैनिक जीवन में पवित्र माने जाते हैं। हिंदू और जैन समुदायों में दूध को सात्विक (शुद्ध) माना जाता है, और इसे मंदिरों में प्रसाद के रूप में उपयोग किया जाता है। अमेरिका में गायों को मांस, रक्त, या पोल्ट्री अपशिष्ट जैसे चारे खिलाने की प्रथा भारतीयों की धार्मिक और सांस्कृतिक मान्यताओं के विपरीत है।
ग्लोबल ट्रेड रिसर्च इंस्टीट्यूट के अजय श्रीवास्तव के अनुसार, “मांस और रक्त खाने वाली गाय के दूध से बना मक्खन खाने की कल्पना भारत में स्वीकार्य नहीं है।” भारत ने इस मुद्दे को “गैर-परक्राम्य” करार देते हुए आयातित दूध के लिए सख्त प्रमाणीकरण की मांग की है, जो यह सुनिश्चित करे कि गायों को केवल शाकाहारी चारा खिलाया गया हो
आर्थिक दृष्टिकोण से, भारत का डेयरी क्षेत्र 80 मिलियन छोटे किसानों को रोजगार देता है और 1.4 अरब लोगों की खाद्य जरूरतों को पूरा करता है। स्टेट बैंक ऑफ इंडिया की एक रिपोर्ट के अनुसार, अमेरिकी डेयरी आयात की अनुमति देने से भारतीय दूध की कीमतों में 15% की कमी आ सकती है, जिससे किसानों को प्रतिवर्ष 1.03 लाख करोड़ रुपये का नुकसान हो सकता है।
भारत ने डेयरी आयात पर उच्च शुल्क (पनीर पर 30%, मक्खन पर 40%, और दूध पाउडर पर 60%) लगाकर अपने बाजार को संरक्षित किया है
समाधान के लिए, भारत और अमेरिका को सांस्कृतिक और आर्थिक हितों के बीच संतुलन खोजने की जरूरत है। एक संभावित रास्ता यह हो सकता है कि अमेरिका शाकाहारी चारे पर आधारित डेयरी उत्पादों के लिए विशेष प्रमाणन प्रणाली विकसित करे। इसके अतिरिक्त, व्यापार समझौते में अन्य क्षेत्रों, जैसे जैविक खाद्य या मसालों के निर्यात, पर ध्यान केंद्रित करके डेयरी विवाद को दरकिनार किया जा सकता है
यह मुद्दा भारत की सांस्कृतिक और आर्थिक प्राथमिकताओं को रेखांकित करता है, और इसका समाधान दोनों देशों के बीच विश्वास और सहयोग पर निर्भर करता है।
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